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केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, 'धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार में धर्मांतरण का अधिकार शामिल नहीं'

धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार में लोगों को किसी खास धर्म में धर्मांतरित करने का मौलिक अधिकार शामिल नहीं है. केंद्र सरकार ने यह जवाब सुप्रीम कोर्ट में दाखिल दिया है. धर्म परिवर्तन को लेकर कानून बनाने की मांग लंबे समय से चल रही है. इसी को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि देश के कुछ राज्य ऐसे हैं, जहां इस प्रथा पर अंकुश लगाने के लिए पहले से अधिनियम पारित हैं.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट
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Published : Nov 28, 2022, 2:59 PM IST

Updated : Nov 28, 2022, 3:58 PM IST

नई दिल्ली : केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार में लोगों को किसी खास धर्म में धर्मांतरित करने का मौलिक अधिकार शामिल नहीं है. केंद्र की यह प्रतिक्रिया अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की उस याचिका के संबंध में आई है, जिसमें कहा गया है कि धोखे से, धमकाकर, उपहार और मौद्रिक लाभ प्रदान कर धर्म परिवर्तन संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन है.

याचिका में दावा किया गया है कि अगर इस तरह के धर्मांतरण पर रोक नहीं लगाई गई तो भारत में हिंदू जल्द ही अल्पसंख्यक हो जाएंगे. एक हलफनामे में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा, धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार में धोखाधड़ी, जबरदस्ती, लालच या ऐसे अन्य माध्यमों से अन्य लोगों को किसी विशेष धर्म में परिवर्तित करने का मौलिक अधिकार शामिल नहीं है. केंद्र सरकार ने कहा कि याचिकाकर्ता ने धोखाधड़ी, जबरदस्ती, प्रलोभन या ऐसे अन्य माध्यमों से देश में कमजोर नागरिकों के धर्मांतरण के मामलों पर प्रकाश डाला है.

केंद्र ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत आने वाले 'प्रचार' शब्द के अर्थ और तात्पर्य पर संविधान सभा में विस्तार से चर्चा और बहस हुई थी और उक्त शब्द को शामिल करने को संविधान सभा ने स्पष्टीकरण के बाद ही पारित किया था कि अनुच्छेद 25 के तहत मौलिक अधिकार में धर्मांतरण का अधिकार शामिल नहीं होगा. केंद्र ने कहा कि शीर्ष अदालत ने माना है कि 'प्रचार' शब्द किसी व्यक्ति को धर्मांतरित करने के अधिकार की परिकल्पना नहीं करता है, बल्कि यह अपने सिद्धांतों की व्याख्या द्वारा धर्म को फैलाने का सकारात्मक अधिकार है.

केंद्र ने कहा कि वह वर्तमान याचिका में उठाए गए मुद्दे की गंभीरता से वाकिफ है और महिलाओं और आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों सहित समाज के कमजोर वर्गों के पोषित अधिकारों की रक्षा के लिए अधिनियम आवश्यक हैं. केंद्र ने कहा कि वर्तमान विषय पर नौ राज्य सरकारों ओडिशा, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और हरियाणा में पहले से ही कानून है. कोर्ट ने कहा कि वर्तमान याचिका में मांगी गई राहत को पूरी गंभीरता से लिया जाएगा और उचित कदम उठाए जाएंगे.

गौरतलब है कि 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जबरन धर्मांतरण एक बहुत गंभीर मुद्दा है, और यह राष्ट्र की सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है और केंद्र से कहा कि जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं, इस पर अपना रुख स्पष्ट करें. शीर्ष अदालत ने कहा कि धर्म की स्वतंत्रता है, लेकिन जबरन धर्मांतरण पर कोई स्वतंत्रता नहीं है. उपाध्याय की याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 25 में निहित धर्म की स्वतंत्रता विशेष रूप से एक विश्वास के संबंध में प्रदान नहीं की जाती है, लेकिन इसमें सभी धर्म समान रूप से शामिल हैं, और एक व्यक्ति इसका उचित रूप से आनंद ले सकता है यदि वह अन्य धर्मावलंबियों के इसी प्रकार के अधिकार का सम्मान करता हो. किसी को भी किसी अन्य का धर्म में बदलने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है.

