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Bihar Caste Census : जातीय गनगणना पर नीतीश सरकार को बड़ी राहत, पटना हाईकोर्ट का फैसला

पटना हाईकोर्ट ने जातीय सर्वेक्षण मामलें पर फैसला सुना दिया है. चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने जातीय सर्वेक्षण के विरुद्ध दायर याचिकायों को ख़ारिज कर दिया. पढ़ें पूरी खबर इससे पहले 5 दिनों की लगातार सुनवाई होने के बाद पटना हाईकोर्ट के द्वारा फैसला सुरक्षित रखा गया था. आगे पढ़ें पूरी खबर...

पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट
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Published : Aug 1, 2023, 10:20 AM IST

Updated : Aug 1, 2023, 1:16 PM IST

पटना: पटना हाई कोर्ट ने 1अगस्त 2023 को नीतीश सरकार द्वारा राज्य में 'जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण' के लिए लाई गई याचिकाओं पर फैसला सुना दिया है. अदालत ने जातीय जनगणना के विरुद्ध दायर याचिकायों को खारिज कर दिया है. अब बिहार सरकार जातीय गनगणना करा सकेगी. इससे पहले 3 जुलाई 2023 से पांच दिनों की लम्बी सुनवाई पूरी कर पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने इस सम्बन्ध में अपने फैसले को सुरक्षित रखा था.

पढ़ें- Bihar Caste Census: जातीय जनगणना पर बिहार सरकार को बड़ा झटका, अंतरिम रोक हटाने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार

जातीय जनगणना पर फैसला : महाधिवक्ता पी के शाही ने पिछली सुनवाई में राज्य सरकार की ओर से कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखा था. उनके द्वारा कहा गया था कि ये एक सर्वे है. जिसका अहम उद्देश्य आम लोगों के सम्बन्ध आंकड़ा इकट्ठा करना है, जिसका इस्तेमाल उनके कल्याण और हितों के लिए किया जाता है. उनके द्वारा कोर्ट के सामने कहा गया कि जाति से जूरी सूचना, शिक्षण संस्थाओं में दाखिले या नौकरियां देने के वक्त भी मुहैया कराई जाती है. उन्होंने ये भी दलील दी कि जातियां समाज का हिस्सा हैं, जैसे कि हर धर्म में अलग-अलग जातियां होती है.

कितना हुआ जनगणना का कार्य?: उनके द्वारा कोर्ट को बताया गया है कि किसी को भी इस सर्वेक्षण के दौरान किसी तरह की कोई अनिवार्य तरीके से जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं किया जा रहा है. अब तक जातीय सर्वेक्षण का काम काफी अच्छा चल रहा है और इसे लगभग 80 फीसदी तक पूरा कर लिया गया है. इस तरह के सर्वेक्षण को राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में किया जाता है.

हाईकोर्ट ने लगाई थी रोक: बता दें कि हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए राज्य सरकार के द्वारा की जा रही जातीय व आर्थिक सर्वेक्षण पर रोक लगा दी थी. कोर्ट ने इस पर रोक लगा कर जानना चाहा था कि क्या जातियों के आधार पर गणना व आर्थिक सर्वेक्षण कराना कानूनी बाध्यता है. कोर्ट के द्वारा ये भी पूछा गया था कि ये अधिकार राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में आता है या नहीं और क्या इससे आम नागरिक के निजता का उल्लंघन होगा या नहीं.

याचिकाकर्ता की दलील : पहले की सुनवाई में याचिकाकर्ता के वकील अभिनव श्रीवास्तव ने न्यायाल को बताया था कि प्रदेश सरकार ने जातियों और आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है. याचिकाकर्ताओं की ओर से न्यायालय के समक्ष पक्ष प्रस्तुत करते हुए वकील दीनू कुमार ने बताया कि सर्वेक्षण कराने का ये अधिकार राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र के बाहर है. ये असंवैधानिक है और समानता के अधिकार का उल्लंघन है.

'राज्य सरकार के पास अधिकार नहीं': अधिवक्ता दीनू कुमार को न्यायालय को बताया था कि प्रदेश सरकार जातियों की गणना और आर्थिक सर्वेक्षण करवा रही है. उन्होंने कोर्ट को बताया कि ये संवैधानिक प्रावधानों के उलट है. अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया था कि प्रावधानों के तहत इस तरह के सर्वेक्षण केंद्र सरकार करा सकती है. ये केंद्र सरकार की शक्ति के अंतर्गत आता है. अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया था कि इस सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार पांच सौ करोड़ रुपए खर्च कर रही है.

