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रामनवमी : इस मंदिर में सीता-राम संग कृष्ण की मूर्ति, जानें क्या है मान्यता

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Published : Apr 10, 2022, 10:53 AM IST

Updated : Apr 10, 2022, 12:26 PM IST

भगवान राम का जन्मोत्सव रामनवमी देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है. ऐसी ही धूम राजस्थान में बीकानेर के रघुनाथ मंदिर (Raghunath temple of Bikaner) में भी देखने को मिलती है. बीकानेर का यह प्राचीन मंदिर इसलिए भी खास है, क्योंकि यहां पर भगवान राम और माता सीता के साथ उनके अनुज लक्ष्मण नहीं, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन होते हैं. इसके पीछे क्या मान्यता है, आइए जानते हैं...

Raghunath temple of Bikaner
बीकानेर का रघुनाथ मंदिर

बीकानेर : राजस्थान के बीकानेर में स्थित रघुनाथ मंदिर, यहां के लोगों की आस्था का केंद्र है. करीब 500 साल पुराने इस मंदिर में रामनवमी के अवसर पर भक्तों का तांता लगा रहता है और वे रघुनाथ जी के दर्शन कर भावविभोर हो उठते हैं. इस बार पूरे दो साल बाद भक्तों की इच्छा पूरी हो रही है और लोगों के चेहरों पर उल्लास दिख रहा है. रघुनाथ मंदिर अब भक्तों की लंबी कतार से मुस्कुराता सा प्रतीत हो रहा है. लेकिन मंदिर में आने वाला हर भक्त एक बार जरूर ठिठकता है क्योंकि यहां भगवान लक्ष्मण की प्रतिमा की बजाय भगवान कृष्ण की प्रतिमा स्थापित है.

500 साल पुराना मंदिर, जहां सियाराम संग लखन नहीं! : करीब 500 साल पुराना रघुनाथ मंदिर (Raghunath temple of Bikaner) यहां पधारे लोगों के मन में कई प्रश्न उठाता है क्योंकि यहां भगवान श्रीराम, सीता के साथ लक्ष्मण की जगह भगवान श्रीकृष्ण विराजे हैं. आमतौर पर कहीं भी राम मंदिर में सीता माता, भगवान श्रीराम के साथ लक्ष्मण मौजूद रहते हैं लेकिन रघुनाथ मंदिर में भगवान श्रीराम और माता सीता की प्रतिमा के साथ श्रीकृष्ण की प्रतिमा विराजमान है.

दोस्त, भक्त और भगवान: इसके पीछे की कहानी बड़ी रोचक और भक्त के निश्चल भाव से जुड़ी है, जिसे पीढ़ियों से सुना और सुनाया जाता है. मंदिर के पुजारी मनीष स्वामी भक्त की भक्ति का बखान करते हैं. वहीं श्रद्धालु भवंरलाल ने बड़ी ही रोचक कथा बताई. उन्होंने बताया कि इस बात का कोई वैधानिक प्रमाण तो नहीं है लेकिन कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास अपने मित्र नंददास से मिलने वृंदावन गए थे. वापसी में ही रात को रवाना होने की बात कही. क्योंकि वो बिना श्रीराम के दर्शन अन्न जल ग्रहण नहीं करते थे और अपने मन की बात को उन्होंने मित्र नंददास से साझा की.

बीकानेर का रघुनाथ मंदिर

श्री कृष्ण भये रघुनाथ: मित्र ने अपने सखा के कष्ट को दूर करने के लिए अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण कर उनसे प्रार्थना की. इसपर भगवान ने भी भक्त की इच्छा का मान रखा और श्रीकृष्ण ने भगवान श्रीराम के रूप में तुलसीदास जी को दर्शन दिए.

कहानी एक और: इसके पीछे एक बात और भी कही जाती है. एक बार गोस्वामी तुलसीदास वृंदावन गए थे और वहां उन्होंने अपने आराध्य श्रीराम से दर्शन देने की प्रार्थना की. वृंदावन भगवान श्रीकृष्ण की नगरी है ऐसे में भगवान श्रीराम ने वहां पर उन्हें कृष्ण के स्वरूप में ही दर्शन दिए. कहा ये भी जाता है कि इन्हीं परिकल्पनाओं के चलते भगवान श्रीराम का नाम रघुनाथ नाम पड़ा क्योंकि भगवान श्री राम रघुकुल से हैं और उन्हें रघुवंश के नाम से भी जाना जाता है और कृष्ण का स्वरूप श्रीनाथजी है. ऐसे में कालांतर में भगवान श्रीराम का रघुनाथ नाम भी चलन में आया और इसी परंपरा के तहत रघुनाथ मंदिर की भी स्थापना हुई.

यह भी पढ़ें- Ram Navami 2022: देशभर में रामनवमी की धूम, PM मोदी समेत कई नेताओं ने देशवासियों को दी शुभकामनाएं

श्रीराम कुंडली वाचन की परंपरा: एक खास विशेषता लिए इस रघुनाथ मंदिर में एक और परंपरा पिछले 100 साल से लगातार चली आ रही है. दरअसल मंदिर में ही करीब 108 साल पहले भगवान श्रीराम के जन्म कुंडली का वाचन मंदिर में ही स्थापित भगवान हनुमान जी की प्रतिमा के समक्ष शुरू हुआ और तब से यह परंपरा शुरू हो गई. भगवान राम के जन्म की बाद के समय यहां जन्मपत्रिका का वाचन होता है और उसके बाद फिर से जन्मपत्रिका को मंदिर में ही सुरक्षित रखा जाता है. हर साल रामनवमी के मौके पर वर्ष में केवल एक बार इस जन्मपत्रिका को बाहर निकाला जाता है.

