ETV Bharat / bharat

चुनावी राजनीति में 'गोता' लगाने को तैयार बड़े किसान नेता, किस ओर जाएगा आंदोलन?

किसान आंदोलन (Farmers Movement) को स्थगित हुए तीन हफ्ते से ज्यादा बीत चुके हैं लेकिन अब तक सरकार और संयुक्त किसान मोर्चा (Government and Sanyukt Kisan Morcha) के बीच अन्य मांगों पर न कोई संवाद हुआ है और न ही कोई कार्रवाई ही देखी गई है.

symbolic photo
प्रतीकात्मक फोटो
author img

By

Published : Jan 4, 2022, 8:36 PM IST

नई दिल्ली : किसान आंदोलन स्थगित (Farmer's movement suspended) होने के बाद नेताओं में राजनीति का दम दिखाई देने लगा है. आंदोलन को खड़ा करने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले पंजाब के 32 किसान जत्थेबंदियों में से 22 ने पंजाब चुनाव में उतरने का निर्णय (Decision to go to Punjab elections) लिया है.

प्रमुख किसान नेताओं में बलबीर सिंह राजेवाल (Balbir Singh Rajewal) सबसे वरीय माने जाते हैं जो पिछले पंजाब विधानसभा के चुनाव में भी आम आदमी पार्टी का समर्थन कर चुके हैं. 22 किसान संगठनों ने संयुक्त समाज मोर्चा नाम से अपनी राजनीतिक पार्टी का ऐलान किया है.

वहीं भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी (President Gurnam Singh Chadhuni) भी दिसंबर में संयुक्त संघर्ष पार्टी के नाम से राजनीतिक संगठन की घोषणा कर चुके हैं. वे 100 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं.

उत्तर प्रदेश की बात करें तो तमाम निगाहें राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) पर टिकी हैं. सभी इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) की तरफ से कोई राजनीतिक घोषणा कब की जाएगी. सूत्रों की मानें तो टिकैत का पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में किसान आंदोलन के बाद खासा प्रभाव बढ़ा है और वे आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी भूमिका से स्पष्ट इनकार नहीं करते हैं.

हालांकि उनके संगठन के प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक (Organization spokesperson Dharmendra Malik) कहते हैं कि चुनावी राजनीति में जाने का कोई निर्णय नहीं लिया गया है. भारतीय किसान यूनियन पूर्णतः गैर-राजनीतिक संगठन बना रहेगा. इसके बावजूद राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा गर्म है कि राकेश टिकैत की बातचीत इन दिनों राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख जयंत चैधरी से चल रही है.

जयंत की पार्टी का समर्थन कर राकेश टिकैत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम समीकरण को समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल के पक्ष में लाने की कवायद जरूर कर सकते हैं. ऐसे में बिना चुनाव लड़े भी टिकैत को उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक सक्रिय भूमिका निभाते हुए देखा जा सकता है.

इससे पहले राकेश टिकैत सिसौली से 2012 में विधानसभा चुनाव और 2014 में अमरोहा से राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं. दोनों ही चुनावों में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था. 2014 लोकसभा चुनाव में उन्हें केवल 9500 वोट ही मिले थे. ऐसे में कहा जा रहा है कि टिकैत चुनावी राजनीति के बजाय बड़े किसान नेता की छवि के साथ वोट बैंक प्रभावित करने की रणनीति पर काम करेंगे.

इन तमाम गतिविधियों के बीच सबसे बड़ा सवाल स्थगित हुए किसान आंदोलन से जुड़े लंबित मुद्दों और सरकार द्वारा दिए गए आश्वासनों का है. क्या राजनीति में व्यस्त किसान नेता अब आंदोलन की अन्य मांगों पर शिथिल हो जाएंगे? संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार से बातचीत के लिए जो पांच सदस्यीय समिति बनाई थी उसमें से दो नेता- बलबीर सिंह राजेवाल और गुरनाम सिंह चढूनी पंजाब चुनाव में कूद चुके हैं.

ऐसे में क्या किसानों ने मुद्दे पीछे रह जाएंगे और आंदोलन पर राजनीति हावी हो जाएगी? संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े अन्य नेता ऐसा नहीं मानते. ऑल इंडिया किसान सभा के महासचिव और संयुक्त किसान मोर्चा के वरिष्ठ नेता हन्नान मोल्ला कहते हैं कि लंबित मुद्दों और उनकी प्रगति पर पर किसान मोर्चा की नजर है. अभी तक सरकार की तरफ से न कोई चर्चा का प्रस्ताव आया है और न ही कोई समिति का ही गठन हुआ है.

