नई दिल्ली : केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत एक सांविधिक निकाय ड्रग कंसल्टेंट कमेटी (डीसीसी) ने हाल ही में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधियों के साथ इस तरह की निगरानी कोशिकाओं के निर्माण की सिफारिश की है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों ने शुक्रवार को ईटीवी भारत को बताया कि निगरानी कोशिकाओं के निर्माण से यह सुनिश्चित होगा कि केंद्रीय लाइसेंसिंग प्राधिकरण के पूर्व अनुमोदन के बिना किसी भी नई दवाओं को लाइसेंस नहीं दिया जाए.
अधिकारियों ने कहा कि विभाग यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि दवाओं की गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावकारिता से समझौता नहीं किया जाना चाहिए. निर्माताओं और नियामक अधिकारियों के लिए कानूनी प्रावधान, कार्यशालाओं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों को मजबूत करने और जोखिम आधारित निरीक्षण जैसे उपायों की श्रृंखला पहले ही जारी की जा चुकी है.
भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल (DCGI) द्वारा कभी-कभी स्फूर्त और घटिया दवाओं के मुद्दे पर चर्चा की जाती है. लेकिन विडंबना यह है कि भारत में दवाओं की संभावित कमी से नकली दवाओं के कारोबार में तेजी आ सकती है.
यहां यह उल्लेखनीय है कि भारत सक्रिय दवा सामग्री (एपीआई) जैसी दवाओं के लिए 70 प्रतिशत कच्चा माल चीन से आयात करता है. जहां तक एपीआई की बात है तो देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भारत की उत्सुकता एक बड़ी चुनौती हो सकती है. हालांकि सीमित दवा परीक्षण सुविधाएं भी भारत के लिए चिंता का विषय है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार भारत में विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में केवल आठ केंद्रीय दवा परीक्षण प्रयोगशालाएं हैं. इसके अलावा 47 अन्य दवा परीक्षण प्रयोगशालाएं कार्य कर रही हैं. कर्नाटक में अधिकतम तीन दवा परीक्षण प्रयोगशालाएं हैं, जहां तमिलनाडु, महाराष्ट्र, जम्मू और कश्मीर, आंध्र प्रदेश में प्रत्येक में दो-दो दवा परीक्षण प्रयोगशालाएं हैं.
2018 में केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने भारतीय बाजार में सभी जेनेरिक दवाओं की पहचान की जिसमें 4.5 प्रतिशत घटिया दवाएं मिलीं.
गौरतलब है कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि बाजार में नकली, घटिया और मिलावटी दवाओं की आपूर्ति के मामले अक्सर रिपोर्ट मिलते हैं. स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण पर एक संसदीय समिति ने केंद्र सरकार को एक जीवंत, प्रभावी नियामक व्यवस्था लागू करने का सुझाव दिया है. ताकि जनता को ऐसी असुरक्षित दवाओं से बचाया जा सके.