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बॉम्बे HC ने केंद्र सरकार से पूछा- नए आईटी नियमों पर रोक क्यों नहीं, जवाब दें

डिजिटल न्यूज पोर्टल 'द लीफलेट' और पत्रकार निखिल वागले द्वारा दायर याचिकाओं में दावा किया गया है कि नए नियम 'अस्पष्ट', 'कठोर' हैं. साथ ही प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रभाव डालते हैं.

Bombay HC
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Published : Aug 10, 2021, 7:25 PM IST

मुंबई : सूचना एवं प्रौद्योगिकी (आईटी) मैनुअल 2021के नियमों को चुनौती देते हुए बंबई हाई कोर्ट में दो याचिका दाखिल हुई हैं. आई टी नियमों पर नकेल कसने के लिए दायर की गईं दोनों याचिकाओं में कहा गया है कि यह नियम 'अस्पष्ट' और 'दमनकारी' हैं. समाचार वेबसाइट द लीफलेट और पत्रकार निखिल वागले की ओर से यह याचिकाएं दायर की गई हैं. मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा है. साथ ही पूछा है कि 2021 के कार्यान्वयन पर अंतरिम रोक क्यों नहीं दी जानी चाहिए. मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी की पीठ ने 12 अगस्त तक सरकार से जवाब मांगा है.

डिजिटल न्यूज पोर्टल 'द लीफलेट' और पत्रकार निखिल वागले द्वारा दायर याचिकाओं में दावा किया गया है कि नए नियम 'अस्पष्ट', 'कठोर' हैं. साथ ही प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रभाव डालते हैं.

अनुच्छेद 19 का दिया हवाला

केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने अदालत से अंतिम सुनवाई के बिना स्टे नहीं देने का आग्रह किया. द लीफलेट के लिए पेश हुए वरिष्ठ वकील डेरियस खंबाटा ने पहले तर्क दिया था कि नए नियम ऑनलाइन सामग्री को विनियमित करने का एक गलत प्रयास था.

उन्होंने कहा कि वे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम द्वारा निर्धारित मापदंडों और संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत निर्धारित सीमाओं से अलग जाते हैं. मंगलवार को, हाईकोर्ट ने पूछा कि क्या वह याचिकाकर्ताओं से सहमत होने के साथ नियमों पर अंतरिम रोक लगा सकता है. अनुच्छेद 19 (जो बोलने की स्वतंत्रता और उसकी सीमाओं को परिभाषित करता है) के तहत प्रतिबंधों के उल्लंघन में कुछ भी प्रकाशित करें और केंद्र सरकार नए नियमों के तहत उनके खिलाफ जबरदस्ती कार्रवाई नहीं करने का वादा करती है, जब तक कि अदालत अपना अंतिम निर्णय नहीं दे देती.

दंडात्मक कार्रवाई नहीं कर सकते

कोर्ट ने कहा कि मान लीजिए कि हम आपके (याचिकाकर्ताओं के) तर्क को स्वीकार करते हैं और स्टे देते हैं. इसलिए नियम निलंबन में रहेंगे. यदि आप रिट (याचिका) में विफल हो जाते हैं और अंतरिम में नियमों का उल्लंघन किया जाता है, तो आप याचिका खारिज होने पर राहत प्राप्त करने के लिए हमारे आदेशों का उपयोग नहीं कर सकते और संघ नए नियमों के अनुसार कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं कर सकता है?

अधिवक्ता खंबाटा ने कहा कि याचिकाकर्ता हमेशा अनुच्छेद 19 के तहत प्रतिबंधों का पालन करते हैं और केवल नए नियमों का विरोध करते हैं, जो अनुच्छेद 19 से परे हैं. जब तक अनुच्छेद 19 (2) ही एकमात्र सीमा है, तब तक कोई कठिनाई नहीं है. लेकिन अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने अदालत के प्रस्ताव का विरोध किया. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि अंतरिम स्थगन देने के बजाय, अंतिम मामले की सुनवाई की जा सकती है.

केंद्र सरकार ने नहीं दिया जवाब

अदालत ने कहा कि नए नियमों का विरोध करने वाली इसी तरह की याचिकाएं देशभर के उच्च न्यायालयों में दायर की गई हैं, लेकिन केंद्र सरकार ने अभी तक अपना जवाब दाखिल नहीं किया है. न्यायाधीशों ने कहा कि यदि स्टे नहीं दिया गया, तो याचिकाकर्ता जब भी कुछ ऑनलाइन प्रकाशित करेंगे, तो उन्हें प्रतिकूल कार्रवाई के 'लगातार डर' का सामना करना पड़ेगा.

एचसी ने केंद्र सरकार को कहा कि अंतरिम राहत क्यों नहीं दी जानी चाहिए, इस पर एक संक्षिप्त हलफनामा दर्ज करें. कोर्ट ने 13 अगस्त के लिए सुनवाई स्थगित कर दी. अधिवक्ता खंबाटा ने सोमवार को यह तर्क देते हुए कि कहा था कि नए नियम अस्पष्ट हैं, वे मीडिया संगठनों को बिना सबूत के स्टिंग ऑपरेशन करने और एक सार्वजनिक व्यक्तित्व के खिलाफ अपमानजनक सामग्री प्रकाशित करने से रोकते हैं.

