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बाइडेन के सामने कठिन चुनौती, लिंकन-रूजवेल्ट से ले सकते हैं प्रेरणा

अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन के सामने बहुत कठिन चुनौती है. इससे निपटना बहुत आसान नहीं होगा. विशेषज्ञ मानते हैं कि अब्राहम लिंकन और फ्रेंकलिन रूजवेल्ट प्रशासन के सामने जिस तरह के संकट थे, लगभग वैसी ही स्थिति वर्तमान में है. लिहाजा बाइडेन को बहुत सोच समझकर आगे बढ़ना होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो अमेरिकी साख पर बट्टा भी लग सकता है.

बाइडेन के सामने कठिन चुनौती,
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Published : Jan 22, 2021, 5:01 AM IST

हैदराबाद : डोनाल्ड ट्रंप की विदाई और जो बाइडेन के शपथ ग्रहण के साथ ही अमेरिका में एक नई सुबह की शुरुआत हुई. ट्रंप ने अपने विदाई संदेश में कहा, 'हमने वही किया, जो हम यहां करने आए थे.' बाइडेन अमेरिका के अब तक के सबसे अधिक उम्र के राष्ट्रपति बने हैं. वह बार-बार यह कह रहे थे कि अमेरिका की आत्मा की रक्षा के लिए यह चुनाव लड़ा जा रहा है. महिलाओं को वोट का अधिकार मिलने के करीब 100 साल बाद पहली बार कोई महिला उप राष्ट्रपति के रूप में चुनी गई. वह भारतीय मूल की हैं. सचमुच यह विकासशीश देशों के लिए गौरव का क्षण है.

लिंकन-फ्रैंकलीन डी रुजवेल्ट प्रशासन जैसी चुनौतियां
डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका फर्स्ट का नारा दिया था. लेकिन उनके चार साल के कार्यकाल में उन्होंने देश को कई संकटों में खींच लिया. इतिहासकार कह रहे हैं कि बाइडेन के सामने अब अब्राहम लिंकन और फ्रैंकलीन डी रुजवेल्ट प्रशासन के सामने जैसी चुनौती थी, वही स्थिति अभी है. लिंकन के समय 1861 में अमेरिका में गृहयुद्ध की चुनौती थी. रुजवेल्ट के सामने अभूतपूर्व मंदी से निपटने की चुनौती थी.

ट्रंपवाद के निशान को मिटाना आसान नहीं
ट्रंप ने बड़े ही गर्व से यह बात कही थी कि वे बहुत दिनों के बाद पहले ऐसे राष्ट्रपति बने, जिनके कार्यकाल में किसी युद्ध की शुरुआत नहीं हुई. लेकिन कैपिटल हिल पर जो कुछ हुआ, उसके लिए ट्रंप ही जिम्मेवार भी हैं. वह भीड़ को हिंसा के लिए उकसाने के जिम्मेवार हैं. ट्रंपवाद के निशान को मिटाना आसान नहीं है. दक्षिणपंथी छवि होने के बावजूद ट्रंप को 7.4 करोड़ वोट हासिल हुआ.

किसी राष्ट्रपति ने इतनी सफाई से झूठ नहीं बोला था, न ही किसी ने खुले तौर पर संवैधानिक प्रणालियों को बर्बाद किया. ट्रंप ने आठ साल में देश को कर्ज मुक्त बनाने का वादा किया था. लेकिन चार साल के कार्यकाल में देश पर 8.3 लाख करोड़ का अतिरिक्त कर्ज बढ़ा दिया. अब बाइडेन के सामने चुनौती है कि वह इसे दुरुस्त करें. सामाजिक आर्थिक संकट को ठीक करें.

कोविड महामारी के प्रकोप से ट्रंप के कार्यकाल के दौरान चार लाख अमेरिकियों की मौत हो गई. यह दर्शाता है कि वह बोलते अधिक थे, लेकिन काम बहुत कम करते थे. मरने वालों की संख्या द्वितीय विश्व युद्ध में मारे गए अमेरिकी सैनिकों जितनी है. उन्हें इस महामारी की गंभीरता का एहसास तब हुआ, जब वह खुद इस वायरस से संक्रमित हुए.

