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तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने के लिए समान कानूनों की मांग वाली याचिका का केंद्र ने किया विरोध - उत्तराधिकार और गोद लेने के लिए एक समान कानून

तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने के लिए एक समान कानून (uniform laws for divorce) की मांग करने वाली याचिकाओं पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में कहा कि यह संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला है.

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सुप्रीम कोर्ट
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Published : Oct 22, 2022, 3:07 PM IST

नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक हलफनामा दायर कर कहा है कि संसद संप्रभु है और कोई भी प्राधिकरण उसे कानून बनाने के लिए निर्देश जारी नहीं कर सकता है. केंद्र की यह प्रतिक्रिया तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने के लिए एक समान कानून की मांग करने वाली याचिकाओं पर आई है (uniform laws for divorce).

केंद्र ने कहा है कि मुद्दों के संबंध में कानून एक नीतिगत मामला है जिसे संसद में मौजूद लोगों के प्रतिनिधियों द्वारा तय करने की आवश्यकता है. केंद्र ने कहा कि विधि आयोग को पहले ही मुद्दों की जांच करने और सिफारिशें देने का काम सौंपा गया है.

उसने मामले पर विभिन्न हितधारकों से विचार-विमर्श और इनपुट के बाद अपने पोर्टल पर 'परिवार कानून का सुधार' अपलोड किया है. अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति होने पर मामला फिर से उसके सामने रखा जाएगा. उल्लेखनीय है कि विधि आयोग में अध्यक्ष की नियुक्ति की मांग वाली याचिका भी शीर्ष अदालत में लंबित है.

भाजपा सदस्य और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई याचिका को भी सरकार ने चुनौती दी है. केंद्र ने कहा कि याचिकाकर्ता ने समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के निर्देश के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष पहले ही इसी तरह की याचिका दायर की थी. साथ ही शीर्ष अदालत में भी याचिका दायर की थी. इसके अलावा, केंद्र ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता को लोगों की पीड़ा में दिलचस्पी होती तो वह मामलों के साथ अदालत का दरवाजा खटखटाता, लेकिन इसके बजाए अदालत में एक जनहित याचिका दायर की. सरकार ने कहा कि याचिका को लागत के साथ खारिज किया जाना चाहिए.

पढ़ें- संसदीय समिति ने 'समान नागरिक संहिता' के क्रियान्वयन पर आश्वासन वापस लेने का अनुरोध किया स्वीकार

नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक हलफनामा दायर कर कहा है कि संसद संप्रभु है और कोई भी प्राधिकरण उसे कानून बनाने के लिए निर्देश जारी नहीं कर सकता है. केंद्र की यह प्रतिक्रिया तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने के लिए एक समान कानून की मांग करने वाली याचिकाओं पर आई है (uniform laws for divorce).

केंद्र ने कहा है कि मुद्दों के संबंध में कानून एक नीतिगत मामला है जिसे संसद में मौजूद लोगों के प्रतिनिधियों द्वारा तय करने की आवश्यकता है. केंद्र ने कहा कि विधि आयोग को पहले ही मुद्दों की जांच करने और सिफारिशें देने का काम सौंपा गया है.

उसने मामले पर विभिन्न हितधारकों से विचार-विमर्श और इनपुट के बाद अपने पोर्टल पर 'परिवार कानून का सुधार' अपलोड किया है. अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति होने पर मामला फिर से उसके सामने रखा जाएगा. उल्लेखनीय है कि विधि आयोग में अध्यक्ष की नियुक्ति की मांग वाली याचिका भी शीर्ष अदालत में लंबित है.

भाजपा सदस्य और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई याचिका को भी सरकार ने चुनौती दी है. केंद्र ने कहा कि याचिकाकर्ता ने समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के निर्देश के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष पहले ही इसी तरह की याचिका दायर की थी. साथ ही शीर्ष अदालत में भी याचिका दायर की थी. इसके अलावा, केंद्र ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता को लोगों की पीड़ा में दिलचस्पी होती तो वह मामलों के साथ अदालत का दरवाजा खटखटाता, लेकिन इसके बजाए अदालत में एक जनहित याचिका दायर की. सरकार ने कहा कि याचिका को लागत के साथ खारिज किया जाना चाहिए.

पढ़ें- संसदीय समिति ने 'समान नागरिक संहिता' के क्रियान्वयन पर आश्वासन वापस लेने का अनुरोध किया स्वीकार

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