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कोरोना संक्रमण के बाद ब्लैक फंगस के मामलों में डबल बढ़ोतरी

चंडीगढ़ पीजीआई के डॉक्टर अरुणलोक चक्रवर्ती ने दावा किया है कि कोरोना संक्रमण के बाद ब्लैक फंगस के मामले डबल स्पीड से बढ़े हैं. उन्होंने बताया है कि सबसे ज्यादा संक्रमण 58 प्रतिशत नाक और आंखों में फैलने का रहा. नौ प्रतिशत केसों में फेफड़ों में संक्रमण जा पहुंचा.

Black fungus
ब्लैक फंगस
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Published : Jun 6, 2021, 11:49 AM IST

चंडीगढ़ : पीजीआई चंडीगढ़ के डॉ. अरुणलोक चक्रवर्ती के अनुसार, कोरोना के बाद ब्लैक फंगस के मामले दोगुना रफ्तार से बढ़े हैं. उन्होंने बताया कि 2020 में ब्लैक फंगस (म्यूकर माइकोसिस) के केसों का वर्ष 2019 की तुलना में पूरे देश में 2.1 प्रतिशत ज्यादा फैलाव हुआ. ये फैलाव कोविड-19 (coronavirus) संक्रमण की वजह से हुआ.

डॉ. चक्रवर्ती ने बताया कि कोविड संक्रमण के 18 दिन बाद मरीजों में ब्लैक फंगस (black fungus) की शिकायत मिली. सबसे ज्यादा संक्रमण 58 प्रतिशत नाक और आंखों में फैलने का रहा. 27 प्रतिशत लोगों में आंखों के साथ ब्रेन भी फंगस संक्रमण की जद में आ गया. नौ प्रतिशत केसों में फेफड़ों में संक्रमण जा पहुंचा.

उन्होंने बताया कि पहले कोविड और बाद में ब्लैक फंगस से संक्रमित इन मरीजों को अस्पताल में काफी देरी से पहुंचाया गया. इससे पहले संक्रमण दिमाग तक फैल गया. इससे फेशियल पेन, नसल (नॉक का पैसेज) बलॉकेज एवं डिसचार्ज, दांतों में दर्द या इसके टूटने जैसी समस्याएं मरीजों में पहली बार देखने को मिली.

डॉ. अरुणलोक चक्रवर्ती ने बताया कि जिन मरीजों में कोविड नहीं हुआ और उन्हें ब्लैक फंगस का संक्रमण हो गया, उनमें अनकंट्रोलड (अनियंत्रित) डायबीटिज या मधुमेह की शिकायत थी. दोनों ग्रुपों में अनकंट्रोलड डायबीटिज या मधुमेह मुख्य रूप से मौजूद था. कोविड के साथ ब्लैक फंगस के मरीजों में सामने आया कि उन्हें डायबीटिज या मधुमेह की हाल ही में बीमारी हुई थी, लेकिन नॉन-कैम (कोविड एसोसिएटिड म्यूकर माइकोसिस) केसों में सामने आया कि उनमें 20.9 प्रतिशत में पहले से ही मधुमेह था. कैम के मामलों में ये आंकड़ा महज 10 प्रतिशत था.

ये भी पढे़ं- जिन्हें कोरोना नहीं हुआ उनको क्यों हो रहा ब्लैक फंगस, डॉक्टर ने बताए ये कारण

इससे ये बात सामने आई कि मधुमेह को अनियंत्रित करने में कोविड संक्रमण का महत्वपूर्ण रोल रहा. जिसकी वजह से इनमें ब्लैक फंगस फैला. डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के केसों में कोविड एसोसिएटिड म्यूकर माइकोसिस महज कोविड संक्रमण के आठ दिन के भीतर हो गया.

जिन मरीजों में कैम बाद में पनपा उन्हें बड़े स्तर पर स्टेरॉयड का ट्रीटमेंट दिया गया. 63.3 प्रतिशत लोगों में स्टेरॉयड का हाई डोज दिए जाने की बात सामने आई. उन्होंने कहा कि इन मरीजों को स्टेरॉयड की जरूरत नहीं थी.

चंडीगढ़ : पीजीआई चंडीगढ़ के डॉ. अरुणलोक चक्रवर्ती के अनुसार, कोरोना के बाद ब्लैक फंगस के मामले दोगुना रफ्तार से बढ़े हैं. उन्होंने बताया कि 2020 में ब्लैक फंगस (म्यूकर माइकोसिस) के केसों का वर्ष 2019 की तुलना में पूरे देश में 2.1 प्रतिशत ज्यादा फैलाव हुआ. ये फैलाव कोविड-19 (coronavirus) संक्रमण की वजह से हुआ.

डॉ. चक्रवर्ती ने बताया कि कोविड संक्रमण के 18 दिन बाद मरीजों में ब्लैक फंगस (black fungus) की शिकायत मिली. सबसे ज्यादा संक्रमण 58 प्रतिशत नाक और आंखों में फैलने का रहा. 27 प्रतिशत लोगों में आंखों के साथ ब्रेन भी फंगस संक्रमण की जद में आ गया. नौ प्रतिशत केसों में फेफड़ों में संक्रमण जा पहुंचा.

उन्होंने बताया कि पहले कोविड और बाद में ब्लैक फंगस से संक्रमित इन मरीजों को अस्पताल में काफी देरी से पहुंचाया गया. इससे पहले संक्रमण दिमाग तक फैल गया. इससे फेशियल पेन, नसल (नॉक का पैसेज) बलॉकेज एवं डिसचार्ज, दांतों में दर्द या इसके टूटने जैसी समस्याएं मरीजों में पहली बार देखने को मिली.

डॉ. अरुणलोक चक्रवर्ती ने बताया कि जिन मरीजों में कोविड नहीं हुआ और उन्हें ब्लैक फंगस का संक्रमण हो गया, उनमें अनकंट्रोलड (अनियंत्रित) डायबीटिज या मधुमेह की शिकायत थी. दोनों ग्रुपों में अनकंट्रोलड डायबीटिज या मधुमेह मुख्य रूप से मौजूद था. कोविड के साथ ब्लैक फंगस के मरीजों में सामने आया कि उन्हें डायबीटिज या मधुमेह की हाल ही में बीमारी हुई थी, लेकिन नॉन-कैम (कोविड एसोसिएटिड म्यूकर माइकोसिस) केसों में सामने आया कि उनमें 20.9 प्रतिशत में पहले से ही मधुमेह था. कैम के मामलों में ये आंकड़ा महज 10 प्रतिशत था.

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इससे ये बात सामने आई कि मधुमेह को अनियंत्रित करने में कोविड संक्रमण का महत्वपूर्ण रोल रहा. जिसकी वजह से इनमें ब्लैक फंगस फैला. डायबिटिक कीटोएसिडोसिस के केसों में कोविड एसोसिएटिड म्यूकर माइकोसिस महज कोविड संक्रमण के आठ दिन के भीतर हो गया.

जिन मरीजों में कैम बाद में पनपा उन्हें बड़े स्तर पर स्टेरॉयड का ट्रीटमेंट दिया गया. 63.3 प्रतिशत लोगों में स्टेरॉयड का हाई डोज दिए जाने की बात सामने आई. उन्होंने कहा कि इन मरीजों को स्टेरॉयड की जरूरत नहीं थी.

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