नई दिल्ली : मुक्केबाजी में भारत के पहले ओलंपिक पदक विजेता विजेंदर सिंह ने धमकी दी कि अगर केंद्र सरकार नए कृषि कानून के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे किसानों की मांग स्वीकार नहीं करती है तो वह राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार लौटा देंगे. उन्होंने नए कानून को 'काला कानून' करार दिया.
रविवार को हरियाणा के भिवानी जिले का 35 साल का यह मुक्केबाज दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर विरोध-प्रदर्शन कर रहे किसानों के बीच पहुंचा और उनके प्रति एकजुटता दिखाई.
गौरतलब है कि 2019 के लोक सभा चुनावों में विजेंदर कांग्रेस की टिकट पर दक्षिण दिल्ली संसदीय सीट से चुनाव लड़े थे. हालांकि, भाजपा प्रत्याशी विजेंदर को मात देने में कामयाब रहे थे.
कांग्रेस नेता विजेंदर ने किसानों से कहा, 'अगर सरकार इन काले कानूनों को वापस नहीं लेती है तो मैं उनसे आग्रह करूंगा कि मेरा पुरस्कार वापस ले लें.' उन्होंने कहा, 'अब बहुत हो चुका, अगर सरकार किसानों की मांगें नहीं मानती है तो मैंने फैसला किया है कि एकजुटता दिखाते हुए मैं अपना खेल रत्न पुरस्कार लौटा दूंगा.'
इस मुक्केबाज ने कहा, 'मैं किसानों और सेना से ताल्लुक रखने वाले परिवार से आता हूं, मैं उनकी पीड़ा और मजबूरी समझ सकता हूं. समय आ गया है कि सरकार उनकी मांगों पर ध्यान दे.'
विजेंदर ने 2008 बीजिंग खेलों में कांस्य पदक के रूप में मुक्केबाजी में भारत का पहला ओलंपिक पदक जीता था.
विजेंदर 2009 में विश्व चैंपियनशिप (कांस्य पदक) में पदक जीतने वाले पहले भारतीय मुक्केबाज भी बने थे. इसी साल उन्हें शानदार प्रदर्शन के लिए देश के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न से नवाजा गया था.
विजेंदर फिलहाल पेशेवर मुक्केबाज हैं. उन्होंने वर्ल्ड बॉक्सिंग ऑर्गनाइजेशन (डब्लूबीओ) की ओर से आयोजित कई प्रोफेशनल मुकाबलों में शानदार प्रदर्शन कर जीत दर्ज की है.
किसानों के विरोध प्रदर्शन को समर्थन और पुरस्कार वापसी के सवाल पर उन्होंने कहा, 'निश्चित तौर पर यह पुरस्कार मेरे लिए काफी मायने रखता है लेकिन हमें उन चीजों के साथ भी खड़ा होना पड़ता है जिनमें हम विश्वास रखते हैं. अगर बातचीत के साथ संकट का समाधान निकल सकता है तो हम सभी को खुशी होगी.'
इससे पहले बीजिंग ओलंपिक के दौरान प्रभारी पूर्व राष्ट्रीय मुक्केबाजी कोच गुरबक्श सिंह संधू ने भी किसानों की मांगों को नहीं मानने की स्थिति में अपना द्रोणाचार्य पुरस्कार लौटाने की बात कही थी.
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आज रविवार को कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन का 11वां दिन है. विरोध प्रदर्शन के दौरान किसान नेताओं ने कहा कि सरकार को कानून वापस लेना ही पड़ेगा. किसान यूनियन के प्रतिनिधियों ने सिंघु बॉर्डर पर बैठक भी की. भारतीय पर्यटक परिवहनकर्ता एसोसिएशन (ITTA) और दिल्ली गुड्स ट्रांसपोर्ट असोसिएशन ने 8 दिसंबर को दिल्ली में किसानों के प्रदर्शन का समर्थन करते हुए हड़ताल का आह्वान किया है. ITTA के अध्यक्ष सतीश शेरावत ने कहा कि किसानों के समर्थन में 51 यूनियन हैं.
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इससे पहले शनिवार को किसानों के प्रतिनिधियों और केंद्र सरकार के बीच पांचवें दौर की वार्चा हुई. पांचवें दौर की वार्ता में सरकार ने किसानों के लिखित आश्वासन देने की बात कही, लेकिन किसानों ने केवल हां, या ना में जवाब देने को कहा. कृषि मंत्री ने भी किसानों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुद्दे पर कई बार आश्वस्त किया है, लेकिन किसान कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं. बैठक के बाद 9 दिसंबर को छठे दौर वार्ता करने पर सहमति बनी है.
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गौरतलब है कि किसानों के विरोध प्रदर्शन को ममता बनर्जी ने भी समर्थन दिया है. बीते दिनों उन्होंने एक ट्वीट में कहा था, 'भारत सरकार हर चीज बेच रही है. आप रेलवे, एयर इंडिया, कोयला, बीएसएनएल, बीएचईएल, बैंक, रक्षा इत्यादि को नहीं बेच सकते. गलत नीयत से लाई गई विनिवेश और निजीकरण की नीति वापस लीजिए. हम अपने राष्ट्र के खजाने को भाजपा की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं बनने देंगे.'
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गौरतलब है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने किसानों को वार्ता के लिए आमंत्रित करते हुए कहा था कि सरकार सभी मुद्दों पर बातचीत के लिए तैयार है. उन्होंने गतिरोध खत्म करने और बुराड़ी मैदान में जाने की अपील की थी.
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राजद और वाम नेताओं का समर्थन
राजनीतिक पार्टियों ने केंद्रीय कृषि कानून को लेकर अपना स्टैंड बहुत ही साफ नहीं रखा है. चुनाव के दौरान भी इसे नहीं उठाया गया. राजद ने चुनाव प्रचार के दौरान कृषि कानून को माइग्रेशन और बेरोजगारी से जोड़ा. राजद नेता तेजस्वी ने कहा कि क्योंकि 2006 में एपीएमसी एक्ट समाप्त कर दिया गया, इसलिए यहां के किसान चले गए. उन्हें सही कीमत नहीं मिल रही है.
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ताजा विरोध को राजद और वाम नेताओं ने समर्थन दिया है. वाम नेताओं ने कहा कि वे बिहार के किसानों के बीच कृषि कानून को लेकर जागरूकता अभियान चलाएंगे.
कहां से पनपना शुरू हुआ असंतोष
बीते 17 सितंबर को विधेयकों के पारित होने के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा, किसान को उत्पाद सीधे बेचने की आजादी मिलेगी. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था भी जारी रहेगी.
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कृषि सुधार विधेयकों को लेकर पीएम मोदी का कहना है कि विपक्ष किसानों को गुमराह कर रहा है. उनके अनुसार इन विधेयकों के पारित हो जाने के बाद किसानों की न सिर्फ आमदनी बढ़ेगी, बल्कि उनके सामने कई विकल्प भी मौजूद होंगे.