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दिल्ली में कांग्रेस के हारने के ये रहे 10 कारण, लगातार तीसरी बार खाता नहीं खोल पाई पार्टी - DELHI ELECTION RESULTS 2025

लगातार 15 वर्ष, 1998 से 2013 तक दिल्ली की सत्ता काबिज कांग्रेस को लगातार तीसरी बार मुंह की खानी पड़ी.

दिल्ली में कांग्रेस के हारने के ये रहे 10 कारण
दिल्ली में कांग्रेस के हारने के ये रहे 10 कारण (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Feb 8, 2025, 5:09 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार कांग्रेस पार्टी खाता तक नहीं खोल पाई. दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के तमाम नेता दिल्ली की सत्ता में वापसी का दावा कर रहे थे. हालांकि, नतीजे आने के बाद दिल्ली प्रदेश कांग्रेस दफ्तर पर सन्नाटा पसरा हुआ है. दिल्ली 65 से अधिक सीटों पर कांग्रेस पार्टी तीसरे नंबर पर रही है. दिल्ली में लगातार तीसरी बार कांग्रेस के हारने के क्या कुछ कारण है. इस के बारे में जानते हैं.

नेताओं की गुटबाजीः दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान नेताओं की गुटबाजी भी दिखाई दी. नए और पुराने नेताओं में कोऑर्डिनेशन की कमी दिखाई दी. मतदान होने के बाद चांदनी चौक से कांग्रेस प्रत्याशी मुदित अग्रवाल ने कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित पर कई आरोप लगाए.

केंद्रीय नेतृत्व की चुनाव प्रचार से दूरीः दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने चुनाव प्रचार में बहुत मजबूती के साथ मेहनत की. विभिन्न प्रदेशों के मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय नेतृत्व के कई नेता चुनाव प्रचार में दिखाई दिए. बड़े नेताओं को डोर टू डोर कैंपेन, रोड शो और जनसभा में उतर गया, जिसका असर चुनाव परिणाम में देखने को मिला. हालांकि, दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेतृत्व की मौजूदगी सीमित नजर आई. कांग्रेस के कई बड़े चेहरे चुनाव प्रचार में नहीं दिखाई दिए. हालांकि, चुनाव प्रचार के आखिरी हफ्ते में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी मोर्चा संभालते हुए दिखाई दिए.

कांग्रेस जनता तक नहीं पहुंचा पाई: दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस ने पांच गारंटी जारी की थी. महिलाओं को हर महीने ₹2100 देने से लेकर, फ्री बिजली, युवाओं को हर महीने 8500 रुपए और राशन किट समेत 500 रुपए में गैस सिलेंडर आदि शामिल था. कांग्रेस अपनी गारंटी योजनाओं को जनता तक पहुंचाने में असमर्थ रही. जिस तरह से भाजपा ने अपनी तमाम गारंटीयों को कार्यकर्ताओं के माध्यम से डोर टू डोर प्रचार कर लोगों तक पहुंचाया. ऐसा करने में कांग्रेस नाकाम रही.

माइक्रोलेवल बूथ मैनेजमेंट में फेल: मतदान के दिन जहां एक तरफ भाजपा के बड़े नेताओं ने पोलिंग एजेंट की भूमिका निभाकर माइक्रो लेवल पर कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित किया. जिससे कि अपनी मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक लेकर जाने में भाजपा सफल हुई. तो वहीं, मतदान के दिन कांग्रेस के बस्तों पर सन्नाटा दिखाई दिया.

कांग्रेस का वोट भाजपा में गया: कांग्रेस की हार का कारण बताते हुए कांग्रेस नेता उदित राज ने X पोस्ट में लिखा, "दिल्ली विधान सभा के नतीजों के रुझानों से लगता है कि बीजेपी को लाभ मिल रहा है. कांग्रेस का जो वोट आम आदमी पार्टी में गया था वो कांग्रेसी सोच का था लेकिन वो बीजेपी में जाता दिख रहा है. इस बात को जन नायक राहुल गांधी समझ गए थे, और अपने चुनावी भाषण के माध्यम में लौटाने का प्रयास किया. नेता संदेश दे सकता है जो किया. दिल्ली कांग्रेस तीसरा नैरेटिव, जो सामाजिक न्याय था, उस पर कोई काम नही किया. इस तरह बीजेपी और आप के बीच कांग्रेस लटकती दिखी. यह स्वर्णिम अवसर था पार्टी का खोया वोट वापिस लाने का. शीर्ष नेतृत्व और स्थानीय नेतृत्व के बीच के अंतर्द्वंद्व का फ़ासले का नतीजा सामने आ रहा है."

