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रिपोर्ट में खुलासा- प. बंगाल के स्कूलों में कंप्यूटर और इंटरनेट के उपयोग की स्थिति दयनीय

कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते ऑनलाइन या वर्चुअल कक्षाएं एक नियमित सुविधा बन गई हैं. लेकिन शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली प्लस (UDISE+) की रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल के स्कूलों में कंप्यूटर और इंटरनेट उपयोग की स्थिति चिंताजनक है.

बंगाल के स्कूल
बंगाल के स्कूल
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Published : Jul 15, 2021, 10:04 PM IST

कोलकाता : कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते ऑनलाइन या वर्चुअल कक्षाएं एक नियमित सुविधा बन गई हैं. हालांकि इससे पहले कई राज्य सरकारें स्कूल स्तर पर सामूहिक कंप्यूटर शिक्षा के लिए दबाव बना रहीं थीं. वर्तमान समय में कंप्यूटर शिक्षा हो या ऑनलाइन कक्षा हो, इन सबके लिए कंप्यूटर और इंटरनेट कनेक्शन इन दोनों ही बुनियादी चीजों का होना जरूरी है. इस संबंध में केंद्र सरकार की ताजा रिपोर्ट में पश्चिम बंगाल के स्कूलों में कंप्यूटर और इंटरनेट के उपयोग की दयनीय तस्वीर को बयां किया गया है.

इस बारे में शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली प्लस (UDISE+) की 2019-20 की रिपोर्ट से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल के केवल 13 फीसदी स्कूलों में कंप्यूटर चालू हालत में हैं. वहीं राज्य के स्कूलों में इंटरनेट के उपयोग की तस्वीर और भी दयनीय है. रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिम बंगाल के कुल स्कूलों में से केवल 10.2 फीसदी के पास ही इंटरनेट कनेक्शन हैं. इसके अलावा पश्चिम बंगाल में कुल स्कूलों की संख्या 95,755 है, जिनमें से 86,456 स्कूल सरकारी हैं. वहीं 93 सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल हैं और शेष 10,424 निजी स्कूल हैं. रिपोर्ट के मुताबिक यदि पश्चिम बंगाल में सरकारी स्कूलों और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों की संख्या को जोड़ दिया जाए तो उनमें से केवल 9.65 फीसदी के पास ही इंटरनेट कनेक्शन है.

ये भी पढ़ें - सड़कों पर झाडू लगाने से लेकर RAS बनने की कहानी, सुनिए जोधपुर की 'आशा' की जुबानी

हालांकि राज्य के निजी स्कूलों की स्थिति थोड़ा बेहतर है क्योंकि यहां का आंकड़ा 30.11 फीसदी है. इस संबंध में कोलकाता स्थित अकादमिक प्रशासक सुचिश्मिता बागची ने ईटीवी भारत को बताया कि यूडीआईएसई+ द्वारा जारी किए गए आंकड़ाें से स्पष्ट है कि राज्य में समय की आवश्यकता के साथ आगे बढ़ने की कोई राजनीतिक या प्रशासनिक इच्छाशक्ति नहीं है, इस वजह से ऐसे दयनीय आंकड़े हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि मैं उन सामान्य छात्रों के लिए महसूस करती हूं जो बिना किसी गलती के राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगी परीक्षाओं में लगातार पिछड़ रहे हैं.

वहीं शिक्षाविद् चिराश्री दासगुप्ता ने कहा कि राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी के अलावा एक और समस्या है. उन्होंने कहा कि स्कूल में कंप्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षा पर सही जोर देने के लिए पहली आवश्यकता बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का निर्माण करना है जो अकेले राज्य सरकार के लिए संभव नहीं है. इसलिए राज्य सरकार को तुरंत विप्रो या माइक्रोसॉफ्ट जैसी प्रतिष्ठित पेशेवर एजेंसियों के साथ गठजोड़ करना चाहिए, जो न केवल राज्य सरकार के लिए बुनियादी ढांचे का विकास करेगी, बल्कि शिक्षकों और छात्रों को एक ही समय में प्रशिक्षित और शिक्षित करेगी. उन्होंने कहा कि दिल्ली जैसी कई राज्य सरकारों ने स्कूल स्तर पर विकास के बुनियादी ढांचे के लिए इस दृष्टिकोण को अपनाया है.

