मुंबई : महाराष्ट्र सरकार ने गुरुवार को बंबई उच्च न्यायालय को बताया कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) निदेशक सुबोध जायसवाल को राज्य के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ केंद्रीय एजेंसी की जांच में खुद को 'संभावित आरोपी' माना जाना चाहिए.
महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डेरियस खंबाटा ने न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एस वी कोतवाल की पीठ को बताया कि 2019 से 2020 के दौरान, जब जायसवाल राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) थे, तब वह पुलिस स्थापना बोर्ड का भी हिस्सा थे.
खंबाटा ने कहा कि जायसवाल पुलिस अधिकारियों के तबादलों और तैनाती के फैसलों में शामिल थे, जिसकी जांच अब सीबीआई कर रही है. महाराष्ट्र सरकार ने सीबीआई द्वारा राज्य के मुख्य सचिव सीताराम कुंटे और राज्य के वर्तमान डीजीपी संजय पांडे को अनिल देशमुख के खिलाफ एजेंसी की जांच के संबंध में बयान दर्ज करने के लिए जारी समन को उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी है.
खंबाटा ने कहा कि तबादलों और तैनाती की सिफारिशों को जायसवाल ने देशमुख के कार्यकाल के दौरान डीजीपी के रूप में अपनी क्षमता के अनुसार मंजूरी दी थी. उन्होंने कहा कि पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के कार्यकाल के दौरान किए गए राज्य पुलिस अधिकारियों के तबादलों और तैनाती की सीबीआई जांच चल रही है.
देशमुख के खिलाफ जांच कर रही है सीबीआई
सीबीआई ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता देशमुख के खिलाफ मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह के भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कर रही है. उच्च न्यायालय के पांच अप्रैल, 2021 के आदेश के बाद सीबीआई ने देशमुख के खिलाफ परमबीर सिंह के आरोपों की प्रारंभिक जांच की और बाद में प्राथमिकी दर्ज की थी. इस साल सितंबर में, सीबीआई ने मामले में बयान दर्ज करने के लिए महाराष्ट्र के मुख्य सचिव सीताराम कुंटे और वर्तमान डीजीपी संजय पांडे को तलब किया था.
समन को चुनौती देते हुए महाराष्ट्र सरकार ने उच्च न्यायालय का रुख किया. खंबाटा ने यह भी बताया कि उच्च न्यायालय के पांच अप्रैल के आदेश में कहा गया था कि जो कोई भी कथित भ्रष्टाचार का हिस्सा था, यहां तक कि खुद शिकायतकर्ता की भी जांच की जानी चाहिए.
खंबाटा ने दावा किया कि जायसवाल तबादलों के संबंध में हुई हर बैठक में मौजूद थे. उन्होंने कहा, 'तो क्या सीबीआई को जायसवाल से यह नहीं पूछना चाहिए कि उन्होंने इन तबादलों की सिफारिश क्यों की? लेकिन ऐसा करने के लिए, एक सीबीआई अधिकारी को अपने ही निदेशक को बुलाकर पूछताछ करनी होगी.'
सीबीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी और अनिल सिंह ने राज्य की याचिका का विरोध किया. लेखी ने दावा किया, 'राज्य का रुख बेतुका है. यह जांच में देरी करने और इसे बाधित करने के लिए एक गलत सोच वाली याचिका है.'
पढ़ें- अनिल देशमुख ने कोर्ट से कहा, ईडी की जांच हत्या व जबरन वसूली के आरोपियों के दावों पर आधारित
अदालत ने कहा कि वह समन पर कोई अंतरिम रोक नहीं लगा सकती क्योंकि इसका मतलब मामले के गुण-दोष पर टिप्पणी करना होगा. अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तिथि 28 अक्टूबर तय की.
(पीटीआई-भाषा)