नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को जापान द्वारा वित्त पोषित मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना (Japan-funded Bullet train project) से जुड़े एक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. अदालत ने कहा कि किसी भी कंपनी और यहां तक कि भारत सरकार को भी इस प्रोजेक्ट से जुड़े लोन डीड समेत समझौते के किसी भी नियम और शर्तों से अलग होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने मोंटेकार्लो लिमिटेड नामक कंपनी के पक्ष में दिए गए दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को भी रद्द कर दिया.
बुलेट ट्रेन से संबंधित कई कार्यों के लिए मोंटेकार्लो के टेक्नीकल बिड को जापान इंटरनेशनल कोआपरेशन एजेंसी (Japan International Cooperation Agency - JICA) द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति द्वारा रद्द कर दिया गया था. जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ इस सवाल पर विचार कर रही थी कि क्या इस मामले में और ऐसी विदेशी वित्त पोषित परियोजना के संबंध में बिना किसी विशिष्ट दुर्भावना या पक्षपात के आरोप में हाई कोर्ट का निविदा प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना उचित था.
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पीठ ने अपने 82 पन्ने के फैसले में कहा कि अनुबंध के दायित्व के तहत अपीलकर्ता-निगम और यहां तक कि भारत गणराज्य के लिए भी ऋण समझौते या जेआईसीसी/जेआईसीए के निर्णय के किसी भी नियम और शर्तों से अलग होने की छूट नहीं है. इसलिए हमारा मानना है कि बिना किसी गड़बड़ी या पक्षपात के आरोपों के जेआईसीसी/जेआईसीए द्वारा सर्वसम्मति से लिए गए फैसले में हस्तक्षेप कर हाई कोर्ट ने बड़ी गलती की. कंपनी को उस फैसले का पालन करना चाहिए था.
पीठ के लिए फैसला लिखते हुए जस्टिस शाह ने बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए स्थापित नेशनल हाई-स्पीड रेल कार्पोरेशन लिमिटेड (National High-Speed Rail Corporation Limited- NHSRCL) की अपील स्वीकार करते हुए पिछले साल के हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट का फैसला स्पष्ट रूप से टिकाऊ नहीं है और इसे रद्द किया जाना चाहिए. इसमें कोई दो राय नहीं है कि बुलेट ट्रेन परियोजना एक बहुत ही महत्वपूर्ण राष्ट्रीय परियोजना है. बता दें कि बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए JICA की तरफ से आसान शर्तों और कम ब्याज पर एक लाख करोड़ रुपये का ऋण मिला है.
(पीटीआई)