नई दिल्ली : भारत सरकार ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशकों के कार्यकाल को 5 साल तक बढ़ा दिया है. अब तक इन केंद्रीय एजेंसियों के प्रमुखों का कार्यकाल दो साल का ही होता था. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दोनों अध्यादेशों पर हस्ताक्षर कर दिए हैं.
अध्यादेश के अनुसार, दो साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद तीन साल के लिए हर साल शीर्ष एजेंसियों के प्रमुखों के कार्यकाल को बढ़ाया जा सकता है.
ईडी और सीबीआई के प्रमुखों का कार्यकाल बढ़ाने पर विपक्षीय पार्टियों ने मोदी सरकार की आलोचना की है. तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओब्रायन ने ट्वीट कर लिखा कि संसद का सत्र दो सप्ताह बाद शुरू हो रहा है, ऐसे में ईडी-सीबीआई के प्रमुख का कार्यकाल बढ़ाना संसद का तिरस्कार किया है. ओब्रायन ने कटाक्ष करते हुए कहा कि शाह और मोदी ने भारत को 'गुजरात मॉडल' बनाने का वादा किया था. क्या हम उस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.
वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने ट्वीट कर लिखा कि ईडी और सीबीआई प्रमुखों का कार्यकाल पांच साल बढ़ाना दोहरी मार है. मोदी सरकार अध्यादेश लाकर संसदीय प्रणाली का उल्लंघन किया है.
कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने कहा, सरकार की क्या मजबूरी है, क्यों से फैसला किया गया. उन्होंने कहा कि जो डायरेक्टर सरकार की मर्जी से काम करेगा उसका टेन्योर बढ़ा दिया जाएगा और जो मर्जी के खिलाफ काम करेगा उसे निकाल दिया जाएगा. इसी तरह देश चलाएंगे. मैं इसकी निंदा करता हूं.
बता दें कि विनीत नारायण के प्रसिद्ध मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के मद्देनजर सीबीआई और ईडी के निदेशकों की नियुक्ति की तारीख से उनका दो साल का निश्चित कार्यकाल होता है.
केंद्रीय सतर्कता आयोग (संशोधन) अध्यादेश को 1984 बैच के भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के अधिकारी और मौजूदा प्रवर्तन निदेशालय प्रमुख एस के मिश्रा की सेवानिवृत्ति से महज तीन दिन पहले जारी किया गया है.
सरकार ने उनका दो साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद 2020 में एक और सेवा विस्तार दिया था.
इस मामले में इस साल उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हुई जिसने सेवा विस्तार को रद्द नहीं किया, लेकिन सरकार से मिश्रा को 17 नवंबर के बाद और सेवा विस्तार नहीं देने को कहा.
हालांकि, अधिकारियों ने कहा कि अध्यादेश लागू होने के बाद देखना होगा कि मिश्रा ईडी प्रमुख के रूप में काम करते रहेंगे या नहीं.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा जारी अध्यादेश जो एक बार में लागू होता है, में कहा गया है: बशर्ते जिस अवधि के लिए प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक अपनी प्रारंभिक नियुक्ति पर पद धारण करते हैं, उसे सार्वजनिक हित में, खंड (ए) के तहत समिति की सिफारिश पर तथा लिखित रूप में दर्ज किए जाने वाले कारणों के लिए, एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है.
इसमें कहा गया है, बशर्ते कि प्रारंभिक नियुक्ति में उल्लिखित अवधि सहित कुल मिलाकर पांच साल की अवधि पूरी होने के बाद ऐसा कोई विस्तार प्रदान नहीं किया जाएगा.
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ईडी निदेशक की नियुक्ति केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिश पर केंद्र सरकार करती है. इसके सदस्यों में सतर्कता आयुक्त, गृह सचिव, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के सचिव तथा राजस्व सचिव शामिल हैं.
सरकार ने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन (डीएसपीई) (संशोधन) अध्यादेश, 2021 भी जारी किया है और यह भी एक बार में लागू होता है.
इस अध्यादेश में डीएसपीई कानून में प्रावधान जोड़ा गया है कि बशर्ते जिस अवधि के लिए निदेशक अपनी प्रारंभिक नियुक्ति पर पद धारण करते हैं, उसे सार्वजनिक हित में, धारा 44 की उप-धारा (1) के तहत समिति की सिफारिश पर तथा लिखित रूप में दर्ज किए जाने वाले कारणों के लिए, एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है.
इसमें कहा गया, बशर्ते प्रारंभिक नियुक्ति में उल्लेखित अवधि समेत कुल पांच वर्ष की अवधि पूरी होने के बाद ऐसा कोई सेवा विस्तार नहीं दिया जाएगा.
सीबीआई के निदेशक का चयन प्रधानमंत्री, भारत के प्रधान न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष के नेता की एक समिति की सिफारिश के आधार पर होता है.
सीबीआई और ईडी के प्रमुखों के लिए दो वर्ष के तय कार्यकाल का उद्देश्य उन्हें उनके द्वारा की गयी किसी जांच के लिए प्रतिकूल कार्रवाई की चिंता किये बिना सरकार के हस्तक्षेप से मुक्त होकर कार्य करना सुनिश्चित करना है.