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पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में क्यों नहीं लाया जा रहा ?

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Published : May 21, 2021, 9:51 PM IST

पिछले एक महीने में पेट्रोल और डीजल की कीमतें 10 बार बढ़ चुकी हैं. लेकिन चुनाव के समय पेट्रोल और डीजल के भाव नहीं बढ़ते हैं. ऐसा क्यों होता है. केंद्र सरकार कहती है कि राज्य चाहेगा, तभी इसे जीएसटी के दायरे में लाया जा सकता है. लेकिन केंद्र सरकार जितनी तेजी से पेट्रोल पर उत्पाद कर बढ़ाती जा रही है, उस पर वह चुप्पी साध लेती है.

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कॉन्सेप्ट फोटो

हैदराबाद : किसी भी पार्टी की सरकार क्यों न हो, अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में बदलाव आते ही घरेलू कीमतों पर उसका असर पड़ना तय है. लेकिन कई बार कीमतें भी राजनीति के हिसाब से ऊपर और नीचे होती हैं. जैसे चुनाव नजदीक आते ही कीमतें बढ़नी बंद हो जाती हैं. हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान इसे देखा गया. एक बार जब चुनाव परिणाम आ गए, तो फिर से कीमतें बढ़ने लगीं.

पिछले एक महीने में पेट्रोल और डीजल की कीमतें 10 बार बढ़ चुकी हैं. मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में कुछ जगहों पर 100 रुपये से अधिक के भाव में तेल बेचा जा रहा है. तेल कंपनियों का रटा-रटाया सा जवाब होता है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार से कच्चा तेल आयात करने की वजह से हम यह फैसला लेते हैं.

2014 में जब एनडीए सरकार सत्ता में आई थी, तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 110 डॉलर प्रति बैरल कीमत थी. उस समय पेट्रोल की कीमत 71 रुपये प्रति लीटर थी. डीजल का भाव 57 रुपये प्रति लीटर था. लेकिन आज का हाल देखिए क्या है.

प्रधानमंत्री जब यह कहते हैं कि पिछली सरकारों की नीतियों की वजह से ऊर्जा आयात पर निर्भरता खत्म नहीं हई, तो वह आधा सच ही बताते हैं.

कोविड के पहले पेट्रोल पर उत्पाद कर 19.98 रुपये था. अब प्रति लीटर 32.98 रुपये वसूले जा रहे हैं. कोविड के पहले डीजल पर 15.83 रुपये उत्पाद कर लिए जा रहे थे, अब 31.83 रु प्रति लीटर के हिसाब से चार्ज किया जा रहा है. ऊपर से राज्य सरकारों का वैट अलग है. आर्थिक विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर इसे जीएसटी के दायरे में ले आया जाए, तो इसकी कीमत 75 रुपये प्रति लीटर हो सकती है. डीजल की कीमत 68 रुपये प्रति लीटर हो सकती है. फिर भी सरकार इस सलाह पर काम नहीं कर रही है.

एनडीए के सात साल के कार्यकाल में देश का बजट दोगुना हो चुका है. लेकिन इसी कार्यकाल में पेट्रोलियम उत्पादों से होने वाली आमदनी पांच गुनी हो चुकी है.

पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद कर संग्रह 2014-15 में 74158 करोड़ था. केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि 2020-21 में पेट्रोलियम ईंधन से उत्पाद कर संग्रह 2.95 लाख करोड़ था.

केंद्र सरकार ने नौ बार उत्पाद कर बढ़ाया है, जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें लगातार घट रहीं थीं. तेल पर हमारी सरकार दुनिया में सबसे अधिक टैक्स वसूल रही है. केंद्र ने कई बार इशारा किया है वह कुछ नहीं कर सकती है, बल्कि राज्य चाहे तो वह अपनी ओर से टैक्स कम कर जनता को छूट दे सकती है. वित्त मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार इस मामले पर धर्मसंकट में है.

कर के नाम पर पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्र और राज्य सरकारें 5 लाख करोड़ वसूल रही हैं. केंद्र सरकार कह रही है कि राज्य सरकारों से विचार करने के बाद ही कहा जा सकता है कि इसे जीएसटी के दायरे में लाया जाय या नहीं. राज्य चाहेगी, तभी ऐसा हो सकता है.

