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पूर्व अटॉर्नी जनरल ने 'देशद्रोह कानून' काे खत्म करने की दी सलाह, जानें क्याें कहा ऐसा

भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने समय के साथ राजद्रोह कानून ने अनुपयुक्त बताते हुए इसे समाप्त करने की सलाह दी है.

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Published : Jul 16, 2021, 12:48 PM IST

नई दिल्ली : भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के साथ अपनी सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि पुरातन राजद्रोह कानून (देशद्राेह कानून) अपने उद्देश्य से बाहर हो गया है और अब इसका कोई उपयोग नहीं है.

रोहतगी ने बताया कि अंग्रेजों द्वारा मूल निवासियों के बीच असंतोष को दबाने के लिए यह कानून बनाया गया था, उन्हें डर था कि सरकार को हिंसक उखाड़ फेंका जाएगा.

बता दें कि भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूछा कि कानून को निरस्त क्यों नहीं किया जा सकता है और कहा कि वह धारा 124 ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर गौर करेगी.

उन्हाेंने कहा कि मैं सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों से तहे दिल से सहमत हूं. यह कानून पूरी तरह से पुराना है और केवल अभिव्यक्ति और असहमति को दबाने के लिए है. यह अंग्रेजों द्वारा लाया गया था जो मूल निवासियों के बीच असंतोष को दबाना चाहते थे.

उन्होंने कहा, पिछले 75 वर्षों में, मुझे नहीं लगता कि किसी भी सरकार (हमारे देश में), केंद्र या राज्य को उखाड़ फेंकने का कोई वास्तविक हिंसक प्रयास हुआ है.पूर्व अटॉर्नी जनरल ने कहा कि पिछले 15 वर्षों में विभिन्न सरकारों द्वारा आलोचना को दबाने के लिए पुलिस द्वारा इसका दुरुपयोग किया गया है.

अगर उन्हें लगता है कि उनके 'राजनीतिक गुरु' चाहते हैं कि वे किसी को जेल में रखें, तो सबसे अच्छी बात यह है कि देशद्रोह का मामला दर्ज किया जाए क्योंकि यह लोगों को ज्यादा समय तक जेल में रखता है.

इसे भी पढ़ें : राजद्रोह कानून के खिलाफ पूर्व केद्रीय मंत्री अरूण शौरी ने शीर्ष न्यायालय का रुख किया

पूर्व अटॉर्नी जनरल (एजी) मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह (देशद्रोह कानून) जितनी जल्दी खत्म हाे जाए, उतना अच्छा है. केंद्र सरकार को मेरा सुझाव है कि वे इसे खुद ही खत्म कर दें. अगर इसे खत्म नहीं किया गया है, तो सुप्रीम कोर्ट को इसे रद्द कर देना चाहिए.

नई दिल्ली : भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के साथ अपनी सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि पुरातन राजद्रोह कानून (देशद्राेह कानून) अपने उद्देश्य से बाहर हो गया है और अब इसका कोई उपयोग नहीं है.

रोहतगी ने बताया कि अंग्रेजों द्वारा मूल निवासियों के बीच असंतोष को दबाने के लिए यह कानून बनाया गया था, उन्हें डर था कि सरकार को हिंसक उखाड़ फेंका जाएगा.

बता दें कि भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूछा कि कानून को निरस्त क्यों नहीं किया जा सकता है और कहा कि वह धारा 124 ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर गौर करेगी.

उन्हाेंने कहा कि मैं सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों से तहे दिल से सहमत हूं. यह कानून पूरी तरह से पुराना है और केवल अभिव्यक्ति और असहमति को दबाने के लिए है. यह अंग्रेजों द्वारा लाया गया था जो मूल निवासियों के बीच असंतोष को दबाना चाहते थे.

उन्होंने कहा, पिछले 75 वर्षों में, मुझे नहीं लगता कि किसी भी सरकार (हमारे देश में), केंद्र या राज्य को उखाड़ फेंकने का कोई वास्तविक हिंसक प्रयास हुआ है.पूर्व अटॉर्नी जनरल ने कहा कि पिछले 15 वर्षों में विभिन्न सरकारों द्वारा आलोचना को दबाने के लिए पुलिस द्वारा इसका दुरुपयोग किया गया है.

अगर उन्हें लगता है कि उनके 'राजनीतिक गुरु' चाहते हैं कि वे किसी को जेल में रखें, तो सबसे अच्छी बात यह है कि देशद्रोह का मामला दर्ज किया जाए क्योंकि यह लोगों को ज्यादा समय तक जेल में रखता है.

इसे भी पढ़ें : राजद्रोह कानून के खिलाफ पूर्व केद्रीय मंत्री अरूण शौरी ने शीर्ष न्यायालय का रुख किया

पूर्व अटॉर्नी जनरल (एजी) मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह (देशद्रोह कानून) जितनी जल्दी खत्म हाे जाए, उतना अच्छा है. केंद्र सरकार को मेरा सुझाव है कि वे इसे खुद ही खत्म कर दें. अगर इसे खत्म नहीं किया गया है, तो सुप्रीम कोर्ट को इसे रद्द कर देना चाहिए.

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