रायपुर : छत्तीसगढ़ में हाईकोर्ट के आदेश के बाद आरक्षण में 12 फीसदी की कटौती की गई थी. जिसके बाद से ही पूरे छत्तीसगढ़ में विरोध के स्वर तेज होने लगे. सर्व आदिवासी समाज ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला.वहीं सरकार ने आरक्षण को लेकर हो रहे विरोध को रोकने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया है. लेकिन विशेष सत्र से पहले भूपेश कैबिनेट ने आरक्षण को लेकर एक प्रारुप तय किया है. ताकि किसी भी जरुरतमंद को नुकसान ना हो.(Bhupesh cabinet found solution to protest against reservation)
कैबिनेट बैठक में आरक्षण के मुद्दे पर चर्चा को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा "1 और 2 दिसंबर को विशेष सत्र बुलाया जा रहा है, उसके बारे में कैबिनेट में चर्चा हुई. विधेयक का जो मसौदा है, उसके बारे में चर्चा हुई. आरक्षण पर भी बात हुई, जिसमें अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग, EWS इसके आरक्षण और जो जिले में भर्ती की जाती थी, उस पर भी कोई एक्ट नहीं था. जिसको एक आदेश के माध्यम से जारी कर दिया गया था. जिसको हाईकोर्ट ने निरस्त किया है. जिलों के भी पद उतने ही महत्वपूर्ण हैं, जितना प्रदेश का आरक्षण है. इसको भी एक्ट में लाया जाएगा."
दो विधेयकों पर बनेगी सहमति : कैबिनेट के फैसलों की जानकारी देते हुए कृषि, पंचायत और संसदीय कार्य विभाग के मंत्री रविंद्र चौबे (Minister Ravindra Choubey) ने बताया कि "उच्च न्यायालय के फैसले के बाद आरक्षण मामले में जिस तरह की परिस्थितियां बनी हैं. उसको लेकर राज्य सरकार बहुत गंभीर है. तय हुआ है कि आरक्षण अधिनियम के जिन प्रावधानों को उच्च न्यायालय ने रद्द किया है. उसे कानून के जरिये फिर से प्रभावी किया जाए. इसके लिए लोक सेवाओं में आरक्षण संशोधन विधेयक-2022 और शैक्षणिक संस्थाओं के प्रवेश में आरक्षण संशोधन विधेयक-2022 के प्रारूप को मंजूरी दी गई है. इन विधेयकों को एक और दो दिसम्बर को प्रस्तावित विधानसभा के विशेष सत्र में पेश किया जाएगा.'
जनसंख्या के अनुपात में मिलेगा आरक्षण : मंत्री रविंद्र चौबे ने कहा, "सरकार बार-बार यह कह रही है कि सरकार जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध है. वहीं सर्वोच्च न्यायालय ने भी सामान्य वर्ग के गरीबों को 10% तक आरक्षण देने को उचित बता चुकी है. तो उसका भी पालन किया जाएगा.' मंत्री ने कानूनी बाध्यताओं की वजह से विधानसभा में विधेयक पेश होने से पहले आरक्षण का अनुपात नहीं बताया. लेकिन सरकार के सूत्रों का कहना है कि यह ST के लिए 32%, SC के लिए 13%, OBC के लिए 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों-EWS के लिए 4% तय हुआ है. (new reservation quota in bhupesh cabinet meeting )
क्यों कम हुआ आरक्षण : राज्य शासन ने वर्ष 2012 में आरक्षण नियमों में संशोधन करते हुए अनुसूचित जाति वर्ग का आरक्षण प्रतिशत चार प्रतिशत घटाते हुए 16 से 12 प्रतिशत कर दिया था. वहीं, अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 20 से बढ़ाते हुए 32 प्रतिशत कर दिया. इसके साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को 14 प्रतिशत यथावत रखा गया. इस कानून को गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी. बाद में कई और याचिकाएं दाखिल हुईं. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 19 सितंबर को इस पर फैसला सुनाते हुए राज्य के लोक सेवा आरक्षण अधिनियम को रद्द कर दिया. इसकी वजह से अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 32% से घटकर 20% पर आ गया है. वहीं अनुसूचित जाति का आरक्षण 12% से बढ़कर 16% और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14% हो गया है. शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण खत्म होने की स्थिति है. वहीं सरगुजा संभाग के जिलों में जिला कॉडर का आरक्षण भी खत्म हो गया है.
हाईकोर्ट में क्यों हुआ आरक्षण कम : राज्य बनने के साथ ही 2001 से आदिवासियों को 32% आरक्षण मिलना था लेकिन नहीं मिला. केंद्र के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के द्वारा जारी 5 जुलाई 2005 के निर्देश के अनुसार जनसंख्या अनुरूप आदिवासी 32%, एससी 12% , और ओबीसी के लिए 6% आरक्षण जारी किया गया था. छत्तीसगढ़ शासन को निवेदन आवेदन और आंदोलनों के बाद आरक्षण अध्यादेश 2012 के अनुसार आदिवासियों को 32%, एससी 12% एवं ओबीसी को 14% दिए गए अध्यादेश पर हाईकोर्ट से मुहर लगाने की अपील की गयी. लेकिन छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सही तथ्य नहीं रखने से हाईकोर्ट ने आरक्षण अध्यादेश 2012 को अमान्य कर दिया.
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शैक्षणिक संस्थानों पर भी असर : हाईकोर्ट के आदेश के बाद संचालक चिकित्सा शिक्षा ने 9 अक्टूबर को प्रवेश के लिए नया आरक्षण रोस्टर जारी किया. इसमें अनुसूचित जनजाति को 20%, अनुसूचित जाति को 16%, अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% और सामान्य वर्ग के गरीबों को 10% आरक्षण की व्यवस्था थी. चिकित्सा शिक्षा विभाग की यह व्यवस्था इस समझ पर आधारित थी कि 2012 की आरक्षण व्यवस्था को रद्द करने से वह उससे पहले की स्थिति में पहुंच गई. अब इसके खिलाफ भी उच्च न्यायालय में याचिका लगी हुई है.