नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गुजरात सरकार से बिलकिस बानो मामले में दोषियों को दिए गए छूट आदेश सहित कार्यवाही का पूरा रिकॉर्ड दाखिल करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के सामूहिक दुष्कर्म और कई हत्याओं के दोषी 11 लोगों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है.
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने गुजरात सरकार को सभी रिकॉर्ड दाखिल करने का निर्देश दिया, जो मामले के सभी आरोपियों को छूट देने का आधार बने. शीर्ष कोर्ट ने राज्य सरकार से 2 सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने को कहा और कुछ आरोपियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ऋषि मल्होत्रा को भी जवाब दाखिल करने को कहा.
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने पूछा कि क्या दूसरे मामले में नोटिस जारी करने की आवश्यकता है, क्या यह एक समान याचिका है, जिसमें कार्रवाई का एक ही कारण है.
मल्होत्रा ने बताया कि, 'बिना किसी 'ठिकाने' वाले लोगों द्वारा कई याचिकाएं दायर की जा रही थीं और मैं इस के खिलाफ हूं .. वे हर मामले में सिर्फ याचिकाएं और अभियोग आवेदन बढ़ा रहे हैं.'
पीठ ने कहा कि नोटिस जारी किए बिना मामलों का निपटारा नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने मामले में मल्होत्रा को नोटिस जारी किया और उनसे निर्देश लेने के लिए भी कहा कि क्या वह मामले में अन्य आरोपियों के लिए पेश हो सकते हैं. शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को छूट आदेश सहित सभी प्रासंगिक दस्तावेजों को रिकॉर्ड पर रखने का निर्देश दिया और मामले को तीन सप्ताह के बाद आगे की सुनवाई के लिए तय किया.
सुप्रीम कोर्ट ने 25 अगस्त को 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका पर गुजरात सरकार से जवाब मांगा. साथ ही स्पष्ट किया कि उसने दोषियों को छूट की अनुमति नहीं दी, और इसके बजाय सरकार से विचार करने के लिए कहा था. शीर्ष कोर्ट माकपा की पूर्व सांसद सुभासिनी अली, पत्रकार रेवती लौल (revati laul) और प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस मामले में तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने भी शीर्ष अदालत का रुख किया है.
ये है मामला : उम्र कैद की सजा पाने वाले 11 दोषियों को 15 अगस्त को गोधरा उप-जेल से रिहा कर दिया गया था. गुजरात सरकार ने अपनी छूट नीति के तहत उनकी रिहाई की अनुमति दी थी. जिनकी रिहाई की गई है उन दोषियों ने जेल में 15 साल से अधिक समय पूरा किया था. जनवरी 2008 में मुंबई में एक विशेष सीबीआई अदालत ने बिलकिस बानो के परिवार के सात सदस्यों के सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा था.
गोधरा ट्रेन में आग लगने के बाद भड़की हिंसा के दौरान भागते समय बिलकिस बानो 21 साल की थी और पांच महीने की गर्भवती थीं, जब उन्हें उन पुरुषों द्वारा क्रूरता का शिकार होना पड़ा.
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(आईएएनएस)