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कॉलेजियम की बैठक के विवरण से इनकार पर सीआईसी के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती

दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court ) में एक याचिका दायर कर सीआईसी के उस आदेश को चुनौती दी गई है (CIC's order challenged ) जिसमें न्यायाधीशों की पदोन्नति के लिए 12 दिसंबर 2018 को उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम की बैठक का एजेंडा मुहैया कराने वाली एक आरटीआई अपील को खारिज कर दिया गया था.

CIC's order challenged in High Court on denial of details of collegium meeting
कॉलेजियम की बैठक के विवरण से इनकार पर सीआईसी के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती
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Published : Mar 28, 2022, 12:01 PM IST

नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court ) में एक याचिका दायर कर सीआईसी के उस आदेश को चुनौती दी गई है (CIC's order challenged ) जिसमें न्यायाधीशों की पदोन्नति के लिए 12 दिसंबर 2018 को उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम की बैठक का एजेंडा मुहैया कराने वाली एक आरटीआई अपील को खारिज कर दिया गया था.

न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा आज याचिका पर सुनवाई करने वाले हैं. कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से उच्च न्यायालय में दायर अपनी याचिका में केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के 16 दिसंबर 2021 के आदेश को चुनौती दी है, जिसके द्वारा उनकी दूसरी अपील खारिज कर दी गई थी. भारद्वाज ने अनुरोध किया था कि 26 फरवरी 2019 को दायर सूचना का अधिकार (आरटीआई) आवेदन पर अधिकारियों को उपलब्ध जानकारी का खुलासा करने का निर्देश दिया जाए.

याचिका में कहा गया है कि 23 जनवरी 2019 को, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर, जो 12 दिसंबर 2018 कॉलेजियम की बैठक का हिस्सा थे और 30 दिसंबर 2018 को सेवानिवृत्त हुए, ने एक साक्षात्कार में निराशा व्यक्त की थी कि 12 दिसंबर 2018 के कॉलेजियम के प्रस्ताव को उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया.

याचिका में कहा गया, 'उनके (न्यायमूर्ति लोकुर) हवाले से कहा गया है, ‘एक बार जब हम कुछ निर्णय ले लेते हैं, तो उन्हें अपलोड करना पड़ता है. मैं निराश हूं कि ऐसा नहीं हुआ.’ ऐसी परिस्थितियों में न्यायपालिका में नियुक्तियों की प्रक्रिया में पारदर्शिता के हित में, 26 फरवरी 2019 को याचिकाकर्ता ने उच्चतम न्यायालय के सीपीआईओ को एक आरटीआई आवेदन के माध्यम से 12 दिसंबर 2018 को आयोजित कॉलेजियम की बैठक के एजेंडे, निर्णयों और प्रस्ताव की प्रति मांगी.'

याचिका में कहा गया है, 'यह उल्लेख करना उचित है कि देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की आत्मकथा 'जस्टिस फॉर द जज' के अनुसार, राजस्थान उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराजोग और दिल्ली उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन के नाम को 12 दिसंबर 2018 को कॉलेजियम की बैठक में शीर्ष अदालत में पदोन्नति के लिए मंजूरी दी गई थी.'

किताब में कहा गया है कि मामला कथित रूप से सार्वजनिक हो गया जिसके बाद इस मुद्दे को न्यायमूर्ति गोगोई ने जनवरी 2019 तक ठंडे बस्ते में डाल दिया क्योंकि 15 दिसंबर 2018 से शीतकालीन छुट्टी शुरू हुई थी. जनवरी 2019 में न्यायमूर्ति लोकुर के सेवानिवृत्त होने के बाद एक नए कॉलेजियम का गठन किया गया. किताब के अनुसार, नए कॉलेजियम ने 10 जनवरी 2019 को अपने प्रस्ताव में उच्चतम न्यायालय में पदोन्नति के लिए न्यायमूर्ति नंदराजोग और न्यायमूर्ति मेनन के नामों को मंजूरी नहीं दी.

