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कोविड 19 वैक्सीन के प्रति लोगों में विश्वास पैदा करना जरूरी - vaccine confidence

कोरोना महामारी से निपटने के लिए टीकाकरण महाअभियान है. लोगों को बिना झिझक टीका लगवाने के लिए आगे आना चाहिए. समाज के हर तबके को टीकाकरण के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए आगे आना चाहिए तभी इस बीमारी से डटकर मुकाबला किया जा सकेगा.

vaccine confidence
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Published : Feb 12, 2021, 9:12 PM IST

Updated : Mar 19, 2021, 12:00 PM IST

हैदराबाद : कोरोना महामारी से जूझ रहे दुनियाभर के लोगों को वैक्सीन ने काफी राहत दी है. भारत सरकार ने 16 जनवरी 2021 को कोविड-19 को लेकर बड़े स्तर पर टीकाकरण अभियान शुरू किया. शुरुआत में फ्रंटलाइन हेल्थ केयर वर्कर्स को टीका लगाने का लक्ष्य रखा गया, उसके बाद 50 साल से ऊपर के लोगों को बीमारी से बचाने के लिए टीकाकरण किया जा रहा है. फ्रंटलाइन वर्कर का टीकाकरण काफी सफल रहा, जिसके तहत 14 दिन में करीब 33 लाख लोगों का टीका लगाया गया. यह संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और इजरायल सहित अधिकांश देशों की तुलना में तेजी से किया गया.

विभिन्न राज्यों के विभिन्न सर्वेक्षणों के निष्कर्षों से पता चलता है कि स्वास्थ्य कर्मचारियों में कुछ समय से वैक्सीन को लेकर झिझक बढ़ी है. यह शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में है. बड़ी आबादी में किए जा रहे टीकाकरण के लिए यह ठीक नहीं है, इससे कोविड महामारी से मुकाबला करने में प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में देरी होगी. कोविड 19 महामारी से मुकाबला करना जरूरी है.

टीके लगवाने में संकोच क्यों?

टीकों को महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज के रूप में मान्यता प्राप्त है, जिसने दुनिया को कई संक्रामक रोगों से बचाया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी टीकाकरण को सबसे ज्यादा लागत प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय बताया है, जो एक साल में करीब 2.3 मिलियन की जिंदगी बचाता है.

डब्ल्यूएचओ का कहना है कि अगर दुनिया भर में वैक्सीन कवरेज को बढ़ाया जाए तो प्रति वर्ष 1.5 मिलियन लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है. टीके की निंदा और अविश्वास का चलन तो एडवर्ड जेनर के समय से है, जिन्होंने 1796 में चेचक की बीमारी के लिए टीका विकसित किया था. हाल के दिनों में खसरे के टीके को लेकर भी कई देशों में झिझक देखी गई.

दुनिया भर में खसरे के करीब 30% मामले हैं. टीका लगवाने में जो हिचक है उसे डब्ल्यूएचओ ने वैश्विक स्वास्थ्य के लिए 10 खतरों में से एक बताया है. भारत में भी वैक्सीन को लेकर झिझक की बात करें तो ये नई नहीं है. 1900 के शुरुआती दिनों में प्लेग और हैजा से लेकर पोलियो और एचपीवी वैक्सीन को लेकर भी ये कई कारणों से देखा गया है.

साधारण शब्दों में कहें तो ये टीके को लेकर झिझक ही है जिस कारण उपलब्ध होने के बावजूद लोग टीका लगवाने से मना कर रहे हैं. कई अध्ययनों और रिपोर्टों में टीकाकरण न कराने का जिक्र किया गया है. कई अध्ययनों और रिपोर्टों में टीकाकरण के विरोध का जिक्र मुख्य रूप से इस विश्वास पर आधारित है कि ये लाभ की तुलना में नुकसान ज्यादा पहुंचाते हैं. कुछ समुदाय धार्मिक और सांस्कृतिक आधार पर अनिवार्य टीकाकरण का विरोध करते हैं.

टीकाकरण के लिए ऐसे करें प्रेरित

वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर देखा जाए तो स्पष्ट प्रमाण हैं कि टीका व्यक्ति को बीमारी से बचाता है. जब ज्यादा लोगों का टीकाकरण किया जाता तो यह बड़ी संख्या में रोगों से प्रतिरक्षा को बढ़ावा देता है.

ऐसे में यह महत्वपूर्ण संदेश है कि स्वयं का टीकाकरण कराना एक सामाजिक अनुबंध है. यह अपने आप को तो सुरक्षित करने के लिए है ही साथ ही बड़े समुदाय को सुरक्षित करने के लिए जरूरी है. इस संदेश को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिए और लोगों को शामिल करने के लिए बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है. टीका लगवाने के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए ये उपाय किए जा सकते हैं.

