ETV Bharat / bharat

औरंगजेब के वार से जब फूटी रक्त और दूध की धार, जानें कहां है ऐसा अद्भुत 'ब्रह्मा का शिवलिंग' - brahmeshwar mahadev shivling temple

प्रयाग को यज्ञ व तपस्या की भूमि कहा जाता है. यह हमेशा से देवों, ऋषि, मुनियों के यज्ञ के लिए सर्वोत्तम स्थान रहा है. दारागंज के पूर्वी हिस्से पर गंगा के किनारे पर ब्रह्मेश्वर महादेव स्थित हैं. इस पवित्र स्थल को भगवान ब्रह्मा का शाश्वत स्थान बताया गया है, जो पुराणों में वर्णित है. यहां पर दो शिवलिंग स्थित हैं. ऐसा क्यों है और क्या है औरंगजेब से जुड़ी कहानी, जानें इस रिपोर्ट से.

brah
brah
author img

By

Published : Jul 26, 2021, 8:32 AM IST

प्रयागराज : प्रयागराज में एक ऐसा शिवलिंग है, जिसकी स्थापना स्वयं सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने किया था. इस शिवलिंग की स्थापना ब्रह्मा जी ने पृथ्वी पर पहला यज्ञ करने के साथ किया था. यही वजह है कि इस शिवलिंग को नाम ब्रह्मेश्वर महादेव (Brahmeshwar Mahadev Mandir) के नाम से जाना जाता है.

इस मंदिर की महिमा का वर्णन पुराणों में भी मिलता है. दशाश्वमेध घाट (Dashashwamedh Ghat) पर स्थित इस मंदिर में एक साथ दो शिवलिंग (Shiva Lingam) की पूजा-अर्चना की जाती है. भगवान ब्रह्मा के हाथ से स्थापित किए जाने की वजह से प्रयागराज के इस शिव मंदिर का खास महत्व है.

यहां पर भगवान भोलेनाथ का दर्शन पूजन करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. सावन के महीने में दशाश्वमेघ घाट (Dashashwamedh Ghat) से जल लेकर जाने वाले कांवड़िये (Kawadiye) भी इस शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं.

स्पेशल वीडियो.

बहुत से कांवड़िये (Kawadiye) इस शिवलिंग का जलाभिषेक करने के बाद बाबा विश्वनाथ (KASHI VISHWANATH) का जलाभिषेक करने के लिए जल लेकर काशी जाते हैं. जबकि प्रयागराज के आस-पास के इलाकों से आने वाले कांवड़िये ब्रह्मेश्वर महादेव (Brahmeshwar Mahadev) एवं दशाश्वमेध महादेव (Dashashwamedh Mahadev) का भी जलाभिषेक करने आते हैं.

औरंगजेब से जुड़ी कहानी

मुगल काल (Mughal Empire) में औरंगजेब (Aurangzeb) ने इस मंदिर में पहुंचकर शिवलिंग पर प्रहार करके उसे खंडित कर दिया था. औरंगजेब के प्रहार की वजह से शिवलिंग बीच से कट गया था. बताया जाता है कि उसके बाद शिवलिंग से दूध और रक्त की धारा बहने के साथ भौंरे निकले और औरंगजेब पर हमला कर दिया. जिसके बाद औरंगजेब वहां से भाग निकला और बाद में उसी स्थान पर दूसरा शिवलिंग प्रकट हो गया. तभी से दोनों शिवलिंग की पूजा अर्चना की जा रही है.

नहीं बंद हुई पूजा-अर्चना

मुगल आक्रांता के वार से शिवलिंग के खंडित होने के बाद भी उसकी पूजा की जा रही है. विद्वानों का मत था कि भगवान ब्रह्मा के हाथ से स्थापित शिवलिंग को खंडित मानकर उसकी पूजा अर्चना बंद नहीं की जा सकती. आज भी इस मंदिर में एक साथ दो शिवलिंगों की पूजा-अर्चना की जा रही है. एक शिवलिंग को ब्रह्मेश्वर महादेव (Brahmeshwar Mahadev) मानकर पूजा जाता है, तो दूसरे शिवलिंग को दशाश्वमेध महादेव (Dashashwamedh Mahadev) मानकर पूजा-अर्चना की जाती है.'

