श्रीनगर : जम्मू और कश्मीर में सीमा पार से पिछले 6 महीने से कोई घुसपैठ नहीं हुई है. वहीं पिछले कुछ वर्षों में कश्मीर में सक्रिय पाकिस्तानी आतंकवादियों की संख्या में कमी आई है.
यह जानकारी सेना के चिनार कॉर्प्स कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डीपी पांडे ने संवाददाताओं से बातचीत में दी.उन्होंने कहा कि आतंकवाद के वित्तपोषण पर नजर रखने वाले एफएटीएफ के इस्लामाबाद पर दबाव समेत इसके कई कारण हैं.
उन्होंने कहा कि पड़ोसी देश द्वारा घाटी की स्थिति को स्वदेशी स्वतंत्रता संग्राम के रूप में पेश करने के प्रयास से भी यहां सक्रिय पाकिस्तानी आतंकवादियों की संख्या में कमी आई है. पिछले तीन-चार वर्षों से पाकिस्तानी आतंकियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे दूरी बनाकर रखें और सलाहकार के तौर पर काम करें. इसके दो पक्ष हैं. पहला यह कि अगर कोई पाकिस्तानी आतंकवादी नहीं मारा जाता है तो हमारे पड़ोसी देश की मिलीभगत कम नजर आती है. उन पर वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) और अन्य का दबाव है.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान द्वारा तैयार की गई लंबी रणनीति यह है कि मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों को लेकर 'देशविरोधी' भावनाएं भड़काओ. उन्होंने कहा, जब आप पांच छह महीने तक आतंकवादी रहे एक कश्मीरी युवक को मारते हैं, तो इससे नाखुश एक परिवार देश के खिलाफ खड़ा हो जाता है. तो, फिर (इसमें) उसके परिवार के कुछ परिचित, उसके दोस्त, गांव शामिल हो जाते हैं. यह उनकी (पाकिस्तान) रणनीति है. वे एक छोटे बच्चे को प्रेरित करते हैं, उसे कट्टरपंथी बनाते हैं, उसे बिना किसी प्रशिक्षण के बंदूकें देते हैं, उसे आगे बढ़ाते हैं और वह मारा जाता है.
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उन्होंने कहा, इसे (आतंकवाद) एक स्वदेशी आंदोलन के रूप में दिखाने की उनकी रणनीति है जहां पूरा प्रयास स्थानीय है. जब वे किसी को मारते हैं तो आधे घंटे के भीतर एक संदेश आता है कि यह स्थानीय कश्मीरी स्वतंत्रता संग्राम है.
विस्तृत जानकारी देते हुए कोर कमांडर ने कहा कि इस साल कश्मीर में केवल दो विदेशी आतंकवादी मारे गए. उन्होंने कहा, हमारा घुसपैठ रोधी ग्रिड पिछले कुछ वर्षों से बहुत मजबूत रहा है, जिसका अर्थ है कि कम संख्या में विदेशी आतंकवादी घुसपैठ करने में सक्षम थे.
उन्होंने कहा कि कश्मीर घाटी में पिछले कुछ वर्षों की सुरक्षा स्थिति की तुलना पिछले दो से तीन दशकों से नहीं की जा सकती है. उन्होंने कहा, इसमें (सुरक्षा में) काफी सुधार हुआ है. इसमें बहुत सी बातें हैं- (अनुच्छेद) 370 को निरस्त करना, विकास, अच्छा नियंत्रण रखना आदि. लेफ्टिनेंट जनरल पांडे ने कहा कि हर चीज को आतंकवादी संख्या के चश्मे से नहीं देखना चाहिए क्योंकि आतंकवाद के दो कारक होते हैं- आतंक और वाद.
उन्होंने कहा कि यह वाद, यह गठजोड़ जोकि पैसे पर पलता है, अभी भी वहां हैं और हमें इसे तोड़ना है. उन्होंने कहा कि यह एक या दो साल का नहीं, बल्कि वर्षों का काम हैं. लेफ्टिनेंट जनरल पांडे ने कहा कि विदेशों में बैठे कुछ कश्मीरी प्रवासी चाहते हैं कि यहां के युवा बंदूक उठाएं.
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उन्होंने कहा, वे जहर उगलते हैं और पैसा कमाते हैं. जिन युवाओं के घरों में समस्या है, उनकी शिक्षा है, उनके कर्ज हैं, वे गरीब और अनपढ़ हैं - मारे जा रहे हैं. जब तक कश्मीर का नागरिक समाज इसे नहीं समझेगा और उजागर नहीं करेगा, यह सिलसिला चलता रहेगा.
यह पूछे जाने पर कि क्या स्थिति में सुधार के लिए सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम को वापस लेना जरूरी है, सेना के अधिकारी ने कहा कि कानून की जरूरत है क्योंकि आतंकवादी एक जगह से दूसरी जगह जाते रहते हैं. उन्होंने कहा, सुरक्षा बलों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि लोग सुरक्षित महसूस करें, और स्थायी शांति स्थापित हो क्योंकि विभिन्न कारणों से कश्मीर में स्थिति बहुत तेजी से बदल सकती है.
भारी तोपखाने को लद्दाख ले जाने पर, कोर कमांडर ने कहा कि ये सामान्य टर्नओवर प्रक्रिया है. उन्होंने कहा, वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पार चीन की गतिविधियों को हर कोई जानता है, इसलिए बल का संतुलन बनाए रखा जाता है और हम उस पर कार्रवाई करते हैं.
यह पूछे जाने पर कि क्या अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा स्थिति के संबंध में चिंता का विषय है, लेफ्टिनेंट जनरल पांडे ने कहा कि यहां की स्थिति पिछले 30 वर्षों से बदल गई है.
उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि दो विकल्प हैं, शायद कुछ लोग यहां आएंगे, लेकिन मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि जब भी कोई आने की कोशिश करेगा, जम्मू-कश्मीर पुलिस (स्थिति पर) का नियंत्रण बहुत मजबूत है, और कश्मीर में किसी भी गलत काम की अनुमति नहीं दी जाएगी.
(इनपुट एजेंसी)