देहरादून (उत्तराखंड): तीन राज्यों में जीत मिलने के बाद चारों तरफ बीजेपी के चुनावी रणनीति की चर्चा हो रही है, लेकिन जिस तरह से बीजेपी ने सीएम की कुर्सी पर नए नवेले नेताओं को बैठाया है, उसके बाद इस बात को लेकर न केवल राजनीति में रुचि रखने वाले बल्कि, खुद बीजेपी के नेता भी हैरान हैं कि आखिरकार हो क्या रहा है, लेकिन अगर हम थोड़ी गहराई में जाएं तो इसका जवाब आज से करीब दो साल पहले यानी 4 जुलाई 2021 को मिल गया था. जब बीजेपी ने उत्तराखंड में एक ऐसे चेहरे को सीएम बनाया था, जिसकी किसी को संभावना भी नहीं थी.
उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने उस लाइन की शुरुआत कर दी थी, जिस लाइन में अब राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के सीएम को बैठाया गया है. यानी सीएम धामी उस नई बीजेपी की सोच के पहले सीएम थे, जिनको चुनने के बाद ये तय हो गया था कि बीजेपी आने वाले समय में उम्रदराज नहीं बल्कि युवा, अनुभवी और भविष्य में बीजेपी को राजनीति की इस रेस में लंबे समय तक दौड़ा सकें.
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आदरणीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी की गरिमामयी उपस्थिति में छत्तीसगढ़ की नवनिर्वाचित सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में सम्मिलित हुआ।
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) December 13, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
माननीय मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय जी एवं उप मुख्यमंत्री श्री विजय शर्मा जी व श्री अरुण साव जी को नवीन उत्तरदायित्व के लिए हार्दिक बधाई एवं… pic.twitter.com/qSBoQBNWAM
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माननीय मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय जी एवं उप मुख्यमंत्री श्री विजय शर्मा जी व श्री अरुण साव जी को नवीन उत्तरदायित्व के लिए हार्दिक बधाई एवं… pic.twitter.com/qSBoQBNWAMआदरणीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी की गरिमामयी उपस्थिति में छत्तीसगढ़ की नवनिर्वाचित सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में सम्मिलित हुआ।
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उत्तराखंड से हो गई थी भविष्य की बीजेपी की शुरुआतः उत्तराखंड में विधानसभा चुनावों से पहले ही बीजेपी ने सीएम का चेहरा बदला, बीजेपी के तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने 5 साल के कार्यकाल को पूरा कर ही रहे थे, तभी अचानक से उन्हें हटा दिया गया. पुष्कर धामी के मुकाबले त्रिवेंद्र रावत अनुभव में बेहद आगे थे. उन्होंने साल 1979 में अपना राजनीतिक सफर शुरू किया और इसी साल त्रिवेंद्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े.
इसके बाद उन्हें बीजेपी ने कई पदों पर रखा. साल 2002 और 2007 के अलावा वे 2017 में भी विधायक बने. इसके बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन बीजेपी ने साल 2014 के बाद से जो रणनीति बनाई, उसका पहला पन्ना उत्तराखंड में लिखा गया, जब त्रिवेंद्र रावत को हटाकर अचानक से तमाम नेताओं को ये संदेश दिया कि बीजेपी किसी पहुंच या अनुभव को देखकर नहीं, बल्कि भविष्य को देखकर हर फैसला लेगी.
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ऐसा ही हुआ, खटीमा से आने वाले विधायक पुष्कर सिंह धामी को अचानक से बीजेपी ने उत्तराखंड के सबसे बड़े पद पर आसीन कर दिया. बिना ये सोचे समझे कि धामी जो दो बार के विधायक हैं, वो चार से पांच बार के विधायकों के साथ कैसे समन्वय बनाएंगे. बीजेपी ने उत्तराखंड से अपने इस प्लान की शुरुआत कर दी थी, जिसकी झलक अब अन्य राज्यों में भी देखने के लिए मिल रही है.
युवा धामी को सिर्फ सीएम ही नहीं बनाया, बल्कि कंधे पर भी रखा हाथ: ऐसा नहीं है कि पीएम मोदी और अमित शाह समेत पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पुष्कर धामी को सिर्फ सीएम बनाकर राज्य चलाने को कहा, बल्कि सभी नेताओं ने बार-बार राज्य के बड़े और अनुभवी नेताओं को भी संदेश देने का काम किया. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश को छोड़ दें तो प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने शायद ही किसी राज्य में इतने दौरे किए हों, जितने दौरे वे उत्तराखंड में कर चुके हैं.
कभी केदारनाथ तो कभी गढ़वाल तो कभी कुमाऊं में हर बार आकर पुष्कर धामी के कंधे पर हाथ रखना और दिल्ली में दो सालों में करीब 5 बार धामी से मिलना भी इस बात की ओर इशारा करता है कि पीएम से लेकर सभी बड़े नेता एक युवाओं को भविष्य की राजनीति के गुणाभाग न केवल सिखा रहे रहें हैं, बल्कि बाकी लोगों को संदेश भी दे रहे हैं.