कोलकाता : कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते ऑनलाइन या वर्चुअल कक्षाएं एक नियमित सुविधा बन गई हैं. हालांकि इससे पहले कई राज्य सरकारें स्कूल स्तर पर सामूहिक कंप्यूटर शिक्षा के लिए दबाव बना रहीं थीं. वर्तमान समय में कंप्यूटर शिक्षा हो या ऑनलाइन कक्षा हो, इन सबके लिए कंप्यूटर और इंटरनेट कनेक्शन इन दोनों ही बुनियादी चीजों का होना जरूरी है. इस संबंध में केंद्र सरकार की ताजा रिपोर्ट में पश्चिम बंगाल के स्कूलों में कंप्यूटर और इंटरनेट के उपयोग की दयनीय तस्वीर को बयां किया गया है.

इस बारे में शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली प्लस (UDISE+) की 2019-20 की रिपोर्ट से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल के केवल 13 फीसदी स्कूलों में कंप्यूटर चालू हालत में हैं. वहीं राज्य के स्कूलों में इंटरनेट के उपयोग की तस्वीर और भी दयनीय है. रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिम बंगाल के कुल स्कूलों में से केवल 10.2 फीसदी के पास ही इंटरनेट कनेक्शन हैं. इसके अलावा पश्चिम बंगाल में कुल स्कूलों की संख्या 95,755 है, जिनमें से 86,456 स्कूल सरकारी हैं. वहीं 93 सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल हैं और शेष 10,424 निजी स्कूल हैं. रिपोर्ट के मुताबिक यदि पश्चिम बंगाल में सरकारी स्कूलों और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों की संख्या को जोड़ दिया जाए तो उनमें से केवल 9.65 फीसदी के पास ही इंटरनेट कनेक्शन है.

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हालांकि राज्य के निजी स्कूलों की स्थिति थोड़ा बेहतर है क्योंकि यहां का आंकड़ा 30.11 फीसदी है. इस संबंध में कोलकाता स्थित अकादमिक प्रशासक सुचिश्मिता बागची ने ईटीवी भारत को बताया कि यूडीआईएसई+ द्वारा जारी किए गए आंकड़ाें से स्पष्ट है कि राज्य में समय की आवश्यकता के साथ आगे बढ़ने की कोई राजनीतिक या प्रशासनिक इच्छाशक्ति नहीं है, इस वजह से ऐसे दयनीय आंकड़े हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि मैं उन सामान्य छात्रों के लिए महसूस करती हूं जो बिना किसी गलती के राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगी परीक्षाओं में लगातार पिछड़ रहे हैं.

वहीं शिक्षाविद् चिराश्री दासगुप्ता ने कहा कि राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी के अलावा एक और समस्या है. उन्होंने कहा कि स्कूल में कंप्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षा पर सही जोर देने के लिए पहली आवश्यकता बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का निर्माण करना है जो अकेले राज्य सरकार के लिए संभव नहीं है. इसलिए राज्य सरकार को तुरंत विप्रो या माइक्रोसॉफ्ट जैसी प्रतिष्ठित पेशेवर एजेंसियों के साथ गठजोड़ करना चाहिए, जो न केवल राज्य सरकार के लिए बुनियादी ढांचे का विकास करेगी, बल्कि शिक्षकों और छात्रों को एक ही समय में प्रशिक्षित और शिक्षित करेगी. उन्होंने कहा कि दिल्ली जैसी कई राज्य सरकारों ने स्कूल स्तर पर विकास के बुनियादी ढांचे के लिए इस दृष्टिकोण को अपनाया है.

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