पढ़ेंः OBC List Bill : बिल के समर्थन में जम्मू-कश्मीर के सांसद हसनैन मसूदी, अनुच्छेद 370 पर भी पूछा सवाल

मुंबई : सूचना एवं प्रौद्योगिकी (आईटी) मैनुअल 2021के नियमों को चुनौती देते हुए बंबई हाई कोर्ट में दो याचिका दाखिल हुई हैं. आई टी नियमों पर नकेल कसने के लिए दायर की गईं दोनों याचिकाओं में कहा गया है कि यह नियम 'अस्पष्ट' और 'दमनकारी' हैं. समाचार वेबसाइट द लीफलेट और पत्रकार निखिल वागले की ओर से यह याचिकाएं दायर की गई हैं. मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा है. साथ ही पूछा है कि 2021 के कार्यान्वयन पर अंतरिम रोक क्यों नहीं दी जानी चाहिए. मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी की पीठ ने 12 अगस्त तक सरकार से जवाब मांगा है.

डिजिटल न्यूज पोर्टल 'द लीफलेट' और पत्रकार निखिल वागले द्वारा दायर याचिकाओं में दावा किया गया है कि नए नियम 'अस्पष्ट', 'कठोर' हैं. साथ ही प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रभाव डालते हैं.

अनुच्छेद 19 का दिया हवाला

केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने अदालत से अंतिम सुनवाई के बिना स्टे नहीं देने का आग्रह किया. द लीफलेट के लिए पेश हुए वरिष्ठ वकील डेरियस खंबाटा ने पहले तर्क दिया था कि नए नियम ऑनलाइन सामग्री को विनियमित करने का एक गलत प्रयास था.

उन्होंने कहा कि वे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम द्वारा निर्धारित मापदंडों और संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत निर्धारित सीमाओं से अलग जाते हैं. मंगलवार को, हाईकोर्ट ने पूछा कि क्या वह याचिकाकर्ताओं से सहमत होने के साथ नियमों पर अंतरिम रोक लगा सकता है. अनुच्छेद 19 (जो बोलने की स्वतंत्रता और उसकी सीमाओं को परिभाषित करता है) के तहत प्रतिबंधों के उल्लंघन में कुछ भी प्रकाशित करें और केंद्र सरकार नए नियमों के तहत उनके खिलाफ जबरदस्ती कार्रवाई नहीं करने का वादा करती है, जब तक कि अदालत अपना अंतिम निर्णय नहीं दे देती.

दंडात्मक कार्रवाई नहीं कर सकते

कोर्ट ने कहा कि मान लीजिए कि हम आपके (याचिकाकर्ताओं के) तर्क को स्वीकार करते हैं और स्टे देते हैं. इसलिए नियम निलंबन में रहेंगे. यदि आप रिट (याचिका) में विफल हो जाते हैं और अंतरिम में नियमों का उल्लंघन किया जाता है, तो आप याचिका खारिज होने पर राहत प्राप्त करने के लिए हमारे आदेशों का उपयोग नहीं कर सकते और संघ नए नियमों के अनुसार कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं कर सकता है?

अधिवक्ता खंबाटा ने कहा कि याचिकाकर्ता हमेशा अनुच्छेद 19 के तहत प्रतिबंधों का पालन करते हैं और केवल नए नियमों का विरोध करते हैं, जो अनुच्छेद 19 से परे हैं. जब तक अनुच्छेद 19 (2) ही एकमात्र सीमा है, तब तक कोई कठिनाई नहीं है. लेकिन अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने अदालत के प्रस्ताव का विरोध किया. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि अंतरिम स्थगन देने के बजाय, अंतिम मामले की सुनवाई की जा सकती है.

केंद्र सरकार ने नहीं दिया जवाब

अदालत ने कहा कि नए नियमों का विरोध करने वाली इसी तरह की याचिकाएं देशभर के उच्च न्यायालयों में दायर की गई हैं, लेकिन केंद्र सरकार ने अभी तक अपना जवाब दाखिल नहीं किया है. न्यायाधीशों ने कहा कि यदि स्टे नहीं दिया गया, तो याचिकाकर्ता जब भी कुछ ऑनलाइन प्रकाशित करेंगे, तो उन्हें प्रतिकूल कार्रवाई के 'लगातार डर' का सामना करना पड़ेगा.

एचसी ने केंद्र सरकार को कहा कि अंतरिम राहत क्यों नहीं दी जानी चाहिए, इस पर एक संक्षिप्त हलफनामा दर्ज करें. कोर्ट ने 13 अगस्त के लिए सुनवाई स्थगित कर दी. अधिवक्ता खंबाटा ने सोमवार को यह तर्क देते हुए कि कहा था कि नए नियम अस्पष्ट हैं, वे मीडिया संगठनों को बिना सबूत के स्टिंग ऑपरेशन करने और एक सार्वजनिक व्यक्तित्व के खिलाफ अपमानजनक सामग्री प्रकाशित करने से रोकते हैं.

पढ़ेंः OBC List Bill : बिल के समर्थन में जम्मू-कश्मीर के सांसद हसनैन मसूदी, अनुच्छेद 370 पर भी पूछा सवाल

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