बोलंगीर: मनुष्य की दृढ़ इच्छाशक्ति ही उसे सफल बनाती है. कुछ लोग अपने जीवन में कई बाधाओं और चुनौतियों का सामना करने के बाद अपनी पहचान बनाने में सफल होते हैं. ऐसे ही एक शख्स हैं बोलंगीर के सनतिका गांव के सुरेश नाइक. बता दें, उन्होंने बहुत कम उम्र में ही अपनी आंखें खो दी थीं, लेकिन दृढ़ इच्छा शक्ति के चलते ही आज उनकी सफल व्यक्ति के रूप में पहचान है.
3 साल की उम्र में गंवाईं दोनों आखें
दिव्यांग होने के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और एक सफल किसान बनने की ठानी. आज वह न केवल वह एक सफल किसान हैं, बल्कि वे एक संगीतकार और गीतकार भी हैं. उन्होंने अपने लिए एक ऐसी पहचान बनाई है, जहां वह अपने शिक्षक और मार्गदर्शक हैं. वह अपने जीवन उम्र के आखिरी पड़ाव पर हैं. उनका शरीर कमर से झुका हुआ है, उनकी खाल लटक चुकी है. वह छोटी चेचक से पीड़ित रह चुके हैं, इसी वजह से केवल तीन साल की उम्र में उन्होंने अपनी दोनों आँखें खो दी थीं.
खेती करके दूसरों को सिखाया सबक
बचपन में आंखें खोने से उनकी आसपास की रंगीन दुनिया अंधकार में तब्दील हो गई. एक तो गरीब और ऊपर से अंधे उनकी जिंदगी नर्क होते जा रही थी. लेकिन, जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ रही थी वैसे-वैसे उनके जीवन में बाधाएं भी बढ़ रही थी. लेकिन हिम्मत न हारते हुए सुरेश नाइक ने अपना संघर्ष जोरी रखा. सुरेश ने अपनी दो एकड़ कृषि भूमि पर खेती करने की ठानी और जैसे-तैसे खेती करने लगे. जबकि खेती करना असंभव था, लेकिन, उन्होंने सफलतापूर्वक काम पूरा किया और दूसरों को सबक भी सिखाया.
खेती के साथ-साथ कुएं से निकालते हैं पानी
दिव्यांग होने के बावजूद भी सुरेश नाइक अपनी खेत को पहचान लेते हैं. खेती के साथ-साथ वह सिंचाई के लिए पास के कुएं से पानी भी निकालते हैं. इन सबके अलावा वह धान की फसल की कटाई भी सावधानीपूर्वक करते हैं. हालांकि इन सब कामों में उनकी पत्नी भी सहयोग देती हैं. उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुके सुरेश नाइक अपने परिवार का बोझ भी उठा रहे हैं. इन सब कामों के पीछे सिर्फ सुरेश नाइक की दृढ़ इच्छा शक्ति ही है. उन्होंने खुद को दूसरों के लिए एक मिसाल बनाया है. वह न केवल एक सफल किसान हैं, बल्कि एक ही समय में वह एक संगीतकार, एक गीतकार और एक वाद्य यंत्र हैं और दूसरों के सामने खुद के लिए एक विशेष पहचान बनाने में सक्षम हैं.
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गांव के लोग उनको मानते हैं शिक्षक
इसलिए सनतिका गांव के लोग उन्हें अपना "गुरु" (शिक्षक) मानते हैं और उनका सम्मान करते हैं. शुरू में उन्होंने बैरागढ़ के एक शिक्षक से बैंजो बजाना सीखा था, लेकिन, बाद में उन्होंने खुद "मृदंग '(मिट्टी से बनी झांकी), पियानो और बांसुरी को परफेक्ट तरीके से बजाना शुरू कर दिया. इसी तरह वह गीत लिखने और संगीत की धुन बनाने में महारथ हासिल है. वह गांव के छोटे बच्चों को अपना आत्म ज्ञान भी प्रदान कर रहे हैं.