नई दिल्ली : दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा) में एसोसिएट प्रोफेसर (Associate Professor at Dayal Singh College) डॉ. पवन कुमार 2022 से अपने जीवन के सबसे कठिन समय का सामना कर रहे हैं, क्योंकि केंद्रीय विश्वविद्यालय, हरियाणा में प्रोफेसर बनने का उनका सपना कुप्रबंधन और 'जाली दस्तावेजों' (चयनित उम्मीदवार द्वारा प्रस्तुत) के कारण चकनाचूर हो गया है.
इस रिपोर्टर के हाथ लगे दस्तावेजों के अनुसार, इसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पद के लिए विज्ञापन अप्रैल 2022 में निकला था. पहली ही सूची में डॉ. पवन के साथ डॉ. राजीव कुमार का नाम था. इंटरव्यू की तारीख 11 अक्टूबर 2022 तय की गई थी, लेकिन बाद में इसे टाल दिया गया.
डॉ. पवन द्वारा केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को की गई शिकायत में भी इस बात पर प्रकाश डाला गया है. शिकायत में उन्होंने कहा कि 'उक्त पद के लिए सहायक रजिस्ट्रार (स्था.) सह उम्मीदवार के रूप में अपने पद का लाभ उठाते हुए, राजीव कुमार सिंह ने 4 दिसंबर, 2022 को साक्षात्कार की नई तिथि घोषित होने पर साक्षात्कार के लिए बुलाए जाने वाले उम्मीदवारों की सूची से मेरा नाम हटा दिया.'
दिलचस्प बात यह है कि प्रोफेसर सिंह पर हरियाणा के केंद्रीय विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति के दौरान फर्जी दस्तावेज जमा करने के गंभीर आरोप भी लगे हैं. डॉ. पवन ने भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर), हरियाणा पुलिस, शिक्षा मंत्रालय और अन्य सहित संबंधित अधिकारियों के पास भी अपनी शिकायतें दर्ज कराई हैं.
प्रो. सिंह ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (2011-2012) में एक पीडीएफ कार्यक्रम में दाखिला लिया, और अपनी फेलोशिप पूरी होने से पहले ही उन्होंने आईसीएसएसआर से बिना किसी पूर्व अनुमति के 25 जुलाई, 2012 को केंद्रीय विश्वविद्यालय, झारखंड में अतिथि संकाय सदस्य के रूप में प्रवेश लिया. पीडीएफ नियमों के अनुसार, स्कॉलर आईसीएसएसआर से अग्रिम अनुमति के बिना अपनी फेलोशिप के दौरान कोई अन्य नौकरी नहीं कर सकता है.
शिकायत में डॉ. पवन ने ICCSR और अन्य से कहा कि 'यह ICCSR के नियमों और विनियमों का उल्लंघन है' और अधिकारियों से न्याय करने की गुहार लगाई है. डॉ. पवन की शिकायत के जवाब में आईसीएसएसआर ने कहा कि मामले की जांच की जा रही है और तथ्यों का पता लगाने और जांच करने के बाद उचित उपाय किए जाएंगे. इस बीच, आईसीएसएसआर ने ईमेल दिनांक 09.05.2023 के माध्यम से भी निर्देश दिया है कि 'डॉ. राजीव कुमार सिंह और हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय मामले के समाधान तक उक्त प्रमाण पत्र का उपयोग नहीं करेंगे.'
इस रिपोर्टर द्वारा एक्सेस किए गए एक आरटीआई जवाब के अनुसार, 'डॉ. सिंह ने आईसीएसएसआर पीडीएफ को पूरा होने से पहले ही बंद कर दिया, और उन्होंने केंद्रीय विश्वविद्यालय (झारखंड) में अपने कार्यकाल के बारे में न तो आईसीसीएसआर और न ही संबद्धता संस्थान को सूचित किया.'
एक प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उन्होंने केवल 18 महीनों के लिए अपनी फैलोशिप की, लेकिन पूर्ण फैलोशिप के लिए पत्र प्राप्त किया, जो चिंता का विषय है और कुशासन और पूर्वाग्रह को दर्शाता है.
डॉ. पवन कुमार ने डॉ. राजीव कुमार सिंह के खिलाफ कथित तौर पर नियुक्ति में धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया है और 'गहरी साजिश' की शिकायत करनाल पुलिस स्टेशन में दी है. शिकायत में लगाई गई धाराओं में 409 (आपराधिक विश्वासघात), 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी), 467 (जालसाजी) और 120बी (आपराधिक साजिश) शामिल हैं.