पढ़ें: AP capital row : आंध्र प्रदेश राजधानी विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया

नई दिल्ली : केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार में लोगों को किसी खास धर्म में धर्मांतरित करने का मौलिक अधिकार शामिल नहीं है. केंद्र की यह प्रतिक्रिया अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की उस याचिका के संबंध में आई है, जिसमें कहा गया है कि धोखे से, धमकाकर, उपहार और मौद्रिक लाभ प्रदान कर धर्म परिवर्तन संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन है.

याचिका में दावा किया गया है कि अगर इस तरह के धर्मांतरण पर रोक नहीं लगाई गई तो भारत में हिंदू जल्द ही अल्पसंख्यक हो जाएंगे. एक हलफनामे में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा, धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार में धोखाधड़ी, जबरदस्ती, लालच या ऐसे अन्य माध्यमों से अन्य लोगों को किसी विशेष धर्म में परिवर्तित करने का मौलिक अधिकार शामिल नहीं है. केंद्र सरकार ने कहा कि याचिकाकर्ता ने धोखाधड़ी, जबरदस्ती, प्रलोभन या ऐसे अन्य माध्यमों से देश में कमजोर नागरिकों के धर्मांतरण के मामलों पर प्रकाश डाला है.

केंद्र ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत आने वाले 'प्रचार' शब्द के अर्थ और तात्पर्य पर संविधान सभा में विस्तार से चर्चा और बहस हुई थी और उक्त शब्द को शामिल करने को संविधान सभा ने स्पष्टीकरण के बाद ही पारित किया था कि अनुच्छेद 25 के तहत मौलिक अधिकार में धर्मांतरण का अधिकार शामिल नहीं होगा. केंद्र ने कहा कि शीर्ष अदालत ने माना है कि 'प्रचार' शब्द किसी व्यक्ति को धर्मांतरित करने के अधिकार की परिकल्पना नहीं करता है, बल्कि यह अपने सिद्धांतों की व्याख्या द्वारा धर्म को फैलाने का सकारात्मक अधिकार है.

केंद्र ने कहा कि वह वर्तमान याचिका में उठाए गए मुद्दे की गंभीरता से वाकिफ है और महिलाओं और आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों सहित समाज के कमजोर वर्गों के पोषित अधिकारों की रक्षा के लिए अधिनियम आवश्यक हैं. केंद्र ने कहा कि वर्तमान विषय पर नौ राज्य सरकारों ओडिशा, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और हरियाणा में पहले से ही कानून है. कोर्ट ने कहा कि वर्तमान याचिका में मांगी गई राहत को पूरी गंभीरता से लिया जाएगा और उचित कदम उठाए जाएंगे.

गौरतलब है कि 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जबरन धर्मांतरण एक बहुत गंभीर मुद्दा है, और यह राष्ट्र की सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है और केंद्र से कहा कि जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं, इस पर अपना रुख स्पष्ट करें. शीर्ष अदालत ने कहा कि धर्म की स्वतंत्रता है, लेकिन जबरन धर्मांतरण पर कोई स्वतंत्रता नहीं है. उपाध्याय की याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 25 में निहित धर्म की स्वतंत्रता विशेष रूप से एक विश्वास के संबंध में प्रदान नहीं की जाती है, लेकिन इसमें सभी धर्म समान रूप से शामिल हैं, और एक व्यक्ति इसका उचित रूप से आनंद ले सकता है यदि वह अन्य धर्मावलंबियों के इसी प्रकार के अधिकार का सम्मान करता हो. किसी को भी किसी अन्य का धर्म में बदलने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है.

पढ़ें: AP capital row : आंध्र प्रदेश राजधानी विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया

Last Updated : Nov 28, 2022, 3:58 PM IST
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