ऐसे में 15 जनवरी को दिल्ली में होने वाले संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में इन तमाम बातों पर चर्चा होगी और आगे का निर्णय लिया जाएगा. भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक ने बताया कि यदि सरकार ने अन्य मांगों पर कार्य जल्द शुरु नहीं किया तो 15 जनवरी की बैठक में वह मिशन यूपी और मिशन उत्तराखंड को फिर से शुरु करने का निर्णय भी ले सकते हैं.

जो भी राजनीतिक पार्टी किसान के हित और उनके मुद्दों पर बात करेगी, किसान अपनी समझदारी से उसे समर्थन कर सकता है. जहां तक बात भाजपा की है तो न ही उन्होनें C2+50% के फॉर्मूला से एमएसपी दिया है और न ही वादे के मुताबिक गन्ने का भुगतान 14 दिनों के अंदर करा पाए हैं.

संकेत स्पष्ट है कि किसान संगठनों ने बेशक आंदोलन स्थगित कर दिया हो लेकिन भाजपा सरकार के प्रति उनका रोष बरकरार है. ऐसे में ऊंट किस ओर करवट लेगा बस ये तस्वीर साफ होने का ही इंतजार है.

राकेश टिकैत 26 जनवरी को गांवों में ट्रैक्टर मार्च निकालने की घोषणा कर चुके हैं और सूबे में जगह जगह किसान पंचायतों को भी संबोधित कर रहे हैं. इसे चुनाव से पहले किसान कुनबे को एकजुट करने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है जिसे चुनाव के अन्तिम समय में किसी के पक्ष या विपक्ष में खड़ा किया जा सके.

संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े कुछ अन्य किसान नेता भी यह मानते हैं कि किसान नेताओं के राजनीतिक महत्वकांक्षा के कारण आंदोलन के अन्य उद्देश्यों पर कुछ असर जरूर पड़ेगा. संयुक्त किसान मोर्चा ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि चुनावी राजनीति में उनके नाम का कोई इस्तेमाल नहीं होना चाहिए.

ये तमाम दलीलें उस परिस्थिती में कमजोर दिखती हैं जब आंदोलन के प्रमुख चेहरे ही चुनाव में उतर जाएं. बलबीर सिंह राजेवाल ने तो अपने संगठन संयुक्त समाज मोर्चा की तरफ से खुद को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार तक घोषित कर दिया है. दूसरी तरफ खबरें यह भी हैं कि आम आदमी पार्टी से सीटों के समझौते पर उनकी चर्चा चल रही है.

किसान आंदोलन पर शुरुआत से ही राजनीतिक होने के आरोप लगते रहे और आंदोलन के आलोचकों ने इस बात की संभावना भी व्यक्त की थी. जैसे ही पंजाब और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आएंगी. इनमें से आधे से ज्यादा नेता उसमें कूद पड़ेंगे. आज जब यह स्पष्ट दिख रहा है तो आंदोलन के विरोधियों की बात सही साबित होती दिख रही है.

भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णबीर चौधरी ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि वह पहले दिन से ही मीडिया में कहते रहे हैं कि यह आंदोलन पूर्णतः राजनीतिक है और इसमें मुख्य भूमिका विपक्षी दलों की रही है.

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोक दल जैसी पार्टियों की भूमिका रही है जबकि पंजाब में आम आदमी पार्टी, अकाली दल और कांग्रेस की भूमिका रही है. अब इसका खामियाजा भी कांग्रेस को ही उठाना पड़ेगा. तथाकथित किसान नेताओं की सच्चाई अब देश के सामने आ चुकी है. चुनाव नजदीक आते ही इनके आंदोलन का असली उद्देश्य भी देश के सामने आने लगा है.

बताया जाता है कि संयुक्त किसान मोर्चा 400 से ज्यादा किसान संगठनों का साझा मंच रहा है लेकिन इसका नेतृत्व मुख्यतः 40 किसान संगठनों ने ही किया. जिसमें से 32 किसान संगठन केवल पंजाब से थे.