ये जानकारी सामने आई है-
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शिकायत में क्या : 'यह स्पष्ट हो गया है कि आरोपी व्यक्ति ने धोखे के एक विस्तृत जाल के माध्यम से आईसीएसएसआर को दो साल की अवधि के लिए फेलोशिप पूरा करने के लिए फर्जी प्रमाण पत्र जारी करने के लिए मजबूर किया है.उन्होंने बीएचयू को आईसीएसएसआर, सीयूजे (केंद्रीय विश्वविद्यालय, झारखंड) से प्राप्त फेलोशिप पर एक फर्जी प्रमाण पत्र जारी करने के लिए कहा. एक संविदा के रूप में उनकी अतिथि संकाय नियुक्ति का प्रतिनिधित्व करने के लिए और सीयूएच इन झूठे दस्तावेजों के आधार पर उन्हें नियुक्त करने के लिए. ये सभी दस्तावेज एजेंसियों द्वारा मामले के तथ्यों की जांच के आधार पर नहीं बल्कि स्वयं राजीव द्वारा किए गए अनुरोधों के आधार पर जारी किए गए थे.'
कुलसचिव बोले, जांच कमेटी बनाई गई है : केंद्रीय विश्वविद्यालय, हरियाणा में कुलसचिव सुनील गुप्ता ने इस संवाददाता से कहा, 'कुलपति (वीसी) ने एक कमेटी गठित की है. यूजीसी, आईसीएसएसआर, झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय और बीएचयू सहित सभी संबंधित अधिकारियों से मामले पर अपना जवाब दाखिल करने का अनुरोध किया गया है. इस मामले को स्क्रीनिंग कमेटी देख रही है और डॉ. राजीव कुमार को जवाब देने की डेडलाइन दी गई है.'
उन्होंने कहा कि 'यूजीसी सर्वोच्च निकाय है, और हमने अनुरोध किया है कि वे इस स्टैंड पर अपना स्पष्टीकरण प्रदान करें कि क्या पीडीएफ को सीधी भर्ती और इसकी शर्तों के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि हम इस मामले को देख रहे हैं और जल्द ही न्याय मिलेगा.'
जब इस रिपोर्टर ने सेंट्रल यूनिवर्सिटी हरियाणा के वीसी प्रो. टंकेश्वर सिंह से संपर्क किया तो उन्होंने कहा, 'हम मामले को देख रहे हैं और हमने एक समिति भी गठित की है.'
जब डॉ. सिंह को दी गई समय सीमा और कथित रूप से उनके द्वारा जमा किए गए जाली दस्तावेजों पर टिप्पणी करने के लिए कहा गया, तो वीसी जवाब देने में अनिच्छुक दिखे और कहा, 'हां, डॉ. सिंह को समय सीमा दी गई है और वह जल्द ही अपना जवाब दाखिल करेंगे.'
जब प्रोफेसर राजीव कुमार से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा, 'मुझे किसी कमेटी के बारे में कोई जानकारी नहीं है. मैं सिर्फ अपना काम कर रहा हूं. न तो विश्वविद्यालय ने मुझसे कुछ कहा है और न ही मुझे किसी व्यक्ति की ओर से कोई शिकायत मिली है. मुझे आईसीएसएसआर से कुछ संदेश प्राप्त हुआ है जिसे मैं देख रहा हूं.'
'इस पर कि क्या उन्होंने पीडीएफ फेलोशिप को उसके 2 साल पूरे होने से पहले बंद कर दिया.', उसने कहा 'आपसे किसने कहा? मेरे खिलाफ बेमतलब की बातें फैलाई जा रही हैं. मेरे पास बहुत सारे शैक्षणिक कार्य हैं जो मुझे करने हैं और मैं अदालत में ऐसे मामलों का जवाब दूंगा. मेरे पास अपने कागजात हैं और मैं ऐसी किसी समिति के बारे में कुछ नहीं जानता.'
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रो. पवन ने कहा कि 'वीसी और डॉ. सिंह दोनों विवादास्पद शख्सियत हैं, और बाद वाले को लगभग सभी मामलों में वीसी का समर्थन और विश्वास प्राप्त है; इसलिए, इतनी गंभीर जालसाजी के बावजूद, वह अभी भी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में काम कर रहा है.'
उन्होंने कहा कि 'डॉ. राजीव कुमार सिंह ने अपने शोध पत्रों में भी जाली दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं, और उन्हें केंद्रीय विश्वविद्यालय, झारखंड में अतिथि संकाय का पद दिया गया. लेकिन उन्होंने दिखाया है कि उन्हें 'अनुबंध' के आधार पर पद दिया जा रहा था.'
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