भोपाल: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कोरोना महामारी के दौर में अब तक करीब 3 हजार से अधिक शवों का अंतिम संस्कार हो चुका है. अंतिम संस्कार में केवल कोरोना संक्रमण से जान गंवाने वाले ही नहीं, बल्कि वो लोग भी शामिल हैं, जिनकी अन्य वजहों से मौत हुई है.
- अस्थि कलश का लगा ढेर
कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए भोपाल में इस साल कोरोना कर्फ्यू लगाया गया है. पिछले वर्ष भी देशव्यापी लॉकडाउन लगाया था. जिसके कारण प्रशासन ने आदेश दिया था कि जिन लोगों की भी संक्रमण के दौर में मौत हो उनका अंतिम संस्कार कोरोना प्रोटोकॉल के तहत ही किया जाए. इसके मद्देनजर भोपाल में अब तक मृतकों का अंतिम संस्कार नियमों के तहत हुआ है, जिस कारण कई मृतकों के परिजन उनका अंतिम दर्शन तक नहीं कर पाए. लिहाजा भोपाल के श्मशान घाटों में हाल यह है कि यहां मृतकों के अस्थि कलशों में उनके नाम की चिट लगाई गयी है.
- मोक्ष पाने का इंतजार
अभी तक ये अस्थियां गंगा में प्रवाहित होने और मोक्ष पाने का इंतजार कर रही हैं. कोरोना संक्रमण चलते लगी पाबंदियों से कई मृतकों के परिजन ये अस्थि कलश नहीं ले जा पाए हैं. जिसके कारण श्मशान घाटों में इन्हें संभालने के लिए लॉकर की व्यवस्था कराई गई है.
- लोग अस्थियों में उठाने में घबराते हैं
कोरोना काल में मृतकों के अंतिम संस्कार में जुटी संस्था 'जन संवेदना' के अध्यक्ष राधेश्याम अग्रवाल कहते हैं कि कोरोना काल में मानवता की मिसाल खत्म हो गई है. उन्होंने कहा कि यहां अंतिम संस्कार करवाने में भोपाल से बाहर के लोग ज्यादा हैं. यह लोग अंतिम संस्कार कर के यहां से चले जाते हैं. कोरोना के कारण लोग अस्थियों में उठाने में घबराते हैं.
- अस्थि कलश रखने के लिए लॉकर
राजधानी के श्मशान घाटों में अस्थियों के कलश रखने के लिए लॉकर की व्यवस्था की गई है. इन लॉकर्स में अस्थियों से भरे कलशों को मृतक के नाम और पता लिखकर रखा जाता है. मृतकों के परिजनों के आने पर ये अस्थियों से भरा कलश उनको सौंप दिए जाते हैं. राजधानी भोपाल के भदभदा विश्राम घाट में अस्थियों को रखने के लिए 150 लॉकर्स बनाए गए हैं.
- 300 नए लॉकर्स
भदभदा विश्राम घाट के अध्यक्ष अरुण चौधरी ने कहा कि भदभदा विश्राम घाट में शवों की संख्या बढ़ने के बाद अब 300 नए लॉकर्स अस्थियां रखने के लिए बनाए जा रहे हैं और इनका काम जल्द शुरु होना है. जानकारी के मुताबिक पिछले साल भी कई परिवार मृतकों के अस्थि कलश लेने नहीं आए थे. इसके बाद कुछ सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से सभी अस्थि कलश का विसर्जन किया गया था.