पटना: पटना हाई कोर्ट ने 1अगस्त 2023 को नीतीश सरकार द्वारा राज्य में 'जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण' के लिए लाई गई याचिकाओं पर फैसला सुना दिया है. अदालत ने जातीय जनगणना के विरुद्ध दायर याचिकायों को खारिज कर दिया है. अब बिहार सरकार जातीय गनगणना करा सकेगी. इससे पहले 3 जुलाई 2023 से पांच दिनों की लम्बी सुनवाई पूरी कर पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ ने इस सम्बन्ध में अपने फैसले को सुरक्षित रखा था.

पढ़ें- Bihar Caste Census: जातीय जनगणना पर बिहार सरकार को बड़ा झटका, अंतरिम रोक हटाने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार

जातीय जनगणना पर फैसला : महाधिवक्ता पी के शाही ने पिछली सुनवाई में राज्य सरकार की ओर से कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखा था. उनके द्वारा कहा गया था कि ये एक सर्वे है. जिसका अहम उद्देश्य आम लोगों के सम्बन्ध आंकड़ा इकट्ठा करना है, जिसका इस्तेमाल उनके कल्याण और हितों के लिए किया जाता है. उनके द्वारा कोर्ट के सामने कहा गया कि जाति से जूरी सूचना, शिक्षण संस्थाओं में दाखिले या नौकरियां देने के वक्त भी मुहैया कराई जाती है. उन्होंने ये भी दलील दी कि जातियां समाज का हिस्सा हैं, जैसे कि हर धर्म में अलग-अलग जातियां होती है.

कितना हुआ जनगणना का कार्य?: उनके द्वारा कोर्ट को बताया गया है कि किसी को भी इस सर्वेक्षण के दौरान किसी तरह की कोई अनिवार्य तरीके से जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं किया जा रहा है. अब तक जातीय सर्वेक्षण का काम काफी अच्छा चल रहा है और इसे लगभग 80 फीसदी तक पूरा कर लिया गया है. इस तरह के सर्वेक्षण को राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में किया जाता है.

हाईकोर्ट ने लगाई थी रोक: बता दें कि हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए राज्य सरकार के द्वारा की जा रही जातीय व आर्थिक सर्वेक्षण पर रोक लगा दी थी. कोर्ट ने इस पर रोक लगा कर जानना चाहा था कि क्या जातियों के आधार पर गणना व आर्थिक सर्वेक्षण कराना कानूनी बाध्यता है. कोर्ट के द्वारा ये भी पूछा गया था कि ये अधिकार राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में आता है या नहीं और क्या इससे आम नागरिक के निजता का उल्लंघन होगा या नहीं.

याचिकाकर्ता की दलील : पहले की सुनवाई में याचिकाकर्ता के वकील अभिनव श्रीवास्तव ने न्यायाल को बताया था कि प्रदेश सरकार ने जातियों और आर्थिक सर्वेक्षण करा रही है. याचिकाकर्ताओं की ओर से न्यायालय के समक्ष पक्ष प्रस्तुत करते हुए वकील दीनू कुमार ने बताया कि सर्वेक्षण कराने का ये अधिकार राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र के बाहर है. ये असंवैधानिक है और समानता के अधिकार का उल्लंघन है.

'राज्य सरकार के पास अधिकार नहीं': अधिवक्ता दीनू कुमार को न्यायालय को बताया था कि प्रदेश सरकार जातियों की गणना और आर्थिक सर्वेक्षण करवा रही है. उन्होंने कोर्ट को बताया कि ये संवैधानिक प्रावधानों के उलट है. अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया था कि प्रावधानों के तहत इस तरह के सर्वेक्षण केंद्र सरकार करा सकती है. ये केंद्र सरकार की शक्ति के अंतर्गत आता है. अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया था कि इस सर्वेक्षण के लिए राज्य सरकार पांच सौ करोड़ रुपए खर्च कर रही है.

Last Updated : Aug 1, 2023, 1:16 PM IST
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