अब बाइडेन ने 100 दिनों के अंदर 10 करोड़ अमेरीकियों को टीका लगवाने का लक्ष्य रखा है. यह किसी महायज्ञ से कम नहीं है. बेरोजगारी बहुत बड़े संकट के रूप में सामने आया है. रोजगार के क्षेत्र में 50 सालों में सबसे खराब स्थिति पहले से थी. महामारी ने इसे और गंभीर बना दिया. सिर्फ दिसंबर में 1.4 लाख लोगों की नौकरियां चली गईं.

हर छह अमेरिकी परिवारों में से एक भूख की पीड़ा झेल रहा
उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने कुछ चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए हैं. उन्होंने कहा कि हर छह अमेरिकी परिवारों में से एक भूख की पीड़ा झेल रहा है. देश के 20 प्रतिशत नागरिक अपने घर का किराया देने की स्थिति में नहीं हैं. एक तिहाई परिवार ऐसे हैं, जो अपनी आवश्यक जरूरत के लिए भुगतान करने की स्थिति में नहीं हैं.

बाइडेन ने इस आपातकाल जैसी स्थिति का सामना करने के लिए 1.9 लाख करोड़ अमरीकी डॉलर का आवंटन किया है. इसके लिए अलग से रणनीति बनाई गई है. हालांकि, ये योजनाएं सुचारू तरीके से तभी चल पाएंगी, जब रिपब्लिकन भी आगे आकर उसी जज्बे से मदद करने को तैयार हो. योजना खर्च के माध्यम से टीकाकरण के साथ-साथ कोविड संकट के साथ-साथ आर्थिक पुनरुद्धार और नौकरी सृजन को बढ़ाया जाएगा.

अमेरिकी समाज में बढ़ती असमानताओं से निपटना भी एक अहम मुद्दा है. उन्हें इस तथ्य का एहसास होना चाहिए कि ट्रंपवाद को हवा ग्रामीण लोगों और कामकाजी जनता के बीच गुस्से से मिला था. बाइडेन के सामने सचमुच कठिन चुनौती है. उन्हें लिंकन और रुजवेल्ट से प्रेरणा लेनी चाहिए, आखिर किस तरह से उन्होंने संकटों से देश को उबारा था. अमेरिका विश्व की महाशक्ति के रूप में अपना सिर तभी उठा सकता है, जब बाइडेन अपनी परिपक्वता और बुद्धिमत्ता के बल पर लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे.

हैदराबाद : डोनाल्ड ट्रंप की विदाई और जो बाइडेन के शपथ ग्रहण के साथ ही अमेरिका में एक नई सुबह की शुरुआत हुई. ट्रंप ने अपने विदाई संदेश में कहा, 'हमने वही किया, जो हम यहां करने आए थे.' बाइडेन अमेरिका के अब तक के सबसे अधिक उम्र के राष्ट्रपति बने हैं. वह बार-बार यह कह रहे थे कि अमेरिका की आत्मा की रक्षा के लिए यह चुनाव लड़ा जा रहा है. महिलाओं को वोट का अधिकार मिलने के करीब 100 साल बाद पहली बार कोई महिला उप राष्ट्रपति के रूप में चुनी गई. वह भारतीय मूल की हैं. सचमुच यह विकासशीश देशों के लिए गौरव का क्षण है.

लिंकन-फ्रैंकलीन डी रुजवेल्ट प्रशासन जैसी चुनौतियां
डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका फर्स्ट का नारा दिया था. लेकिन उनके चार साल के कार्यकाल में उन्होंने देश को कई संकटों में खींच लिया. इतिहासकार कह रहे हैं कि बाइडेन के सामने अब अब्राहम लिंकन और फ्रैंकलीन डी रुजवेल्ट प्रशासन के सामने जैसी चुनौती थी, वही स्थिति अभी है. लिंकन के समय 1861 में अमेरिका में गृहयुद्ध की चुनौती थी. रुजवेल्ट के सामने अभूतपूर्व मंदी से निपटने की चुनौती थी.