3 राज्य के सीएम के चेहरे नए, पुराने हुए शांत: उत्तराखंड की तरह राजस्थान और छत्तीसगढ़ के साथ मध्य प्रदेश में भी पार्टी अब उसी राह पर दिखाई दे रही है. राजस्थान में एक बार के विधायक को सीएम बनाकर वसुधंरा राजे समेत कई बड़े नेताओं को पार्टी ने शांति से बैठा दिया है. इतना ही नहीं जो सांसद थे, वो भी अब विधायक हो गए हैं. बात मध्य प्रदेश की करें तो वहां भी अनुभवी नेता जो संसद में थे, उन्हें भी विधायक बना दिया गया है.
अकेले छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय आदिवासी समाज से आने वाले नेता हैं. हालांकि, वे चार बार सांसद, दो बार विधायक, केंद्रीय राज्य मंत्री और दो बार प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं, लेकिन यहां भी किसी को ये विश्वास नहीं था कि बीजेपी विष्णुदेव पर दांव खेलेगी. ये नाम भी अचानक से सामने आया, जिसने सबको चौंका दिया.
बीजेपी की हर कार्यकर्ता पर नजर: बीजेपी के ये तमाम फैसले भी बता रहे हैं कि अब तक राजनीति में बड़े नेताओं से अच्छी दोस्ती बड़े-बड़े संबंध या शक्ति प्रदर्शन से जो पद मिल जाते थे, वो बात अब गुजरे जमाने की हो गई है. मौजूदा बीजेपी न तो नेताओं के शोर शराबे और न ही किसी सोर्स सिफारिश में दबाव में आती है. जहां फैसला एक होगा और वही सभी को मानना भी होगा.
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ऐसा ही बीते कुछ सालों से बीजेपी कर भी रही है. अच्छी बात ये है कि इन फैसलों के बाद पार्टी में न कोई अंतर्कलह सामने आती है न ही कोई खुले मंच से विरोध कर रहा है. अगर विरोध है भी तो कम से कम पीएम मोदी और पार्टी दोनों फिलहाल दबाव में नहीं आ रहे हैं. इसके अलावा बगावत वाली स्थिति भी देखने को नहीं मिल रही है. मतलब साफ है कि पार्टी में शांति से काम करते रहें, नजर सब पर है.
लोकसभा चुनाव 2024 ही नहीं, अगले कई सालों की हो रही प्लानिंग: बीजेपी के तमाम फैसलों ने ये साबित कर दिया है कि लोकसभा चुनाव की तस्वीर क्या होगी? देशभर के साथ साथ उत्तराखंड में भी बीजेपी इस बार बदलाव कर सकती है. ये बात खुद बीजेपी के नेता और तमाम जानकार भी कहते हैं. बीजेपी नेता अभिमन्यु कुमार कहते हैं कि 'बीजेपी नई लीडरशिप तैयार कर रही है. कुछ लोग कह रहे हैं कि ये 2024 को ध्यान में रखकर किया जा रहा है. जबकि, ऐसा नहीं है. ये आने वाले 20 या 30 सालों को ध्यान में रख कर किया जा रहा है. देश को अभी बहुत कुछ देखना बाकी है.'
उनका कहना है कि 'तरक्की के नए आयाम गढ़े जाने हैं और ये सब ऐसे ही नहीं होगा. कुछ न कुछ बड़े बदलाव करने होंगे. बीते 70 सालो में जो कुछ भी हुआ है, वो एक दो परिवारों ने किया. हम नए देश की कल्पना कर रहे हैं. जिसमें सब कुछ बहुत बेहतर होगा. आगामी 2047 तक भारत को विकसित एवं आत्मनिर्भर देश बनाना है. बीजेपी को बीजेपी के परिपेक्ष्य में ही देखना होगा. उत्तराखंड की बात करें तो बदलाव इस बार भी हुआ है और आगे भी होंगे, ऐसी उम्मीद है.'
कांग्रेस की गलतियों से बीजेपी ने सीखा: वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र सेठी कहते हैं कि बीजेपी ने ये सब कांग्रेस को देखकर सीखा है. बीजेपी देख चुकी है कि कांग्रेस में कुछ नेता पार्टी की मजबूरी बन गए हैं. वहीं एक दो नेता हैं, जिनके ऊपर पार्टी चल रही है. बीजेपी किसी भी नेता को पार्टी के लिए मजबूरी नहीं बनने देना चाहती है. यही कारण है कि वो बड़े-बड़े धुरंधरों को ये एहसास करवा रही है कि यहां पार्टी ऐसे भी चल सकती है.
यही अब इस पार्टी की ताकत भी बन रही है. उत्तराखंड की बात करें तो आने वाले लोकसभा के टिकट वितरण में कोई अंतिम पंक्ति का व्यक्ति लोकसभा का टिकट लिए खड़ा होगा. ये सभी अनुभवी उसके पीछे होंगे. ये बात सभी नेताओं, खासकर बीजेपी में समझनी होगी कि भले नया हो या पुराना. कोई अगर गुटबाजी या थोड़ा सा भी पार्टी लाइन से अलग चलेगा तो पार्टी उसे एहसास करवाने में समय नहीं लगाएगी.
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