बिलासपुर : छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात कराने की अनुमति दे दी है. उच्च न्यायालय के अधिवक्ता अनिश तिवारी ने बताया कि, न्यायालय की एकल पीठ ने मंगलवार को एक नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात कराने की अनुमति दे दी है. न्यायालय ने पीड़िता के भ्रूण का डीएनए भी संरक्षित रखने का आदेश दिया है.
अधिवक्ता अनिश तिवारी ने बताया कि मंगलवार को न्यायालय ने दुष्कर्म पीडि़ता की लगभग 20 सप्ताह के गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की अनुमति दे दी है. न्यायमूर्ति गौतम भादुड़ी ने अपने फैसले में कहा है.यदि पीड़िता के साथ दुष्कर्म किया गया है. उसे मौजूदा सामाजिक परिदृश्य में बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर किया जाता है तब उसे जीवन भर शारीरिक और मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ेगा. साथ ही पैदा होने वाले बच्चे को भी सामाजिक तिरस्कार का सामना करना पड़ेगा, इसलिए याचिकाकर्ता को गर्भावस्था की चिकित्सकीय समाप्ति का अधिकार है.
न्यायालय ने यह फैसला एक सप्ताह पूर्व कोरबा की 15 वर्षीय नाबालिग पीड़िता की तरफ से दायर याचिका पर सुनाया था. याचिका के अनुसार पीड़िता दुष्कर्म के बाद गर्भवती हो गई थी. पीड़िता ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी एक्ट के प्रावधानों के तहत गर्भपात की अनुमति मांगी थी. मामले की प्रारंभिक सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय के निर्देश पर मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया. चार सदस्यीय विशेषज्ञ टीम ने 12 जुलाई को मेडिकल रिपोर्ट प्रस्तुत की थी. रिपोर्ट के अनुसार चूंकि पीड़िता का गर्भ 20 सप्ताह से अधिक का नहीं है, इसलिए गर्भपात (एमटीपी) कराया जा सकता है.
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अधिवक्ता ने बताया कि उच्च न्यायालय ने मेडिकल रिपोर्ट पेश होने के बाद मंगलवार को विशेषज्ञ चिकित्सकों की निगरानी में पीड़िता को गर्भपात कराने की अनुमति दे दी.
अधिवक्ता अनिश तिवारी ने बताया कि उच्च न्यायालय ने पीड़िता को 14 जुलाई को जिला चिकित्सालय कोरबा में भर्ती होने का निर्देश भी दिया है. न्यायालय ने जिला चिकित्सालय को भी याचिकाकर्ता के स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखने और उसे सभी आवश्यक चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए निर्देशित किया है. उच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि भ्रूण के डीएनए को भी संरक्षित किया जाए.
(पीटीआई-भाषा)