ट्रंपवाद के निशान को मिटाना आसान नहीं
ट्रंप ने बड़े ही गर्व से यह बात कही थी कि वे बहुत दिनों के बाद पहले ऐसे राष्ट्रपति बने, जिनके कार्यकाल में किसी युद्ध की शुरुआत नहीं हुई. लेकिन कैपिटल हिल पर जो कुछ हुआ, उसके लिए ट्रंप ही जिम्मेवार भी हैं. वह भीड़ को हिंसा के लिए उकसाने के जिम्मेवार हैं. ट्रंपवाद के निशान को मिटाना आसान नहीं है. दक्षिणपंथी छवि होने के बावजूद ट्रंप को 7.4 करोड़ वोट हासिल हुआ.

किसी राष्ट्रपति ने इतनी सफाई से झूठ नहीं बोला था, न ही किसी ने खुले तौर पर संवैधानिक प्रणालियों को बर्बाद किया. ट्रंप ने आठ साल में देश को कर्ज मुक्त बनाने का वादा किया था. लेकिन चार साल के कार्यकाल में देश पर 8.3 लाख करोड़ का अतिरिक्त कर्ज बढ़ा दिया. अब बाइडेन के सामने चुनौती है कि वह इसे दुरुस्त करें. सामाजिक आर्थिक संकट को ठीक करें.

कोविड महामारी के प्रकोप से ट्रंप के कार्यकाल के दौरान चार लाख अमेरिकियों की मौत हो गई. यह दर्शाता है कि वह बोलते अधिक थे, लेकिन काम बहुत कम करते थे. मरने वालों की संख्या द्वितीय विश्व युद्ध में मारे गए अमेरिकी सैनिकों जितनी है. उन्हें इस महामारी की गंभीरता का एहसास तब हुआ, जब वह खुद इस वायरस से संक्रमित हुए.

अब बाइडेन ने 100 दिनों के अंदर 10 करोड़ अमेरीकियों को टीका लगवाने का लक्ष्य रखा है. यह किसी महायज्ञ से कम नहीं है. बेरोजगारी बहुत बड़े संकट के रूप में सामने आया है. रोजगार के क्षेत्र में 50 सालों में सबसे खराब स्थिति पहले से थी. महामारी ने इसे और गंभीर बना दिया. सिर्फ दिसंबर में 1.4 लाख लोगों की नौकरियां चली गईं.

हर छह अमेरिकी परिवारों में से एक भूख की पीड़ा झेल रहा
उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने कुछ चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए हैं. उन्होंने कहा कि हर छह अमेरिकी परिवारों में से एक भूख की पीड़ा झेल रहा है. देश के 20 प्रतिशत नागरिक अपने घर का किराया देने की स्थिति में नहीं हैं. एक तिहाई परिवार ऐसे हैं, जो अपनी आवश्यक जरूरत के लिए भुगतान करने की स्थिति में नहीं हैं.

बाइडेन ने इस आपातकाल जैसी स्थिति का सामना करने के लिए 1.9 लाख करोड़ अमरीकी डॉलर का आवंटन किया है. इसके लिए अलग से रणनीति बनाई गई है. हालांकि, ये योजनाएं सुचारू तरीके से तभी चल पाएंगी, जब रिपब्लिकन भी आगे आकर उसी जज्बे से मदद करने को तैयार हो. योजना खर्च के माध्यम से टीकाकरण के साथ-साथ कोविड संकट के साथ-साथ आर्थिक पुनरुद्धार और नौकरी सृजन को बढ़ाया जाएगा.

अमेरिकी समाज में बढ़ती असमानताओं से निपटना भी एक अहम मुद्दा है. उन्हें इस तथ्य का एहसास होना चाहिए कि ट्रंपवाद को हवा ग्रामीण लोगों और कामकाजी जनता के बीच गुस्से से मिला था. बाइडेन के सामने सचमुच कठिन चुनौती है. उन्हें लिंकन और रुजवेल्ट से प्रेरणा लेनी चाहिए, आखिर किस तरह से उन्होंने संकटों से देश को उबारा था. अमेरिका विश्व की महाशक्ति के रूप में अपना सिर तभी उठा सकता है, जब बाइडेन अपनी परिपक्वता और बुद्धिमत्ता के बल पर लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे.

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