दलित- पिछड़ों ने बीजेपी को वोट दिया: पार्टी की हार का कारण बताते हुए उदित राज ने X पोस्ट में लिखा, "दलित- पिछड़ों ने आम आदमी पार्टी को दिल्ली विधान सभा में हराकर बदला ले लिया. 2006 में उच्च शिक्षा में पिछड़ों को जब कांग्रेस ने आरक्षण दिया तो अरविंद केजरीवाल ने इक्वलिटी फोरम से विरोध किया. ग्रंथि और पुजारी को ₹18000 प्रति माह देने की घोषणा किया लेकिन बौद्ध, वाल्मीकि और रविदास के पुजारियों को नही दिया और न ही इन्हें सीएम तीर्थ यात्रा का लाभ. 11 राज्य सभा में से एक भी दलित- मुस्लिम- पिछड़ा नहीं बनाया. डॉ अंबेडकर का चित्र लगाकर वोट लिया परंतु विचार से नफ़रत. कांग्रेस को लड़ाई में न देखते दलित- पिछड़ों ने बीजेपी को वोट दे दिया."

मतदान से पहले मानी हार: दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए 5 फरवरी को मतदान होना था. 18 जनवरी 2025 को नामांकन का आखिरी दिन था. नामांकन करने के बाद कई प्रत्याशियों ने मतदान से पहले ही हार मान ली और विधानसभा क्षेत्र में जमीनी स्तर पर कोई खास चुनाव प्रचार करते हुए नहीं दिखाई दिए. जिससे आम जनता में ठीक मैसेज नहीं गया.

मजबूत चेहरों की रही कमी: दिल्ली विधानसभा चुनाव में जहां एक तरफ आम आदमी पार्टी और भाजपा ने मजबूत चेहरे उतरे थे तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस मजबूत चेहरों को चुनाव में उतरने में दोनों पार्टियों से पीछे खड़ी हुई दिखाई दी.

सत्ता के साथ क्षेत्र से भी गायब रहे नेता: 10 साल पहले कांग्रेस से सत्ता आम आदमी पार्टी के हिस्से में आई, सत्ता से गायब होने के बाद कांग्रेस के नेता क्षेत्र से भी गायब रहे. जिस क्षमता के अनुसार सत्ता छीनने के बाद कांग्रेस के नेता दिल्ली में सक्रिय नहीं दिखे इससे भी पार्टी को राजनीतिक नुकसान हुआ है.

राहुल गांधी के कार्यक्रम हुए कैंसिल: राहुल गांधी के चुनाव प्रचार के कई कार्यक्रम कैंसिल हुए जबकि कई कार्यक्रमों में राहुल गांधी नहीं पहुंच पाए. नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में संदीप दीक्षित के पक्ष में आयोजित पदयात्रा में पहुंचने का राहुल गांधी का कार्यक्रम निरस्त हुआ. राहुल गांधी के कई जनसभाएं कैंसिल हुई. राहुल गांधी की जनसभाएं निरस्त होने से जनता में गलत मैसेज गया.

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नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार कांग्रेस पार्टी खाता तक नहीं खोल पाई. दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के तमाम नेता दिल्ली की सत्ता में वापसी का दावा कर रहे थे. हालांकि, नतीजे आने के बाद दिल्ली प्रदेश कांग्रेस दफ्तर पर सन्नाटा पसरा हुआ है. दिल्ली 65 से अधिक सीटों पर कांग्रेस पार्टी तीसरे नंबर पर रही है. दिल्ली में लगातार तीसरी बार कांग्रेस के हारने के क्या कुछ कारण है. इस के बारे में जानते हैं.

नेताओं की गुटबाजीः दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान नेताओं की गुटबाजी भी दिखाई दी. नए और पुराने नेताओं में कोऑर्डिनेशन की कमी दिखाई दी. मतदान होने के बाद चांदनी चौक से कांग्रेस प्रत्याशी मुदित अग्रवाल ने कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित पर कई आरोप लगाए.

केंद्रीय नेतृत्व की चुनाव प्रचार से दूरीः दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने चुनाव प्रचार में बहुत मजबूती के साथ मेहनत की. विभिन्न प्रदेशों के मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय नेतृत्व के कई नेता चुनाव प्रचार में दिखाई दिए. बड़े नेताओं को डोर टू डोर कैंपेन, रोड शो और जनसभा में उतर गया, जिसका असर चुनाव परिणाम में देखने को मिला. हालांकि, दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेतृत्व की मौजूदगी सीमित नजर आई. कांग्रेस के कई बड़े चेहरे चुनाव प्रचार में नहीं दिखाई दिए. हालांकि, चुनाव प्रचार के आखिरी हफ्ते में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी मोर्चा संभालते हुए दिखाई दिए.

कांग्रेस जनता तक नहीं पहुंचा पाई: दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस ने पांच गारंटी जारी की थी. महिलाओं को हर महीने ₹2100 देने से लेकर, फ्री बिजली, युवाओं को हर महीने 8500 रुपए और राशन किट समेत 500 रुपए में गैस सिलेंडर आदि शामिल था. कांग्रेस अपनी गारंटी योजनाओं को जनता तक पहुंचाने में असमर्थ रही. जिस तरह से भाजपा ने अपनी तमाम गारंटीयों को कार्यकर्ताओं के माध्यम से डोर टू डोर प्रचार कर लोगों तक पहुंचाया. ऐसा करने में कांग्रेस नाकाम रही.

