मेरीटाइम इंडिया समिट 2021 को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को ब्लू इकोनोमी के क्षेत्र में अग्रणी बनाने का संकल्प लिया है. उनका यह आत्मविश्वास पूरी तरह से जायज है.
सागरमाला परियोजना के बारे में पहली बार वाजयेपी शासन काल में निर्णय लिया गया था. इसके तहत भारत के जलमार्गों की क्षमता और तट को खोलने की परिकल्पना की गई थी. यूपीए शासन काल में इसे प्राथमिकता नहीं दी गई थी. पीएम मोदी ने फिर से इस परियोजना को जीवंत किया. करीब छह साल पहले इसकी प्राथमिकता बंदरगाहों का आधुनिकीकरण, तटीय आर्थिक क्षेत्र स्थापित करना, विश्व स्तरीय बंदरगाहों का निर्माण और उन सभी को आपस में जोड़ना था.
हालांकि, पिछले साल कोरोना के कारण इसकी गति धीमी हो गई. सबकुछ उलट सा गया. इसके बाद सरकार ने मेरीटाइम विजन 2030 का ड्राफ्ट किया. इसमें कुछ तब्दीलियां की गईं हैं.
भारत का मेरीटाइम इतिहास हजारों साल पुराना है. कई ऐतिहासिक बंदरगाह रहे हैं, जिसने अपने समय में व्यवसाय को बढ़ावा दिया है. भारत की तटीय लंबाई 7500 किलोमीटर है. 12 प्रमुख और करीब 200 मध्यम दर्जे वाले बंदरगाह हैं. इनके जरिए 140 करोड़ टनों के मालों की आवाजाही होती है. पीएम देश के प्राकृतिक सागरीय शक्ति को बढ़ावा देने के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं. इसके लिए सीप्लेन सेवा, बंदरगाह पर्यटन, लाईट हाउस और वाटर-वे को बढ़ावा देने पर जोर रहेगा. प्रमुख बंदरगाहों को मजबूत करने के लिए 2035 तक छह लाख करोड़ खर्च करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. पीएम ने इसके लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय निवेश का अह्वान किया है.
अगर सरकार औद्योगिक केंद्रों के नजदीक बंदरगाहों को विकसित करने में सफल हो जाती है, और प.बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात के बंदरगाहों को आपस में जोड़ दिया जाता है, तो ब्लू इकोनोमी के क्षेत्र में भारत बड़ी ताकत बनकर उभरेगा.
यहां पर परिवहान, द्वीपीय पर्यटन, जल के अंदर खनन जैसी आर्थिक गतिविधियां आसानी से की जा सकती हैं. यह एक नया परिवर्तन होगा.
विभिन्न देशों के बीच समुद्री परिवहन आधारित व्यापार और वाणिज्य के लिए समुद्री बंदरगाह महत्वपूर्ण हैं. पोर्ट कई देशों के विकास में योगदान दे रहे हैं. पोर्ट आधारित अर्थव्यवस्था के नियोजित विकास के लिए चीन सबसे अच्छा उदाहरण है. इसने आर्थिक रणनीति के तहत बंदरगाहों के करीब औद्योगिक क्लस्टर विकसित किए हैं. इसके अच्छे परिणाम देखने को मिले. इसने आसपास के स्थानीय क्षेत्र के विकास में भी योगदान दिया.
आधुनिक इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि अमेरिका, जापान समेत जिन देशों ने समुद्री ढांचा को विकसित किया है, उसका विकास तीव्र गति से हुआ है. यूरोप के कई देशों ने अंतरा-जल परिवहन पर बहुत काम किया है. भारत में 14500 किमी इंटरनल वाटर-वे की क्षमता है. लेकिन हम सिर्फ एक अंश का उपयोग कर पा रहे हैं. भारत में एक मात्र राज्य केरल है, जो इसका फायदा उठा रहा है.
वैश्विक स्तर पर मत्स्य निर्यात में भारत की भागीदारी आठ फीसदी तक है. इसमें अभी बड़ी संभावनाएं बची हुई हैं.
सड़क के मुकाबले जल के जरिए आने-जाने में उसका पांचवां हिस्सा ही खर्च होता है. लिहाजा, इसका विकास बहुत जरूरी है. उतना ही महत्वपूर्ण है बंदरगाहों का विकास. इससे रोजगार की संख्या में भी वृद्धि होगी. अगर इसकी ठीक ढंग से प्लानिंग की जाती है और सरकार उसका फॉलो-अप करती रहे, तो समुद्री उद्योग धन का एक अच्छा संसाधन बनकर उभरेगा.