नई दिल्ली: बीते पांच दिनों से संसद की कार्यवाही लगातार बाधित हो रही है. हालांकि विपक्ष के हंगामे के बीच सरकार ने कई महत्वपूर्ण बिल पास करा लिया है. बावजूद इसके 12 सांसदों के निलंबन के मामले पर और गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र (Ajay Mishra) 'टेनी' के इस्तीफे पर विपक्ष अड़ा है.
सोमवार को संसदीय कार्य मंत्री ने सरकार की तरफ से उन पार्टी के नेताओं को एक बैठक में चर्चा के लिए बुलाया था, जिन 12 सांसदों के निलंबन के मामले पर, विपक्ष लामबंद है. लेकिन विपक्षी पार्टियों ने आरोप लगाया कि सरकार विपक्षियों के बीच फूट डालने की कोशिश कर रही है, यही वजह है कि सभी विपक्षी पार्टियों को नहीं बुलाया गया.
बहरहाल, सांसदों के निलंबन और राज्यमंत्री अजय मिश्रा (Ajay Mishra) 'टेनी' के इस्तीफे, दोनों पर ही सरकार पसोपेश में है. यहां सवाल यह उठता है कि क्या, राज्य मंत्री अजय मिश्रा का मामला सरकार के लिए गले की हड्डी बन चुका है, जबकि सत्ताधारी पार्टी हर हाल में अजय मिश्र टेनी के साथ होने की दिखावा कर रही है, लेकिन वास्तविकता यह है कि प्रधानमंत्री के नाश्ते की बैठक में भी उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया था और ना ही शाहजहांपुर के प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के मंच पर गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी नजर आए. यदि देखा जाए तो टेनी ना तो अपने सीनियर मंत्री अमित शाह के कार्यक्रमों में नजर आ रहे हैं और ना ही उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण चुनावी कार्यक्रमों में ही दिखाई पड़ रहे हैं.
इससे यह बात तो साफ है कि सरकार भले ही विपक्ष के दबाव में अजय मिश्र 'टेनी' का इस्तीफा नहीं ले रही, लेकिन पार्टी और सरकार दोनों की तरफ से यह बात साफ कर दी गई है है कि 'टेनी' से सिर्फ पार्टी ही नहीं सरकार भी नाराज है, यही नहीं सूत्रों की माने तो अजय मिश्रा टेनी को भाजपा के आलाकमान ने उनके व्यवहार पर फटकार भी लगाई है,
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर मजबूरी क्या है कि पार्टी ना तो 'टेनी' को अपने कार्यक्रमों में शामिल कर रही है, न ही मंत्रालय के किसी महत्वपूर्ण कार्यक्रम में टेनी नजर आ रहे हैं और ना ही उत्तर प्रदेश के चुनावी मंच पर ही अजय मिश्र टेनी को आमंत्रित किया जा रहा है. कहीं ना कहीं देखा जाए तो एक तरह से एसआईटी की रिपोर्ट के बाद जिसमें यह साफ साफ कहा गया है कि गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र 'टेनी' के बेटे ने इस घटना को साजिशन अंजाम दिया था, उसके बाद से विपक्ष के सामने सरकार बैकफुट पर आ गई है.
सरकार की दुविधा यह है कि यदि किसान आंदोलन के आगे कृषि बिल को वापस लेने के बाद यदि टेनी का इस्तीफा भी लिया जाता है, तो कहीं ना कहीं विपक्ष इन तमाम मुद्दों को आने वाले 4 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में अपनी बड़ी उपलब्धि बताकर तामझाम के साथ पेश करेगा और इस बात से सरकार सहमी हुई नजर आ रही है.
यही वजह है कि 12 सांसदों के निलंबन को लेकर बार-बार सरकार विपक्षी पार्टियों को बातचीत के प्लेटफार्म पर आने की गुजारिश कर रही है. बावजूद इसके, मामला, संभलता हुआ नजर नहीं आ रहा है.
नाम न छापने की शर्त पर सरकार के एक मंत्री ने बताया कि यदि सरकार हर बार विपक्ष के दबाव में आकर उनकी मांगें मानती रही तो कहीं ना कहीं सरकार के लिए यह स्थिति सही नहीं होगी, उन्होंने कहा कि, जहां तक सवाल ब्राह्मण वोट को नाराज करने का है. मुझे नहीं लगता कि किसी ऐसी घटना को यदि किसी मंत्री के बेटे ने भी यदि साजिशन भी अंजाम दिया हो तो उसके पिता को इस बात का दंड देना कहीं से भी लाजमी है,
बहरहाल इस बात से तो वह जरूर सहमत थे कि संसद की कार्रवाई में, इससे गतिरोध जरूर आ रहा है और सरकार को यदि इस्तीफा नहीं भी तो अजय मिश्रा टेनी के माफीनामा या उन्हें अपनी बात बोलने का मौका देने की व्यवस्था करनी चाहिए.
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वहीं, इस मुद्दे पर, विपक्ष गृह राज्य मंत्री के इस्तीफे से नीचे किसी बात को भी मानने को तैयार नहीं है और अंदर खाने सूत्रों की माने तो सरकार फिलहाल इस सत्र में विपक्ष के इस्तीफे की मांग को मानने वाली नहीं और इसी हंगामे के बीच महत्वपूर्ण विधेयक भी पारित कराए जाने की योजना है. मगर सोमवार को विपक्ष ने अपना विरोध तेज करते हुए बिजनेस एडवाइजरी कमिटी की मीटिंग में को भी यह कहकर बायकाट कर दिया कि उन्हें इस बात की समय पर जानकारी नहीं दी गई थी.
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ऐसे में यदि तमाम विधाई कार्यों में विपक्ष सरकार का साथ नहीं देता तो सरकार अपने इमेज को लेकर भी परेशान है कि कहीं सरकार की तानाशाही इमेज ना बन जाए और सूत्रों की मानें तो कई वरिष्ठ मंत्रियों को विपक्ष के अलग-अलग नेताओं से बात करने के लिए भी जिम्मेदारी दी गई है ताकि संसद सत्र के बाकी बचे हुए दिन सुचारू रूप से चल सके.
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