यह भी पढ़ें- त्रिपुरा में पहले की सरकार के पास कोई विजन नहीं था : पीएम मोदी

आंदोलन को मजबूती देने में पंजाब और हरियाणा के संगठन ही प्रमुख थे. 22 संगठनों के राजनीति में जाने और भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के उत्तर प्रदेश चुनाव में किंग मेकर की संभावित भूमिका की खबरों के साथ स्थगित आंदोलन की पूर्ण समाप्ति होने की चर्चाएं अब होने लगी हैं.

नई दिल्ली : किसान आंदोलन स्थगित (Farmer's movement suspended) होने के बाद नेताओं में राजनीति का दम दिखाई देने लगा है. आंदोलन को खड़ा करने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले पंजाब के 32 किसान जत्थेबंदियों में से 22 ने पंजाब चुनाव में उतरने का निर्णय (Decision to go to Punjab elections) लिया है.

प्रमुख किसान नेताओं में बलबीर सिंह राजेवाल (Balbir Singh Rajewal) सबसे वरीय माने जाते हैं जो पिछले पंजाब विधानसभा के चुनाव में भी आम आदमी पार्टी का समर्थन कर चुके हैं. 22 किसान संगठनों ने संयुक्त समाज मोर्चा नाम से अपनी राजनीतिक पार्टी का ऐलान किया है.

वहीं भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी (President Gurnam Singh Chadhuni) भी दिसंबर में संयुक्त संघर्ष पार्टी के नाम से राजनीतिक संगठन की घोषणा कर चुके हैं. वे 100 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं.

उत्तर प्रदेश की बात करें तो तमाम निगाहें राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) पर टिकी हैं. सभी इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) की तरफ से कोई राजनीतिक घोषणा कब की जाएगी. सूत्रों की मानें तो टिकैत का पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में किसान आंदोलन के बाद खासा प्रभाव बढ़ा है और वे आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी भूमिका से स्पष्ट इनकार नहीं करते हैं.

हालांकि उनके संगठन के प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक (Organization spokesperson Dharmendra Malik) कहते हैं कि चुनावी राजनीति में जाने का कोई निर्णय नहीं लिया गया है. भारतीय किसान यूनियन पूर्णतः गैर-राजनीतिक संगठन बना रहेगा. इसके बावजूद राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा गर्म है कि राकेश टिकैत की बातचीत इन दिनों राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख जयंत चैधरी से चल रही है.

जयंत की पार्टी का समर्थन कर राकेश टिकैत पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम समीकरण को समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल के पक्ष में लाने की कवायद जरूर कर सकते हैं. ऐसे में बिना चुनाव लड़े भी टिकैत को उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक सक्रिय भूमिका निभाते हुए देखा जा सकता है.

इससे पहले राकेश टिकैत सिसौली से 2012 में विधानसभा चुनाव और 2014 में अमरोहा से राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं. दोनों ही चुनावों में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था. 2014 लोकसभा चुनाव में उन्हें केवल 9500 वोट ही मिले थे. ऐसे में कहा जा रहा है कि टिकैत चुनावी राजनीति के बजाय बड़े किसान नेता की छवि के साथ वोट बैंक प्रभावित करने की रणनीति पर काम करेंगे.

इन तमाम गतिविधियों के बीच सबसे बड़ा सवाल स्थगित हुए किसान आंदोलन से जुड़े लंबित मुद्दों और सरकार द्वारा दिए गए आश्वासनों का है. क्या राजनीति में व्यस्त किसान नेता अब आंदोलन की अन्य मांगों पर शिथिल हो जाएंगे? संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार से बातचीत के लिए जो पांच सदस्यीय समिति बनाई थी उसमें से दो नेता- बलबीर सिंह राजेवाल और गुरनाम सिंह चढूनी पंजाब चुनाव में कूद चुके हैं.

ऐसे में क्या किसानों ने मुद्दे पीछे रह जाएंगे और आंदोलन पर राजनीति हावी हो जाएगी? संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े अन्य नेता ऐसा नहीं मानते. ऑल इंडिया किसान सभा के महासचिव और संयुक्त किसान मोर्चा के वरिष्ठ नेता हन्नान मोल्ला कहते हैं कि लंबित मुद्दों और उनकी प्रगति पर पर किसान मोर्चा की नजर है. अभी तक सरकार की तरफ से न कोई चर्चा का प्रस्ताव आया है और न ही कोई समिति का ही गठन हुआ है.