  1. लोगों को ये बताना जरूरी है कि टीकाकरण आसान, जल्द पूरी होने वाली प्रक्रिया और सस्ता है. ये भी बताना होगा कि बड़ी संख्या में लोग टीका लगवाने से परहेज नहीं कर रहे हैं.
  2. सामूहिक टीकाकरण और सटीक टीकाकरण दोनों पर ध्यान केंद्रित कर अभियान चलाया जाए, जिससे साफ संदेश जाए कि बड़ी संख्या में लोग टीका लगवा रहे हैं. ऐसा करते समय समुदाय के सदस्यों की भागीदारी भी होनी चाहिए, जिससे लोगों को प्रेरित किया जा सके.
  3. टीके को लेकर जो लोगों के मन में अनिश्चितता और जोखिम का भाव है उसे खुले मंच पर बातचीत के माध्यम से दूर किया जाए. समुदाय स्तर पर टीकाकरण की सुरक्षा और लाभों के बारे में बताया जाए.
  4. अफवाहें और गलत जानकारी टीकाकरण में बाधा है. समुदाय-आधारित अफवाह निगरानी प्रक्रिया अपनाकर इनको रोका जा सकता है. टीके को लेकर लोगों में जो झिझक या डर है उसे दूर करने में मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.
  5. आज के समय में इंटरनेट और सोशल मीडिया लोगों की जानकारी के महत्वपूर्ण माध्यम बन गए हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के साथ मिलकर इस संबंध में गलत सूचनाओं को रोकने के लिए काम करना चाहिए.
  6. टीकों के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ाना जरूरी. हमें विश्वसनीय आंकड़ों के साथ लोगों को टीकाकरण के लिए आगे आने की अपील करनी चाहिए. इस काम में हम सामाजिक कार्यकर्ताओं, क्षेत्र के प्रभावशाली लोगों, राजनीति से जुड़े लोगों की मदद ले सकते हैं.
  7. टीकाकरण के बाद प्रतिकूल घटनाओं से निपटने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए.
  8. यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाना चाहिए कि कमजोर और गरीब तबके को टीकाकरण का लाभ जल्दी मिले.
  9. समाज में यह संदेश देना भी जरूरी है कि टीकाकरण के बावजूद मास्क पहनना, शारीरिक दूरी के नियमों का पालन जारी रखा जाए.

(लेखक डॉ. नंद किशोर कन्नूरी, डॉ. गौरी अय्यर, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ हैदराबाद के पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया से संबद्ध हैं. ये उनके निजी विचार हैं)

हैदराबाद : कोरोना महामारी से जूझ रहे दुनियाभर के लोगों को वैक्सीन ने काफी राहत दी है. भारत सरकार ने 16 जनवरी 2021 को कोविड-19 को लेकर बड़े स्तर पर टीकाकरण अभियान शुरू किया. शुरुआत में फ्रंटलाइन हेल्थ केयर वर्कर्स को टीका लगाने का लक्ष्य रखा गया, उसके बाद 50 साल से ऊपर के लोगों को बीमारी से बचाने के लिए टीकाकरण किया जा रहा है. फ्रंटलाइन वर्कर का टीकाकरण काफी सफल रहा, जिसके तहत 14 दिन में करीब 33 लाख लोगों का टीका लगाया गया. यह संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और इजरायल सहित अधिकांश देशों की तुलना में तेजी से किया गया.

विभिन्न राज्यों के विभिन्न सर्वेक्षणों के निष्कर्षों से पता चलता है कि स्वास्थ्य कर्मचारियों में कुछ समय से वैक्सीन को लेकर झिझक बढ़ी है. यह शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में है. बड़ी आबादी में किए जा रहे टीकाकरण के लिए यह ठीक नहीं है, इससे कोविड महामारी से मुकाबला करने में प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में देरी होगी. कोविड 19 महामारी से मुकाबला करना जरूरी है.

टीके लगवाने में संकोच क्यों?

टीकों को महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज के रूप में मान्यता प्राप्त है, जिसने दुनिया को कई संक्रामक रोगों से बचाया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी टीकाकरण को सबसे ज्यादा लागत प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय बताया है, जो एक साल में करीब 2.3 मिलियन की जिंदगी बचाता है.

डब्ल्यूएचओ का कहना है कि अगर दुनिया भर में वैक्सीन कवरेज को बढ़ाया जाए तो प्रति वर्ष 1.5 मिलियन लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है. टीके की निंदा और अविश्वास का चलन तो एडवर्ड जेनर के समय से है, जिन्होंने 1796 में चेचक की बीमारी के लिए टीका विकसित किया था. हाल के दिनों में खसरे के टीके को लेकर भी कई देशों में झिझक देखी गई.

