देहरादून: जोशीमठ में भू धंसाव की घटना लगातार बढ़ रही है और स्थानीय लोगों के आशियानों में दरारें लगातार बढ़ रही हैं. जिससे लोगों में भय का माहौल हैं. वहीं जोशीमठ आपदा ने बड़े निर्माणों को लेकर सरकार के कदम थाम दिए हैं. स्थानीय स्तर पर भी बड़े प्रोजेक्ट्स को लेकर विरोध के सुर सुनाई दे रहे हैं. लिहाजा अब उत्तराखंड ही नहीं बल्कि भारत सरकार के बड़े निर्माण कार्यों की रफ्तार पर भी असर पड़ना तय है.
जोशीमठ में भू धंसाव के बाद सर्वे कार्य: जोशीमठ में व्यापारिक प्रतिष्ठानों और लोगों के घरों में पड़ रही दरारों के बाद पहाड़ी क्षेत्रों में बड़े निर्माण कार्य को लेकर बहस तेज हो गई है. दरअसल, जोशीमठ में इस आपदा के लिए पावर प्रोजेक्ट को जिम्मेदार बताया जा रहा है. उधर चमोली के साथ ही दूसरे जिलों में भी भूस्खलन की घटनाओं के लिए भारत सरकार के बड़े प्रोजेक्ट वजह माने जा रहे हैं. खास बात यह है कि उत्तराखंड सरकार और भारत सरकार के तमाम वैज्ञानिक अब जोशीमठ में भू धंसाव की वजहों का अध्ययन करने में जुट गए हैं. उधर राज्य सरकार प्रदेश के सभी हिल स्टेशन में भी केयरिंग कैपेसिटी का अध्ययन करने का निर्णय ले चुकी है.
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जनता इन कामों को बता रही वजह: राज्य में इस समय चल रहे प्रोजेक्ट्स पर बात करें तो रेल परियोजना और ऑल वेदर रोड दोनों ही आम लोगों के निशाने पर है और इन विकास कार्यों के कारण पहाड़ों पर भूस्खलन की घटना होने की बात कही जा रही है. बता दें कि भारत सरकार न केवल ऑल वेदर रोड के जरिए चारों धामों को जोड़ने जा रही है बल्कि इसके साथ ही कुमाऊं के कुछ जिलों को भी योजना से जोड़ने का प्लान है. खास बात यह है कि प्रदेश के पहाड़ों में कई-नई योजनाओं के जरिए सड़कों के चौड़ीकरण का काम भी होना है. इसके अलावा ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल मार्ग के साथ ही कुछ दूसरे क्षेत्रों में भी रेल पहुंचाने के लिए सर्वे का काम किया जाना है. उधर दूसरी तरफ रोपवे को लेकर भी काम किया जा रहा है.
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कामों में शिथिलता आने की संभावनाएं: इस तरह देखा जाए तो बड़े प्रोजेक्ट पर जोशीमठ आपदा के बाद कामों में कुछ शिथिलता आने की संभावना है. खास तौर पर गढ़वाल क्षेत्र में भूस्खलन की बढ़ रही घटनाओं से बड़े प्रोजेक्ट का विरोध बढ़ सकता है और इससे इनकी रफ्तार पर असर पड़ सकता है. राज्य आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती कहते हैं कि जोशीमठ बचाओ आंदोलन के तहत आंदोलनकारी बड़े प्रोजेक्ट पर सरकार को बिना अध्ययन के काम ना करने की सलाह दे रहे हैं. और जिस तरह से राज्य में बड़े प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं वह पहाड़ के विनाश का काम कर रहे हैं.
खास बात यह है कि इस पूरे हालात के बाद सरकार की कार्यप्रणाली पर भी लोग सवाल खड़े कर रहे हैं और बिना अध्ययन के पहाड़ों पर बड़े प्रोजेक्ट लगाने के खिलाफ अपना रोष भी व्यक्त कर रहे हैं. समाजसेवी शांति प्रसाद भट्ट कहते हैं कि सरकारों ने जिस तरह पहाड़ पर बेतरतीब विकास कार्यों को आगे बढ़ाया है वह पहाड़ों के लिए विनाशकारी साबित हो रहा है वैसे जनता को ही सड़कों पर आना होगा ताकि सरकारों को सही रास्ते पर लाया जा सके.