ये भी पढ़ें- राज्य भी धार्मिक और भाषाई समुदायों को अल्पसंख्यक घोषित कर सकते हैं : केंद्र

याचिका में उन न्यायाधीशों का उल्लेख नहीं किया गया है जिनके नाम को कथित रूप से मंजूरी दे दी गई थी. प्रारंभ में, भारद्वाज ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक आरटीआई दायर की, जिसमें 12 दिसंबर 2018 की बैठक के एजेंडे, लिए गए निर्णयों और पारित प्रस्तावों की प्रतियां मुहैया कराने का अनुरोध किया. याचिका के मुताबिक हालांकि, शीर्ष अदालत के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी ने जानकारी देने से इनकार कर दिया.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court ) में एक याचिका दायर कर सीआईसी के उस आदेश को चुनौती दी गई है (CIC's order challenged ) जिसमें न्यायाधीशों की पदोन्नति के लिए 12 दिसंबर 2018 को उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम की बैठक का एजेंडा मुहैया कराने वाली एक आरटीआई अपील को खारिज कर दिया गया था.

न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा आज याचिका पर सुनवाई करने वाले हैं. कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से उच्च न्यायालय में दायर अपनी याचिका में केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के 16 दिसंबर 2021 के आदेश को चुनौती दी है, जिसके द्वारा उनकी दूसरी अपील खारिज कर दी गई थी. भारद्वाज ने अनुरोध किया था कि 26 फरवरी 2019 को दायर सूचना का अधिकार (आरटीआई) आवेदन पर अधिकारियों को उपलब्ध जानकारी का खुलासा करने का निर्देश दिया जाए.

याचिका में कहा गया है कि 23 जनवरी 2019 को, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर, जो 12 दिसंबर 2018 कॉलेजियम की बैठक का हिस्सा थे और 30 दिसंबर 2018 को सेवानिवृत्त हुए, ने एक साक्षात्कार में निराशा व्यक्त की थी कि 12 दिसंबर 2018 के कॉलेजियम के प्रस्ताव को उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया.

याचिका में कहा गया, 'उनके (न्यायमूर्ति लोकुर) हवाले से कहा गया है, ‘एक बार जब हम कुछ निर्णय ले लेते हैं, तो उन्हें अपलोड करना पड़ता है. मैं निराश हूं कि ऐसा नहीं हुआ.’ ऐसी परिस्थितियों में न्यायपालिका में नियुक्तियों की प्रक्रिया में पारदर्शिता के हित में, 26 फरवरी 2019 को याचिकाकर्ता ने उच्चतम न्यायालय के सीपीआईओ को एक आरटीआई आवेदन के माध्यम से 12 दिसंबर 2018 को आयोजित कॉलेजियम की बैठक के एजेंडे, निर्णयों और प्रस्ताव की प्रति मांगी.'

याचिका में कहा गया है, 'यह उल्लेख करना उचित है कि देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की आत्मकथा 'जस्टिस फॉर द जज' के अनुसार, राजस्थान उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराजोग और दिल्ली उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन के नाम को 12 दिसंबर 2018 को कॉलेजियम की बैठक में शीर्ष अदालत में पदोन्नति के लिए मंजूरी दी गई थी.'

किताब में कहा गया है कि मामला कथित रूप से सार्वजनिक हो गया जिसके बाद इस मुद्दे को न्यायमूर्ति गोगोई ने जनवरी 2019 तक ठंडे बस्ते में डाल दिया क्योंकि 15 दिसंबर 2018 से शीतकालीन छुट्टी शुरू हुई थी. जनवरी 2019 में न्यायमूर्ति लोकुर के सेवानिवृत्त होने के बाद एक नए कॉलेजियम का गठन किया गया. किताब के अनुसार, नए कॉलेजियम ने 10 जनवरी 2019 को अपने प्रस्ताव में उच्चतम न्यायालय में पदोन्नति के लिए न्यायमूर्ति नंदराजोग और न्यायमूर्ति मेनन के नामों को मंजूरी नहीं दी.

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याचिका में उन न्यायाधीशों का उल्लेख नहीं किया गया है जिनके नाम को कथित रूप से मंजूरी दे दी गई थी. प्रारंभ में, भारद्वाज ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक आरटीआई दायर की, जिसमें 12 दिसंबर 2018 की बैठक के एजेंडे, लिए गए निर्णयों और पारित प्रस्तावों की प्रतियां मुहैया कराने का अनुरोध किया. याचिका के मुताबिक हालांकि, शीर्ष अदालत के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी ने जानकारी देने से इनकार कर दिया.

(पीटीआई-भाषा)

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