माइक्रोलेवल बूथ मैनेजमेंट में फेल: मतदान के दिन जहां एक तरफ भाजपा के बड़े नेताओं ने पोलिंग एजेंट की भूमिका निभाकर माइक्रो लेवल पर कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित किया. जिससे कि अपनी मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक लेकर जाने में भाजपा सफल हुई. तो वहीं, मतदान के दिन कांग्रेस के बस्तों पर सन्नाटा दिखाई दिया.

कांग्रेस का वोट भाजपा में गया: कांग्रेस की हार का कारण बताते हुए कांग्रेस नेता उदित राज ने X पोस्ट में लिखा, "दिल्ली विधान सभा के नतीजों के रुझानों से लगता है कि बीजेपी को लाभ मिल रहा है. कांग्रेस का जो वोट आम आदमी पार्टी में गया था वो कांग्रेसी सोच का था लेकिन वो बीजेपी में जाता दिख रहा है. इस बात को जन नायक राहुल गांधी समझ गए थे, और अपने चुनावी भाषण के माध्यम में लौटाने का प्रयास किया. नेता संदेश दे सकता है जो किया. दिल्ली कांग्रेस तीसरा नैरेटिव, जो सामाजिक न्याय था, उस पर कोई काम नही किया. इस तरह बीजेपी और आप के बीच कांग्रेस लटकती दिखी. यह स्वर्णिम अवसर था पार्टी का खोया वोट वापिस लाने का. शीर्ष नेतृत्व और स्थानीय नेतृत्व के बीच के अंतर्द्वंद्व का फ़ासले का नतीजा सामने आ रहा है."

दलित- पिछड़ों ने बीजेपी को वोट दिया: पार्टी की हार का कारण बताते हुए उदित राज ने X पोस्ट में लिखा, "दलित- पिछड़ों ने आम आदमी पार्टी को दिल्ली विधान सभा में हराकर बदला ले लिया. 2006 में उच्च शिक्षा में पिछड़ों को जब कांग्रेस ने आरक्षण दिया तो अरविंद केजरीवाल ने इक्वलिटी फोरम से विरोध किया. ग्रंथि और पुजारी को ₹18000 प्रति माह देने की घोषणा किया लेकिन बौद्ध, वाल्मीकि और रविदास के पुजारियों को नही दिया और न ही इन्हें सीएम तीर्थ यात्रा का लाभ. 11 राज्य सभा में से एक भी दलित- मुस्लिम- पिछड़ा नहीं बनाया. डॉ अंबेडकर का चित्र लगाकर वोट लिया परंतु विचार से नफ़रत. कांग्रेस को लड़ाई में न देखते दलित- पिछड़ों ने बीजेपी को वोट दे दिया."

मतदान से पहले मानी हार: दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए 5 फरवरी को मतदान होना था. 18 जनवरी 2025 को नामांकन का आखिरी दिन था. नामांकन करने के बाद कई प्रत्याशियों ने मतदान से पहले ही हार मान ली और विधानसभा क्षेत्र में जमीनी स्तर पर कोई खास चुनाव प्रचार करते हुए नहीं दिखाई दिए. जिससे आम जनता में ठीक मैसेज नहीं गया.

मजबूत चेहरों की रही कमी: दिल्ली विधानसभा चुनाव में जहां एक तरफ आम आदमी पार्टी और भाजपा ने मजबूत चेहरे उतरे थे तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस मजबूत चेहरों को चुनाव में उतरने में दोनों पार्टियों से पीछे खड़ी हुई दिखाई दी.

सत्ता के साथ क्षेत्र से भी गायब रहे नेता: 10 साल पहले कांग्रेस से सत्ता आम आदमी पार्टी के हिस्से में आई, सत्ता से गायब होने के बाद कांग्रेस के नेता क्षेत्र से भी गायब रहे. जिस क्षमता के अनुसार सत्ता छीनने के बाद कांग्रेस के नेता दिल्ली में सक्रिय नहीं दिखे इससे भी पार्टी को राजनीतिक नुकसान हुआ है.

राहुल गांधी के कार्यक्रम हुए कैंसिल: राहुल गांधी के चुनाव प्रचार के कई कार्यक्रम कैंसिल हुए जबकि कई कार्यक्रमों में राहुल गांधी नहीं पहुंच पाए. नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में संदीप दीक्षित के पक्ष में आयोजित पदयात्रा में पहुंचने का राहुल गांधी का कार्यक्रम निरस्त हुआ. राहुल गांधी के कई जनसभाएं कैंसिल हुई. राहुल गांधी की जनसभाएं निरस्त होने से जनता में गलत मैसेज गया.

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