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समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए SC के दिशानिर्देशों पर विचार करे केंद्र : HC

अंतरधार्मिक विवाह करने वाले 17 युगलों की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि समान नागरिक संहिता अब देश की जरूरत है और इसे अनिवार्य रूप से लागू किया जाना चाहिए.

इलाहाबाद हाई कोर्ट
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Published : Nov 22, 2021, 9:22 AM IST

Updated : Nov 22, 2021, 9:34 AM IST

प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों पर विचार करने को कहा. अंतरधार्मिक विवाह करने वाले 17 युगलों की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि समान नागरिक संहिता अब देश की जरूरत है और इसे अनिवार्य रूप से लागू किया जाना चाहिए.

बता दें, भारतीय संविधान की धारा 44 में कहा गया है कि देश में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होगा, चाहे वो किसी भी जाति धर्म का क्यों न हो. समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होने की बात कही गई है.

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि समान नागरिक संहिता को सिर्फ स्वैच्छिक नहीं बनाया जा सकता, अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों द्वारा व्यक्त की गई आशंका और भय के मद्देनजर जैसा कि 75 साल पहले डॉक्टर बीआर अंबेडकर ने कहा था.

हाई कोर्ट में अलग-अलग धर्मों के युगल ने मैरेज रजिस्ट्रेशन में सुरक्षा को लेकर याचिका दायर की है. इस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने कहा कि यह समय की मांग है कि संसद एक 'एकल परिवार कोड' कानून लाए, ताकि अंतरधार्मिक जोड़ों को सुरक्षा मिल सके.

कोर्ट ने कहा, 'हालात ऐसे बन गए हैं कि अब संसद को हस्तक्षेप करना चाहिए और जांच करनी चाहिए कि क्या देश में विवाह और पंजीकरण को लेकर अलग-अलग कानून होने चाहिए या फिर एक.'

यह भी पढ़ें- समान नागरिक संहिता को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बताया असंवैधानिक

प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों पर विचार करने को कहा. अंतरधार्मिक विवाह करने वाले 17 युगलों की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि समान नागरिक संहिता अब देश की जरूरत है और इसे अनिवार्य रूप से लागू किया जाना चाहिए.

बता दें, भारतीय संविधान की धारा 44 में कहा गया है कि देश में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होगा, चाहे वो किसी भी जाति धर्म का क्यों न हो. समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होने की बात कही गई है.

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि समान नागरिक संहिता को सिर्फ स्वैच्छिक नहीं बनाया जा सकता, अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों द्वारा व्यक्त की गई आशंका और भय के मद्देनजर जैसा कि 75 साल पहले डॉक्टर बीआर अंबेडकर ने कहा था.

हाई कोर्ट में अलग-अलग धर्मों के युगल ने मैरेज रजिस्ट्रेशन में सुरक्षा को लेकर याचिका दायर की है. इस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने कहा कि यह समय की मांग है कि संसद एक 'एकल परिवार कोड' कानून लाए, ताकि अंतरधार्मिक जोड़ों को सुरक्षा मिल सके.

कोर्ट ने कहा, 'हालात ऐसे बन गए हैं कि अब संसद को हस्तक्षेप करना चाहिए और जांच करनी चाहिए कि क्या देश में विवाह और पंजीकरण को लेकर अलग-अलग कानून होने चाहिए या फिर एक.'

यह भी पढ़ें- समान नागरिक संहिता को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बताया असंवैधानिक

Last Updated : Nov 22, 2021, 9:34 AM IST
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