बीकानेर : राजस्थान के बीकानेर में स्थित रघुनाथ मंदिर, यहां के लोगों की आस्था का केंद्र है. करीब 500 साल पुराने इस मंदिर में रामनवमी के अवसर पर भक्तों का तांता लगा रहता है और वे रघुनाथ जी के दर्शन कर भावविभोर हो उठते हैं. इस बार पूरे दो साल बाद भक्तों की इच्छा पूरी हो रही है और लोगों के चेहरों पर उल्लास दिख रहा है. रघुनाथ मंदिर अब भक्तों की लंबी कतार से मुस्कुराता सा प्रतीत हो रहा है. लेकिन मंदिर में आने वाला हर भक्त एक बार जरूर ठिठकता है क्योंकि यहां भगवान लक्ष्मण की प्रतिमा की बजाय भगवान कृष्ण की प्रतिमा स्थापित है.

500 साल पुराना मंदिर, जहां सियाराम संग लखन नहीं! : करीब 500 साल पुराना रघुनाथ मंदिर (Raghunath temple of Bikaner) यहां पधारे लोगों के मन में कई प्रश्न उठाता है क्योंकि यहां भगवान श्रीराम, सीता के साथ लक्ष्मण की जगह भगवान श्रीकृष्ण विराजे हैं. आमतौर पर कहीं भी राम मंदिर में सीता माता, भगवान श्रीराम के साथ लक्ष्मण मौजूद रहते हैं लेकिन रघुनाथ मंदिर में भगवान श्रीराम और माता सीता की प्रतिमा के साथ श्रीकृष्ण की प्रतिमा विराजमान है.

दोस्त, भक्त और भगवान: इसके पीछे की कहानी बड़ी रोचक और भक्त के निश्चल भाव से जुड़ी है, जिसे पीढ़ियों से सुना और सुनाया जाता है. मंदिर के पुजारी मनीष स्वामी भक्त की भक्ति का बखान करते हैं. वहीं श्रद्धालु भवंरलाल ने बड़ी ही रोचक कथा बताई. उन्होंने बताया कि इस बात का कोई वैधानिक प्रमाण तो नहीं है लेकिन कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास अपने मित्र नंददास से मिलने वृंदावन गए थे. वापसी में ही रात को रवाना होने की बात कही. क्योंकि वो बिना श्रीराम के दर्शन अन्न जल ग्रहण नहीं करते थे और अपने मन की बात को उन्होंने मित्र नंददास से साझा की.

बीकानेर का रघुनाथ मंदिर

श्री कृष्ण भये रघुनाथ: मित्र ने अपने सखा के कष्ट को दूर करने के लिए अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण कर उनसे प्रार्थना की. इसपर भगवान ने भी भक्त की इच्छा का मान रखा और श्रीकृष्ण ने भगवान श्रीराम के रूप में तुलसीदास जी को दर्शन दिए.

कहानी एक और: इसके पीछे एक बात और भी कही जाती है. एक बार गोस्वामी तुलसीदास वृंदावन गए थे और वहां उन्होंने अपने आराध्य श्रीराम से दर्शन देने की प्रार्थना की. वृंदावन भगवान श्रीकृष्ण की नगरी है ऐसे में भगवान श्रीराम ने वहां पर उन्हें कृष्ण के स्वरूप में ही दर्शन दिए. कहा ये भी जाता है कि इन्हीं परिकल्पनाओं के चलते भगवान श्रीराम का नाम रघुनाथ नाम पड़ा क्योंकि भगवान श्री राम रघुकुल से हैं और उन्हें रघुवंश के नाम से भी जाना जाता है और कृष्ण का स्वरूप श्रीनाथजी है. ऐसे में कालांतर में भगवान श्रीराम का रघुनाथ नाम भी चलन में आया और इसी परंपरा के तहत रघुनाथ मंदिर की भी स्थापना हुई.

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श्रीराम कुंडली वाचन की परंपरा: एक खास विशेषता लिए इस रघुनाथ मंदिर में एक और परंपरा पिछले 100 साल से लगातार चली आ रही है. दरअसल मंदिर में ही करीब 108 साल पहले भगवान श्रीराम के जन्म कुंडली का वाचन मंदिर में ही स्थापित भगवान हनुमान जी की प्रतिमा के समक्ष शुरू हुआ और तब से यह परंपरा शुरू हो गई. भगवान राम के जन्म की बाद के समय यहां जन्मपत्रिका का वाचन होता है और उसके बाद फिर से जन्मपत्रिका को मंदिर में ही सुरक्षित रखा जाता है. हर साल रामनवमी के मौके पर वर्ष में केवल एक बार इस जन्मपत्रिका को बाहर निकाला जाता है.

Last Updated : Apr 10, 2022, 12:26 PM IST
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