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एकनाथ शिंदे को सीएम पद देकर बीजेपी ने खेला मराठा कार्ड

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Published : Jun 30, 2022, 10:51 PM IST

वैसे तो बीजेपी में कई फैसले चौकानेवाले होते रहे हैं मगर पिछले एक पखवाड़े से चल रहा महाराष्ट्र के सियासी ड्रामे का अंत कुछ ज्यादा ही नाटकीय अंदाज में नजर आया. आखिर महाराष्ट्र के सियासी ड्रामे में अंतिम चरण में किए गए इस फेरबदल के पीछे क्या है बीजेपी की नीति, जानने के लिए पढ़ें ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की ये रिपोर्ट...

एकनाथ शिंदे
एकनाथ शिंदे

नई दिल्ली : क्या बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर उद्धव ठाकरे की पूरी राजनीति पर ग्रहण लगा दिया है? ध्यान से देखें तो आज का कुल नतीजा ये कि बीजेपी ने बड़ा दिल दिखाते हुए शिवसेना की सारी रणनीति फेल कर दी. शिवसेना के एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर उद्धव के बचे विधायकों को मौका दे दिया कि वे भी शिंदे के साथ आ जाएं. सीएम पद खुद ना लेकर ये भी दिखाने कि कोशिश की कि वे सत्ता के लालची नही हैं, मिली हुई कुर्सी छोटे भाई को दे सकते हैं.

शिंदे को कुर्सी मिली और बीजेपी को सहानुभूति, जिसे 2024 की लड़ाई में भुनाने की कोशिश बीजेपी करेगी. नाम न बताने की शर्त पर पार्टी के एक नेता बताते हैं कि मकसद एक बड़ी लड़ाई लड़ने का है, जिसके तहत ठाकरे की बची खुची पार्टी और विधायकों को शिंदे के साथ लाया जाएगा. यानी माइनस ठाकरे परिवार शिवसेना के साथ मिलकर महाराष्ट्र का राज चलाने की योजना है. शिंदे को लाकर बीजेपी ने मराठा कार्ड भी खेला है, जो आगे की राजनीति में काम आएगा.

हाथ में आई कुर्सी जाते देख बेशक देवेंद्र फडणवीस नाराज हुए लेकिन उन्हें बाद में नड्डा ने सार्वजनिक तौर पर आग्रह कर डिप्टी चीफ मिनिस्टर का पद स्वीकारने को कहा और इस तरह दो बार के चीफ मिनिस्टर रहे देवेंद्र फडणवीस ने बतौर उप मुख्यमंत्री शपथ ली. विपक्ष बेशक इसे फडणवीस का डिमोशन कहे, लेकिन सच ये है कि उनसे पहले महाराष्ट्र में दो सीएम रह चुके शंकर राव चौहान और नारायण राणे ने मुख्यमंत्री रहने के बाद भी कैबिनेट मिनिस्टर की भी भूमिका निभाई.

इसलिए राजनीति में ये विष पीने वाले देवेंद्र फडणवीस पहले नहीं हैं. उनके त्याग के पीछे की कहानी यही है कि एक तो बीजेपी महाराष्ट्र में एक संदेश देना चाहती है कि वो बालासाहब ठाकरे की विचारधारा के खिलाफ नहीं है और शिवसेना को सत्ता सौंपने में उसे कोई हिचक नहीं है. ध्यान रहे उद्धव ठाकरे ये आरोप लगाते रहे हैं कि बीजेपी ने उन्हें धोखा दिया था. उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया था. दूसरी वजह ये कि शिंदे को सत्ता मिलेगी तो उद्धव ठाकरे के पास बचे खुचे विधायक और कार्यकर्ता शिंदे के साथ आ जाएंगे. बाला साहब ठाकरे जय-जयकार शिंदे की सेना भी करेगी लेकिन उद्धव अकेले पड़ जाएंगे. 2024 की अगली लड़ाई शिंदे की शिवसेना के साथ बीजेपी लड़ेगी और जीतेगी.

