नई दिल्ली : कहावत है कि एक कांटे को केवल दूसरे कांटे से हटाया जा सकता है. इसी तरह साइंटिस्ट एक बीमारी को दूसरी बीमारी के जरिये नष्ट कर रहे हैं. अब कैंसर से लड़ने के लिए एक वायरस का उपयोग कर रहे हैं. यह वारयस कैंसर की कोशिकाओं को टारगेट करता है और उन पर हमला करने के लिए शरीर के इम्यूनिटी सिस्टम को ट्रेनिंग देकर तैयार करता है. अभी चल रहे क्लीनिकल ट्रायल के तौर पर कैंसर रोगियों को एक्सपेरिमेंटल वायरस का इंजेक्शन लगाया गया है.
कैंसर को मारने वाला वायरस (The cancer killing virus) : कैंसर के मरीज में जिस वायरस का इंजेक्शन डाला गया है, उसे CF33-hNIS या वैक्सिनिया कहा जाता है. यह एक ऑनकोलिटिक वायरस (oncolytic virus) है, जिसे जेनेटकली मॉडिफाई किया गया है. इस वायरस को शरीर में मौजूद स्वस्थ कोशिकाओं को छोड़कर कैंसर के सेल्स पर काम करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.
वैक्सिनिया कैसे काम करती है (How does it work?) : वैक्सिनिया (Vaxinia) कैंसर कोशिकाओं (cancer cells ) में प्रवेश करती है और खुद की नकल तैयार करने लगती है. एक समय ऐसा आता है, जब संक्रमित कोशिकाएं अंततः फट जाती हैं, जिससे हजारों वायरस कण निकलते हैं. संक्रमित कोशिकाओं से निकले वायरस कण एंटीजन के रूप में कार्य करते हैं. ये एंटीजन कैंसर कोशिकाओं पर हमला करने के लिए इम्यून सिस्टम को उत्तेजित करते है, इस तरह के ट्रीटमेंट को इम्यूनोथेरेपी कहा जाता है.
ट्रायल अभी जारी है (Trials underway) : संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में 100 से अधिक लोगों को वैक्सीनिया (Vaxinia) का इंजेक्शन दिया गया है. इनमें से अधिकतर लोगों ने कैंसर के लास्ट स्टेज पर इलाज कराना शुरू किया था. उन्हें इंजेक्शन के रूप में वैक्सीनिया की एक छोटी खुराक दी गई है. वायरस इंजेक्शन लेने वाले ड्रग कैंडिडेट के शरीर में एक प्रोटीन बनाता है, जिसे ह्यूमन सोडियम आयोडाइड सिम्पोर्टर (hNIS) कहते हैं. यह प्रोटीन रिसर्चर्स को वायरल प्रतिकृति और इमेज की निगरानी करने में सक्षम बनाता है. रिसर्चर्स का कहना है कि रेडियो एक्टिव आयोडीन को जोड़ना कैंसर कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने का एक दूसरा तरीका है.
क्यों किया जा रहा है क्लिनिकल ट्रायल : क्लिनिकल ट्रायल का मुख्य उद्देश्य यह जांचना है कि क्या टीका मनुष्यों के लिए सुरक्षित है, क्या रोगी इसे संभाल सकते हैं, या इससे कोई साइड इफेक्ट भी होता है. बाद के एक्सपेरिमेंट्स से साइंटिस्ट इसकी जांच करेंगे कि कैंसर इम्यूनोथेरेपी में उपयोग किए जाने वाले पेम्ब्रोलिज़ुमाब एंटीबॉडी थेरेपी को साथ मिलाने पर वैक्सीन कैसे काम करती है. यह एंटीबॉडी-दवा कैंसर कोशिकाओं से लड़ने के लिए इम्यून सिस्टम की क्षमता में सुधार करती है.
पिछले ट्रायल्स के नतीजे : वैक्सीनिया पशुओं पर किे गए परीक्षणों में प्रभावी साबित हुई है. जानवरों पर हुए परीक्षण से यह पता चला कि कैंसर की यह वैक्सीन सुरक्षित है और बॉडी इसे झेल सकती है. यह भी साबित हुआ है कि यह अग्नाशय के कैंसर में ट्यूमर के आकार को कम करने, फेफड़े, स्तन, ओवरियन पर काफी इफेक्टिव है. इसकी पहचान अन्य इम्यूनोथैरेपी के लिए इम्यून सिस्टम के रिएक्शन को प्रोत्साहित करने के लिए की गई है. रिसर्चर्स का दावा है कि यह कैंसर से लड़ने में एक क्रांतिकारी कदम साबित होगा. अगर भविष्य में ये कैंसर कोशिकाएं वापस बढ़ती हैं, तो इम्यून सिस्टम उन्हें पहचान कर पहले ही खत्म कर देगी.
कैंसर की इस वैक्सीन को लॉस एंजिल्स में सिटी ऑफ होप कैंसर केयर एंड रिसर्च सेंटर और ऑस्ट्रेलिया स्थित बायोटेक कंपनी इमुजीन ने विकसित किया है. यह यूएसएफडीए से मंजूर पहला ऑनकोलिटिक वायरस टी-वीईसी है, जो हर्पीज सिम्प्लेक्स वायरस का एक मॉडिफाई वर्जन है, जिसका उपयोग मेलेनोमा के उपचार में किया जाता है.