दुनिया भर में खसरे के करीब 30% मामले हैं. टीका लगवाने में जो हिचक है उसे डब्ल्यूएचओ ने वैश्विक स्वास्थ्य के लिए 10 खतरों में से एक बताया है. भारत में भी वैक्सीन को लेकर झिझक की बात करें तो ये नई नहीं है. 1900 के शुरुआती दिनों में प्लेग और हैजा से लेकर पोलियो और एचपीवी वैक्सीन को लेकर भी ये कई कारणों से देखा गया है.

साधारण शब्दों में कहें तो ये टीके को लेकर झिझक ही है जिस कारण उपलब्ध होने के बावजूद लोग टीका लगवाने से मना कर रहे हैं. कई अध्ययनों और रिपोर्टों में टीकाकरण न कराने का जिक्र किया गया है. कई अध्ययनों और रिपोर्टों में टीकाकरण के विरोध का जिक्र मुख्य रूप से इस विश्वास पर आधारित है कि ये लाभ की तुलना में नुकसान ज्यादा पहुंचाते हैं. कुछ समुदाय धार्मिक और सांस्कृतिक आधार पर अनिवार्य टीकाकरण का विरोध करते हैं.

टीकाकरण के लिए ऐसे करें प्रेरित

वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर देखा जाए तो स्पष्ट प्रमाण हैं कि टीका व्यक्ति को बीमारी से बचाता है. जब ज्यादा लोगों का टीकाकरण किया जाता तो यह बड़ी संख्या में रोगों से प्रतिरक्षा को बढ़ावा देता है.

ऐसे में यह महत्वपूर्ण संदेश है कि स्वयं का टीकाकरण कराना एक सामाजिक अनुबंध है. यह अपने आप को तो सुरक्षित करने के लिए है ही साथ ही बड़े समुदाय को सुरक्षित करने के लिए जरूरी है. इस संदेश को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिए और लोगों को शामिल करने के लिए बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है. टीका लगवाने के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए ये उपाय किए जा सकते हैं.

  1. लोगों को ये बताना जरूरी है कि टीकाकरण आसान, जल्द पूरी होने वाली प्रक्रिया और सस्ता है. ये भी बताना होगा कि बड़ी संख्या में लोग टीका लगवाने से परहेज नहीं कर रहे हैं.
  2. सामूहिक टीकाकरण और सटीक टीकाकरण दोनों पर ध्यान केंद्रित कर अभियान चलाया जाए, जिससे साफ संदेश जाए कि बड़ी संख्या में लोग टीका लगवा रहे हैं. ऐसा करते समय समुदाय के सदस्यों की भागीदारी भी होनी चाहिए, जिससे लोगों को प्रेरित किया जा सके.
  3. टीके को लेकर जो लोगों के मन में अनिश्चितता और जोखिम का भाव है उसे खुले मंच पर बातचीत के माध्यम से दूर किया जाए. समुदाय स्तर पर टीकाकरण की सुरक्षा और लाभों के बारे में बताया जाए.
  4. अफवाहें और गलत जानकारी टीकाकरण में बाधा है. समुदाय-आधारित अफवाह निगरानी प्रक्रिया अपनाकर इनको रोका जा सकता है. टीके को लेकर लोगों में जो झिझक या डर है उसे दूर करने में मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.
  5. आज के समय में इंटरनेट और सोशल मीडिया लोगों की जानकारी के महत्वपूर्ण माध्यम बन गए हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के साथ मिलकर इस संबंध में गलत सूचनाओं को रोकने के लिए काम करना चाहिए.
  6. टीकों के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ाना जरूरी. हमें विश्वसनीय आंकड़ों के साथ लोगों को टीकाकरण के लिए आगे आने की अपील करनी चाहिए. इस काम में हम सामाजिक कार्यकर्ताओं, क्षेत्र के प्रभावशाली लोगों, राजनीति से जुड़े लोगों की मदद ले सकते हैं.
  7. टीकाकरण के बाद प्रतिकूल घटनाओं से निपटने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए.
  8. यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाना चाहिए कि कमजोर और गरीब तबके को टीकाकरण का लाभ जल्दी मिले.
  9. समाज में यह संदेश देना भी जरूरी है कि टीकाकरण के बावजूद मास्क पहनना, शारीरिक दूरी के नियमों का पालन जारी रखा जाए.

(लेखक डॉ. नंद किशोर कन्नूरी, डॉ. गौरी अय्यर, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ हैदराबाद के पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया से संबद्ध हैं. ये उनके निजी विचार हैं)

Last Updated : Mar 19, 2021, 12:00 PM IST
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