यह भी पढ़ें-सावन के प्रथम सोमवार पर करें बाबा महाकाल के मनमहेश स्वरुप का दिव्य दर्शन

पुराणों में मिलते हैं प्रमाण

इस मंदिर और शिवलिंग का वर्णन शिव पुराण (Shiva Purana), स्कंद पुराण (Skanda Purana) और मत्स्य पुराण (Matsya Purana) में विस्तार से किया गया है. स्कन्द पुराण के अनुसार दशहरे के दिन शिवलिंग का दर्शन करने से पिछले दस जन्मों के पाप से मुक्ति मिलती है. दशहरे के दिन यहां शिवभक्तों की भीड़ जुटती है.

प्रयागराज : प्रयागराज में एक ऐसा शिवलिंग है, जिसकी स्थापना स्वयं सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने किया था. इस शिवलिंग की स्थापना ब्रह्मा जी ने पृथ्वी पर पहला यज्ञ करने के साथ किया था. यही वजह है कि इस शिवलिंग को नाम ब्रह्मेश्वर महादेव (Brahmeshwar Mahadev Mandir) के नाम से जाना जाता है.

इस मंदिर की महिमा का वर्णन पुराणों में भी मिलता है. दशाश्वमेध घाट (Dashashwamedh Ghat) पर स्थित इस मंदिर में एक साथ दो शिवलिंग (Shiva Lingam) की पूजा-अर्चना की जाती है. भगवान ब्रह्मा के हाथ से स्थापित किए जाने की वजह से प्रयागराज के इस शिव मंदिर का खास महत्व है.

यहां पर भगवान भोलेनाथ का दर्शन पूजन करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. सावन के महीने में दशाश्वमेघ घाट (Dashashwamedh Ghat) से जल लेकर जाने वाले कांवड़िये (Kawadiye) भी इस शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं.

स्पेशल वीडियो.

बहुत से कांवड़िये (Kawadiye) इस शिवलिंग का जलाभिषेक करने के बाद बाबा विश्वनाथ (KASHI VISHWANATH) का जलाभिषेक करने के लिए जल लेकर काशी जाते हैं. जबकि प्रयागराज के आस-पास के इलाकों से आने वाले कांवड़िये ब्रह्मेश्वर महादेव (Brahmeshwar Mahadev) एवं दशाश्वमेध महादेव (Dashashwamedh Mahadev) का भी जलाभिषेक करने आते हैं.

औरंगजेब से जुड़ी कहानी

मुगल काल (Mughal Empire) में औरंगजेब (Aurangzeb) ने इस मंदिर में पहुंचकर शिवलिंग पर प्रहार करके उसे खंडित कर दिया था. औरंगजेब के प्रहार की वजह से शिवलिंग बीच से कट गया था. बताया जाता है कि उसके बाद शिवलिंग से दूध और रक्त की धारा बहने के साथ भौंरे निकले और औरंगजेब पर हमला कर दिया. जिसके बाद औरंगजेब वहां से भाग निकला और बाद में उसी स्थान पर दूसरा शिवलिंग प्रकट हो गया. तभी से दोनों शिवलिंग की पूजा अर्चना की जा रही है.

नहीं बंद हुई पूजा-अर्चना

मुगल आक्रांता के वार से शिवलिंग के खंडित होने के बाद भी उसकी पूजा की जा रही है. विद्वानों का मत था कि भगवान ब्रह्मा के हाथ से स्थापित शिवलिंग को खंडित मानकर उसकी पूजा अर्चना बंद नहीं की जा सकती. आज भी इस मंदिर में एक साथ दो शिवलिंगों की पूजा-अर्चना की जा रही है. एक शिवलिंग को ब्रह्मेश्वर महादेव (Brahmeshwar Mahadev) मानकर पूजा जाता है, तो दूसरे शिवलिंग को दशाश्वमेध महादेव (Dashashwamedh Mahadev) मानकर पूजा-अर्चना की जाती है.'

यह भी पढ़ें-सावन के प्रथम सोमवार पर करें बाबा महाकाल के मनमहेश स्वरुप का दिव्य दर्शन

पुराणों में मिलते हैं प्रमाण

इस मंदिर और शिवलिंग का वर्णन शिव पुराण (Shiva Purana), स्कंद पुराण (Skanda Purana) और मत्स्य पुराण (Matsya Purana) में विस्तार से किया गया है. स्कन्द पुराण के अनुसार दशहरे के दिन शिवलिंग का दर्शन करने से पिछले दस जन्मों के पाप से मुक्ति मिलती है. दशहरे के दिन यहां शिवभक्तों की भीड़ जुटती है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.