अब लाख टके का सवाल ये है कि अगर बीजेपी को शिवसेना को ही सत्ता की कुर्सी देनी थी, तो ढाई साल पहले ही कर लेते, आज क्यों. आने वाले वक्त में बीजेपी के कार्यकर्ताओं के इस सवाल का जवाब पार्टी को खोजना होगा.

नई दिल्ली : क्या बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर उद्धव ठाकरे की पूरी राजनीति पर ग्रहण लगा दिया है? ध्यान से देखें तो आज का कुल नतीजा ये कि बीजेपी ने बड़ा दिल दिखाते हुए शिवसेना की सारी रणनीति फेल कर दी. शिवसेना के एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर उद्धव के बचे विधायकों को मौका दे दिया कि वे भी शिंदे के साथ आ जाएं. सीएम पद खुद ना लेकर ये भी दिखाने कि कोशिश की कि वे सत्ता के लालची नही हैं, मिली हुई कुर्सी छोटे भाई को दे सकते हैं.

शिंदे को कुर्सी मिली और बीजेपी को सहानुभूति, जिसे 2024 की लड़ाई में भुनाने की कोशिश बीजेपी करेगी. नाम न बताने की शर्त पर पार्टी के एक नेता बताते हैं कि मकसद एक बड़ी लड़ाई लड़ने का है, जिसके तहत ठाकरे की बची खुची पार्टी और विधायकों को शिंदे के साथ लाया जाएगा. यानी माइनस ठाकरे परिवार शिवसेना के साथ मिलकर महाराष्ट्र का राज चलाने की योजना है. शिंदे को लाकर बीजेपी ने मराठा कार्ड भी खेला है, जो आगे की राजनीति में काम आएगा.

हाथ में आई कुर्सी जाते देख बेशक देवेंद्र फडणवीस नाराज हुए लेकिन उन्हें बाद में नड्डा ने सार्वजनिक तौर पर आग्रह कर डिप्टी चीफ मिनिस्टर का पद स्वीकारने को कहा और इस तरह दो बार के चीफ मिनिस्टर रहे देवेंद्र फडणवीस ने बतौर उप मुख्यमंत्री शपथ ली. विपक्ष बेशक इसे फडणवीस का डिमोशन कहे, लेकिन सच ये है कि उनसे पहले महाराष्ट्र में दो सीएम रह चुके शंकर राव चौहान और नारायण राणे ने मुख्यमंत्री रहने के बाद भी कैबिनेट मिनिस्टर की भी भूमिका निभाई.

इसलिए राजनीति में ये विष पीने वाले देवेंद्र फडणवीस पहले नहीं हैं. उनके त्याग के पीछे की कहानी यही है कि एक तो बीजेपी महाराष्ट्र में एक संदेश देना चाहती है कि वो बालासाहब ठाकरे की विचारधारा के खिलाफ नहीं है और शिवसेना को सत्ता सौंपने में उसे कोई हिचक नहीं है. ध्यान रहे उद्धव ठाकरे ये आरोप लगाते रहे हैं कि बीजेपी ने उन्हें धोखा दिया था. उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया था. दूसरी वजह ये कि शिंदे को सत्ता मिलेगी तो उद्धव ठाकरे के पास बचे खुचे विधायक और कार्यकर्ता शिंदे के साथ आ जाएंगे. बाला साहब ठाकरे जय-जयकार शिंदे की सेना भी करेगी लेकिन उद्धव अकेले पड़ जाएंगे. 2024 की अगली लड़ाई शिंदे की शिवसेना के साथ बीजेपी लड़ेगी और जीतेगी.

अब लाख टके का सवाल ये है कि अगर बीजेपी को शिवसेना को ही सत्ता की कुर्सी देनी थी, तो ढाई साल पहले ही कर लेते, आज क्यों. आने वाले वक्त में बीजेपी के कार्यकर्ताओं के इस सवाल का जवाब पार्टी को खोजना होगा.

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