नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि किसी कर्जदार के बैंक खाते को धोखाधड़ी वाला वर्गीकृत करने से पहले उसे सुनवाई का अवसर मिलना चाहिए और यदि ऐसी कार्रवाई की जाती है तो एक तर्कपूर्ण आदेश का पालन होना चाहिए. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के एक फैसले को कायम रखते हुए कहा कि खातों को धोखाधड़ी वाले के रूप में वर्गीकृत करने से उधारकर्ताओं के लिए अन्य परिणाम भी सामने आते हैं, इसलिए उन्हें सुनवाई का एक मौका मिलना चाहिए.
पीठ ने कहा, 'उधारकर्ताओं के खातों को जालसाजी संबंधी ‘मास्टर डायरेक्शन’ के तहत धोखाधड़ी वाले के रूप में वर्गीकृत करने से पहले बैंक को उन्हें सुनवाई का अवसर देना चाहिए.' यह फैसला भारतीय स्टेट बैंक की एक याचिका पर आया. एक फोरेंसिक रिपोर्ट के निष्कर्षों के आधार पर एक उधारकर्ता खाते को धोखाधड़ी के रूप में घोषित किया जाता है जहां ऋण एक गैर-निष्पादित परिसंपत्ति बन जाता है (जहां ब्याज या मूल भुगतान 90 दिनों के लिए अतिदेय है). पीठ ने कहा कि धोखाधड़ी के रूप में बैंक खातों के वर्गीकरण पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा जारी परिपत्र में पढ़ा जाना चाहिए.
पीठ ने जोर देकर कहा कि धोखाधड़ी पर मास्टर डायरेक्शन के तहत कर्जदारों को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए. आरबीआई और उधारदाताओं दोनों ने उच्च न्यायालय के 10 दिसंबर, 2020 के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया था कि बैंकिंग क्षेत्र में धोखाधड़ी का पता लगाने के लिए जारी किए गए मास्टर सर्कुलर में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को शामिल किया गया है. प्रभावित पक्ष/व्यक्ति को अपना पक्ष प्रस्तुत करना होगा, ऐसा न हो कि परिपत्र असंवैधानिक हो.
(पीटीआई-भाषा)