अगले सप्ताह जीएसटी काउंसल की बैठक हो रही है. मेडिकल उपकरणों और मेडिकल सेवाओं पर राहत को लेकर चर्चा होने की उम्मीद है. बेरोजगारी, महंगाई और दवा की बढ़ती कीमतों से परेशान जनता को राहत देने का यह उचित समय है. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने पर गंभीरता से विचार करेगी.

हैदराबाद : किसी भी पार्टी की सरकार क्यों न हो, अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में बदलाव आते ही घरेलू कीमतों पर उसका असर पड़ना तय है. लेकिन कई बार कीमतें भी राजनीति के हिसाब से ऊपर और नीचे होती हैं. जैसे चुनाव नजदीक आते ही कीमतें बढ़नी बंद हो जाती हैं. हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान इसे देखा गया. एक बार जब चुनाव परिणाम आ गए, तो फिर से कीमतें बढ़ने लगीं.

पिछले एक महीने में पेट्रोल और डीजल की कीमतें 10 बार बढ़ चुकी हैं. मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में कुछ जगहों पर 100 रुपये से अधिक के भाव में तेल बेचा जा रहा है. तेल कंपनियों का रटा-रटाया सा जवाब होता है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार से कच्चा तेल आयात करने की वजह से हम यह फैसला लेते हैं.

2014 में जब एनडीए सरकार सत्ता में आई थी, तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 110 डॉलर प्रति बैरल कीमत थी. उस समय पेट्रोल की कीमत 71 रुपये प्रति लीटर थी. डीजल का भाव 57 रुपये प्रति लीटर था. लेकिन आज का हाल देखिए क्या है.

प्रधानमंत्री जब यह कहते हैं कि पिछली सरकारों की नीतियों की वजह से ऊर्जा आयात पर निर्भरता खत्म नहीं हई, तो वह आधा सच ही बताते हैं.

कोविड के पहले पेट्रोल पर उत्पाद कर 19.98 रुपये था. अब प्रति लीटर 32.98 रुपये वसूले जा रहे हैं. कोविड के पहले डीजल पर 15.83 रुपये उत्पाद कर लिए जा रहे थे, अब 31.83 रु प्रति लीटर के हिसाब से चार्ज किया जा रहा है. ऊपर से राज्य सरकारों का वैट अलग है. आर्थिक विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर इसे जीएसटी के दायरे में ले आया जाए, तो इसकी कीमत 75 रुपये प्रति लीटर हो सकती है. डीजल की कीमत 68 रुपये प्रति लीटर हो सकती है. फिर भी सरकार इस सलाह पर काम नहीं कर रही है.

एनडीए के सात साल के कार्यकाल में देश का बजट दोगुना हो चुका है. लेकिन इसी कार्यकाल में पेट्रोलियम उत्पादों से होने वाली आमदनी पांच गुनी हो चुकी है.

पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद कर संग्रह 2014-15 में 74158 करोड़ था. केंद्र सरकार ने संसद में बताया कि 2020-21 में पेट्रोलियम ईंधन से उत्पाद कर संग्रह 2.95 लाख करोड़ था.

केंद्र सरकार ने नौ बार उत्पाद कर बढ़ाया है, जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें लगातार घट रहीं थीं. तेल पर हमारी सरकार दुनिया में सबसे अधिक टैक्स वसूल रही है. केंद्र ने कई बार इशारा किया है वह कुछ नहीं कर सकती है, बल्कि राज्य चाहे तो वह अपनी ओर से टैक्स कम कर जनता को छूट दे सकती है. वित्त मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार इस मामले पर धर्मसंकट में है.

कर के नाम पर पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्र और राज्य सरकारें 5 लाख करोड़ वसूल रही हैं. केंद्र सरकार कह रही है कि राज्य सरकारों से विचार करने के बाद ही कहा जा सकता है कि इसे जीएसटी के दायरे में लाया जाय या नहीं. राज्य चाहेगी, तभी ऐसा हो सकता है.

अगले सप्ताह जीएसटी काउंसल की बैठक हो रही है. मेडिकल उपकरणों और मेडिकल सेवाओं पर राहत को लेकर चर्चा होने की उम्मीद है. बेरोजगारी, महंगाई और दवा की बढ़ती कीमतों से परेशान जनता को राहत देने का यह उचित समय है. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने पर गंभीरता से विचार करेगी.

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