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92 चुनावों में हार चुके अम्बेडकरी हसनुराम ने इस बार पंचायत चुनाव में किया नामांकन

आगरा में एक ऐसा व्यक्ति है जो चुनावों में लगातार हार का रिकॉर्ड बना रहा है. अब तक वह लगभग 90 से ज्यादा चुनावों में नामांकन कर चुका है. ग्राम प्रधान से लेकर राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन कर चुके इस शख्स ने जिला पंचायत सदस्य के लिए भी नामांकन किया है.

defeated 92 times in elections
92 चुनावों में हार का सामना कर चुके हैं हसनुराम
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Published : Apr 5, 2021, 1:40 PM IST

आगरा : उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. जिला मुख्यालय पर प्रत्याशी पूरे दमखम से नामांकन करने पहुंच रहे हैं. बड़े राजनीतिक दलों के दिग्गज प्रत्याशियों के बीच एक शख्स ऐसे भी है, जो पूरे चुनाव में चर्चा का केंद्र बना हुआ है. हाथ मे छड़ी ओर बगल में खादी का झोला लिए 74 वर्षीय अम्बेडकरी हसनुराम सभी के लिए एक मिसाल बन चुके हैं. उन्होंने अब 93वीं बार वार्ड 30 से जिला पंचायत सदस्य के लिए नामांकन किया है. इससे पहले वह 92 चुनावों में हार का सामना कर चुके हैं.

92 चुनावों में हार का सामना कर चुके हैं हसनुराम

कौन है अम्बेडकरी हसनुराम

74 साल के अम्बेडकरी हसनुराम पेशे से मनरेगा मजदूर हैं. 15 अगस्त 1947 को हसनुराम का रामनगर(खैरागढ़) गांव मे जन्म हुआ था. हसनुराम की पत्नी का नाम शिवदेवी है. दोनों के पांच पुत्र हैं, जो मजदूर हैं. हसनुराम अम्बेडकरी वर्ष 1985 से चुनाव लड़ रहे हैं. हसनुराम वार्ड सदस्य से लेकर राष्ट्रपति तक के चुनाव लड़ चुके हैं.

बगावत कर चुनाव लड़ने की ठानी

हसनुराम अम्बेडकरी बताते है कि सन 1985 में वह बसपा के कर्मठ सिपाही थे. उन्होंने बसपा से विधानसभा चुनाव के लिए टिकट मांगी थी. तब बसपा के एक बड़े नेता ने उन पर तंज कसते हुए कहा था कि 'तुम्हें तुम्हारी बीवी तक ठीक से नहीं पहचानती है, तो कोई और क्या तुम्हें वोट देगा'. यही बात हसनुराम के दिल पर लग गई. तब उन्होंने बसपा छोड़ दी. इसके बाद 1988 में खैरागढ़ विधानसभा से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उन्होंने चुनाव लड़ा. तबसे लगातार वह चुनाव लड़ते आ रहे हैं.

शतक के करीब हसनुराम

हसनुराम अम्बेडकरी इस बार 93वीं बार चुनाव लड़ रहे हैं. वह शतक से सिर्फ 7 कदम दूर है. वह 100 बार चुनाव में भाग लेकर हारने का रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं. इसलिए वह किसी भी चुनाव को नहीं छोड़ते. हर चुनाव में नामांकन करते हैं. पूरे जोश के साथ प्रचार भी करते हैं, लेकिन हारने के बाद भी उनका हौसला नहीं टूटा है. हसनुराम की पत्नी शिवदेवी भी वार्ड 30 से प्रधान पद के लिए चुनाव लड़ रही हैं. उन्होंने भी ब्लॉक कार्यालय पर निर्दलीय नामांकन किया है. दोनों पति-पत्नी इस बार चुनावी मैदान में हैं.

पढ़ें: पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव : तीसरे चरण के लिए थमा प्रचार

चुनाव एक रुपये का भी खर्च नहीं

अम्बेडकरी हसनुराम का कहना है कि मैं हारने के लिए ही चुनाव लड़ रहा हूं. हारने के लिए बैनर ओर चुनाव खर्च की क्या जरूरत हैं. लोगों के बीच जाकर वोट ही मांगने हैं. पैसा खर्च तो बड़े राजनीतिक दलों के दिग्गज चुनाव जीतने के लिए करते हैं. मैंने अब तक 90 से अधिक छोटे बड़े चुनाव लड़े हैं, लेकिन आज तक एक रुपये खर्च नहीं किए हैं. इस बार भी चुनाव में पैसे खर्च नहीं करूंगा.