ऐसे में 15 जनवरी को दिल्ली में होने वाले संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में इन तमाम बातों पर चर्चा होगी और आगे का निर्णय लिया जाएगा. भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक ने बताया कि यदि सरकार ने अन्य मांगों पर कार्य जल्द शुरु नहीं किया तो 15 जनवरी की बैठक में वह मिशन यूपी और मिशन उत्तराखंड को फिर से शुरु करने का निर्णय भी ले सकते हैं.

जो भी राजनीतिक पार्टी किसान के हित और उनके मुद्दों पर बात करेगी, किसान अपनी समझदारी से उसे समर्थन कर सकता है. जहां तक बात भाजपा की है तो न ही उन्होनें C2+50% के फॉर्मूला से एमएसपी दिया है और न ही वादे के मुताबिक गन्ने का भुगतान 14 दिनों के अंदर करा पाए हैं.

संकेत स्पष्ट है कि किसान संगठनों ने बेशक आंदोलन स्थगित कर दिया हो लेकिन भाजपा सरकार के प्रति उनका रोष बरकरार है. ऐसे में ऊंट किस ओर करवट लेगा बस ये तस्वीर साफ होने का ही इंतजार है.

राकेश टिकैत 26 जनवरी को गांवों में ट्रैक्टर मार्च निकालने की घोषणा कर चुके हैं और सूबे में जगह जगह किसान पंचायतों को भी संबोधित कर रहे हैं. इसे चुनाव से पहले किसान कुनबे को एकजुट करने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है जिसे चुनाव के अन्तिम समय में किसी के पक्ष या विपक्ष में खड़ा किया जा सके.

संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े कुछ अन्य किसान नेता भी यह मानते हैं कि किसान नेताओं के राजनीतिक महत्वकांक्षा के कारण आंदोलन के अन्य उद्देश्यों पर कुछ असर जरूर पड़ेगा. संयुक्त किसान मोर्चा ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि चुनावी राजनीति में उनके नाम का कोई इस्तेमाल नहीं होना चाहिए.

ये तमाम दलीलें उस परिस्थिती में कमजोर दिखती हैं जब आंदोलन के प्रमुख चेहरे ही चुनाव में उतर जाएं. बलबीर सिंह राजेवाल ने तो अपने संगठन संयुक्त समाज मोर्चा की तरफ से खुद को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार तक घोषित कर दिया है. दूसरी तरफ खबरें यह भी हैं कि आम आदमी पार्टी से सीटों के समझौते पर उनकी चर्चा चल रही है.

किसान आंदोलन पर शुरुआत से ही राजनीतिक होने के आरोप लगते रहे और आंदोलन के आलोचकों ने इस बात की संभावना भी व्यक्त की थी. जैसे ही पंजाब और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आएंगी. इनमें से आधे से ज्यादा नेता उसमें कूद पड़ेंगे. आज जब यह स्पष्ट दिख रहा है तो आंदोलन के विरोधियों की बात सही साबित होती दिख रही है.

भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णबीर चौधरी ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि वह पहले दिन से ही मीडिया में कहते रहे हैं कि यह आंदोलन पूर्णतः राजनीतिक है और इसमें मुख्य भूमिका विपक्षी दलों की रही है.

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोक दल जैसी पार्टियों की भूमिका रही है जबकि पंजाब में आम आदमी पार्टी, अकाली दल और कांग्रेस की भूमिका रही है. अब इसका खामियाजा भी कांग्रेस को ही उठाना पड़ेगा. तथाकथित किसान नेताओं की सच्चाई अब देश के सामने आ चुकी है. चुनाव नजदीक आते ही इनके आंदोलन का असली उद्देश्य भी देश के सामने आने लगा है.

बताया जाता है कि संयुक्त किसान मोर्चा 400 से ज्यादा किसान संगठनों का साझा मंच रहा है लेकिन इसका नेतृत्व मुख्यतः 40 किसान संगठनों ने ही किया. जिसमें से 32 किसान संगठन केवल पंजाब से थे.

यह भी पढ़ें- त्रिपुरा में पहले की सरकार के पास कोई विजन नहीं था : पीएम मोदी

आंदोलन को मजबूती देने में पंजाब और हरियाणा के संगठन ही प्रमुख थे. 22 संगठनों के राजनीति में जाने और भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के उत्तर प्रदेश चुनाव में किंग मेकर की संभावित भूमिका की खबरों के साथ स्थगित आंदोलन की पूर्ण समाप्ति होने की चर्चाएं अब होने लगी हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.