छिन्दवाड़ा। 10 जनवरी 2019 के राजपत्र में पातालकोट को जैव विविधता विरासत स्थल घोषित किया गया, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं. जिस कारण से पातालकोट के भारिया जनजाति को विशेष लाभ नहीं मिल पा रहा है. वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड का हिस्सा बने पातालकोट के जंगलों में पेड़ पौधों और जड़ी-बूटियों का भंडार है. इसके संरक्षण संवर्धन के साथ अगर यहां पर औषधीय खेती शुरू की जाए तो ना केवल मेडिकल इंडस्ट्री की जरूरत पूरी कर पाएगा, बल्कि स्थानीय भारियायों की आय में भी बढ़ोतरी होगी.
वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज: राज्य शासन में 10 जनवरी 2019 के राजपत्र में पातालकोट को जैव विविधता विरासत स्थल घोषित किया गया है. राजपत्र अधिसूचना के मुताबिक पातालकोट पूर्व एवं पश्चिम वन मंडल के अधीन संरक्षित वन क्षेत्रफल 8367.49 हेक्टेयर में फैला हुआ है. यह स्थल 1700 फीट गहरी घाटी व छह मिलियन वर्ष की अनुमानित आयु वाला पारिस्थितिकी एवं दुर्लभ वनस्पति प्राणियों वाला क्षेत्र है. इसमें ब्रायोफाइट्स एवं टेरिडोफ गइटस भी हैं. इस क्षेत्र के समुदाय विशेषकर भारिया को जंगली पेड़ पौधे एवं जड़ी बूटियों का अनोखा पारंपरिक ज्ञान है. जिसका उपयोग ये अपने लिए दवाइयों बनाने में करते हैं.
मिल चुका है हैबिटेट राइट्स का दर्जा: पातालकोट के जल, जंगल जमीन, पहाड़ और जलाशय सहित प्राकृतिक संपदा पर अब भारियों का हक होगा. पातालकोट में यदि सरकार को कोई भी निर्माण करना हो तो यहां के भारियों से अनुमति लेनी होगी. पातालकोट की 9276 हेक्टेयर भूमि में 8326 हेक्टेयर वन भूमि और 950 हेक्टेयर राजस्व भूमि शामिल है. पातालकोट की सभी ग्राम पंचायतों के साथ ही वन विभाग ने भी यह जमीन छोड़ दी है. अब यहां की जमीन ही नहीं बल्कि जंगल के मालिक भी भारिया आदिवासी होंगे. जो अपनी जरूरत के लिए वनों का भी समुचित दोहन कर सकेंगे. इस कदम का उद्देश्य भारिया जनजाति का उत्थान है, जो जल जंगल जमीन के आधार पर अपना जीवन जीती है. उससे उनकी मान्यताओं को अधिकार मिलेगा और वे पातालकोट को संरक्षित रख पाएंगे.
प्लानिंग बदल सकती है किस्मत: पूर्व वन मंडल के डीएफओ बृजेंद्र श्रीवास्तव का कहना है कि पातालकोट के 12 गांव में औषधीय खेती की प्लानिंग की जा सकती है. इससे सदियों पुरानी ज्ञान और जड़ी बूटियों का संवर्धन होगा. कुछ महीने पहले ही वर्ल्ड बुक की टीम के यूरोप के प्रमुख विलियम जेजलर और उनकी पत्नी पूनम जेजलर सहित कुछ लोगों ने पातालकोट पहुंचकर यहां के विरासत की तारीफ की थी. पातालकोट को विश्व की अनोखी विरासत में शामिल भी किया गया है.
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पातालकोट में भारिया जनजाति का निवास: भारिया जनजाति सदियों से पातालकोट में निवास कर रही है. पातालकोट के 12 गांव में 611 भारिया परिवार निवासरत हैं. इसके लिए केंद्र सरकार ने भारिया जनजाति विकास प्राधिकरण का गठन किया था. जिसके माध्यम से इस जानजाति के उन्नयन के कार्य होते थे. अब जल जंगल जमीन के संरक्षण के सिद्धांत पर पूरा पातालकोट ही भारिया जनजाति को दे दिया गया है. यह सब कुछ हैबिटेट राइट्स सेक्सन नियम -3 (1) (0) भारिया पीवीजीटी दिया गया है. यहां के 611 परिवारों के नाम शामिल किए गए हैं. पातालकोट के 12 गांव में जदमादल, हर्रा कछार खमारपुर, सहराप जगोल, सूखा भंडार हरमऊ, घृणित, गैल डुब्बा, घटलिंगा, गुड़ी छतरी सालाढाना, कौड़िया ग्राम शामिल है.
पेसा एक्ट और हैबिटेट राइट्स में यह अंतर: बिरसा मुंडा जयंती के मौके पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश में पेसा एक्ट जनजातियों के लिए लागू किया है. पेसा एक्ट में लगभग सभी अधिकार ग्राम सभा के पास होते हैं, लेकिन हैबिटेट राइट्स वन अधिकार अधिनियम के तहत दिया जाता है. जिसमें जमीन का मालिक किसी विशेष समुदाय को बनाया जाता है. इसमें विशेष समुदाय ही निर्णय लेने की क्षमता रखता है. पातालकोट पर करीब 25 सालों से रिसर्च कर रहे डॉ दीपक आचार्य ने बताया कि इस अधिकार से जनजाति का उत्थान होगा.