आगरा : उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. जिला मुख्यालय पर प्रत्याशी पूरे दमखम से नामांकन करने पहुंच रहे हैं. बड़े राजनीतिक दलों के दिग्गज प्रत्याशियों के बीच एक शख्स ऐसे भी है, जो पूरे चुनाव में चर्चा का केंद्र बना हुआ है. हाथ मे छड़ी ओर बगल में खादी का झोला लिए 74 वर्षीय अम्बेडकरी हसनुराम सभी के लिए एक मिसाल बन चुके हैं. उन्होंने अब 93वीं बार वार्ड 30 से जिला पंचायत सदस्य के लिए नामांकन किया है. इससे पहले वह 92 चुनावों में हार का सामना कर चुके हैं.

92 चुनावों में हार का सामना कर चुके हैं हसनुराम

कौन है अम्बेडकरी हसनुराम

74 साल के अम्बेडकरी हसनुराम पेशे से मनरेगा मजदूर हैं. 15 अगस्त 1947 को हसनुराम का रामनगर(खैरागढ़) गांव मे जन्म हुआ था. हसनुराम की पत्नी का नाम शिवदेवी है. दोनों के पांच पुत्र हैं, जो मजदूर हैं. हसनुराम अम्बेडकरी वर्ष 1985 से चुनाव लड़ रहे हैं. हसनुराम वार्ड सदस्य से लेकर राष्ट्रपति तक के चुनाव लड़ चुके हैं.

बगावत कर चुनाव लड़ने की ठानी

हसनुराम अम्बेडकरी बताते है कि सन 1985 में वह बसपा के कर्मठ सिपाही थे. उन्होंने बसपा से विधानसभा चुनाव के लिए टिकट मांगी थी. तब बसपा के एक बड़े नेता ने उन पर तंज कसते हुए कहा था कि 'तुम्हें तुम्हारी बीवी तक ठीक से नहीं पहचानती है, तो कोई और क्या तुम्हें वोट देगा'. यही बात हसनुराम के दिल पर लग गई. तब उन्होंने बसपा छोड़ दी. इसके बाद 1988 में खैरागढ़ विधानसभा से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उन्होंने चुनाव लड़ा. तबसे लगातार वह चुनाव लड़ते आ रहे हैं.

शतक के करीब हसनुराम

हसनुराम अम्बेडकरी इस बार 93वीं बार चुनाव लड़ रहे हैं. वह शतक से सिर्फ 7 कदम दूर है. वह 100 बार चुनाव में भाग लेकर हारने का रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं. इसलिए वह किसी भी चुनाव को नहीं छोड़ते. हर चुनाव में नामांकन करते हैं. पूरे जोश के साथ प्रचार भी करते हैं, लेकिन हारने के बाद भी उनका हौसला नहीं टूटा है. हसनुराम की पत्नी शिवदेवी भी वार्ड 30 से प्रधान पद के लिए चुनाव लड़ रही हैं. उन्होंने भी ब्लॉक कार्यालय पर निर्दलीय नामांकन किया है. दोनों पति-पत्नी इस बार चुनावी मैदान में हैं.

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चुनाव एक रुपये का भी खर्च नहीं

अम्बेडकरी हसनुराम का कहना है कि मैं हारने के लिए ही चुनाव लड़ रहा हूं. हारने के लिए बैनर ओर चुनाव खर्च की क्या जरूरत हैं. लोगों के बीच जाकर वोट ही मांगने हैं. पैसा खर्च तो बड़े राजनीतिक दलों के दिग्गज चुनाव जीतने के लिए करते हैं. मैंने अब तक 90 से अधिक छोटे बड़े चुनाव लड़े हैं, लेकिन आज तक एक रुपये खर्च नहीं किए हैं. इस बार भी चुनाव में पैसे खर्च नहीं करूंगा.

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