भोपाल। सेहतमंद नारियल के कप में चाय पीने वाली बात का पता चला तो ईटीवी मप्र की टीम पहुंची एमपी की राजधानी भोपाल के अवधपुरी इलाके में.. यहां राजौरा फार्म कॉलोनी में ज्ञानेश्वर शुक्ला रहते हैं. बड़ी सी दाढ़ी और माथे पर तिलक लगाए यह रात में 9 बजे अपने घर के छोटे से कारखाने में नारियल (coconut) की खोल पर कारीगरी करते मिले. दरअसल ज्ञानेश्वर ही वह शख्स हैं, जो नारियल की खोल से चाय के कप बनाते हैं. जब इनसे पूछा कि कप तो कई प्रकार के हैं और सेहतमंद भी हैं, तो फिर आपके कप में क्या खासियत? जवाब में बोले कि इन दिनों घर में ज्यादातर चीनी के कप होते हैं, लेकिन उनके कप तीन तरह से फायदेमंद हैं. पहला तो यह कि मंदिरों में चढ़ाए जाने वाले नारियल को रिसाइकिल करने का काम वे कर रहे हैं. दूसरी और सबसे अहम बात कि उनके नारियल का कप सेहत के लिए बहुत लाभकारी है और तीसरी बात कि इससे होने वाली आय से वे स्वयंसेवी संस्था को आर्थिक मदद देते हैं.
प्रॉब्लम देखकर आया सॉल्युशन: ज्ञानेश्वर ने बताया कि वे मूल रूप से कंस्ट्रक्शन वर्क से जुड़े हैं, लेकिन शाम को हर दिन मंदिर जाकर सेवा कार्य करते रहे हैं. पिछले साल देखा कि मंदिर में नारियल से भरे कोई बोरे रखे थे. पंडित जी से पूछा तो बोले कि लोग चढ़ा जाते हैं और इतना प्रसाद भी नहीं बाट पाते, इसलिए इन्हें नदियों में विसर्जित (immerse) करने के लिए रखा गया है. यह सुनकर ज्ञानेश्वर के दिमाग में एक विचार कौंधा कि क्यों न इनसे कुछ बनाया जाए. बस यही सोचकर उस दिन कप घर ले आए, सोचा था कि नारियल के भीतर का खोपरा निकालकर प्रसाद के लिए दे देंगे और जटा (coir) निकालकर हवन के लिए दे देंगे. अगले दिन जटा तो निकल गई, लेकिन नारियल की गिरी बेकार हाे गई थी, तब इसके तने से कुछ बनाने का विचार आया. एक नारियल में दरार देखकर कप से पहले बाउल बनाने का सोचा. बाउल बनाए, लेकिन बाद में कप बनाने लगे, इसकी एक वजह यह भी थी कि लोग कप डेली रुटीन में सबसे अधिक यूज करते हैं.
गूगल सर्च से पता चला सेहत के लिए है फायदेमंद: कप बनाने के साथ गूगल पर इसके साइड इफेक्ट जानने के लिए सर्च किया तो पता चला कि यह सेहत के लिए बेहद खास है. गूगल सर्च में मालूम पड़ा कि इसमें कई विटामिन और मिनरल्स है, इसमें जिंग, मैग्निशियम, पोटेशियम, विटामिन ए और विटामिन सी है.यह वाउ मूवमेंट में बहुत इफेकटिव है, इसे लांग टर्म में ले सकते हैं और दूसरा इसे बेचना आसान था.
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एक को बनाने में लगते हैं 3 दिन: ज्ञानेश्वर ने ईटीवी को बताया कि "एक कप को बनाने में 3 दिन का समय लगता है. दरअसल वे इस काम को रात के समय करते हैं, क्योंकि दिन में परिवार पालन के लिए कंस्ट्रक्शन वर्क करते हैं. प्रतिदिन 3 से 4 घंटे काम करते हैं और तब जाकर तीन दिन में एक कप तैयार होता है. जब पूछा कि इसे बेचते कहां है और उस राशि का का क्या करते हैं, तो बोले कि अभी मित्रों को बेच रहा था, लेकिन उनकी भी एक सीमा है. इसलिए अब फेसबुक, इंस्टाग्राम पर बेचने लगा हूं, अमेजन पर लिस्टिंग कर दिया है. 100 एमएल कप की कीमत 100 रुपए रखी है. इससे मिलने वाली राशि को पांडव संस्था को डोनेट करता हूं, यह संस्था गरीब बस्तियों में जाकर महिलाओं को नि:शुल्क नेपकिन बाटती है."
यंग जनरेशन को ट्रांसफर करेंगे यह कला: ज्ञानेश्वर ने बताया कि "नारियल कप बनाने की कला को वे यंग जनरेशन तक पहुंचाएंगे. इसके लिए संगिनी संस्था की मदद से जल्दी ही वे वर्कशॉप आयोजित करेंगे, जिससे ज्यादा से ज्यादा युवा इस कला को सीखकर मंदिरों में निकलने वाली नारियल का न केवल सॉल्युशन निकाले, बल्कि हेल्थ और वेल्थ दोनों बनाएं. कप के अलावा वे चम्मच और बाउल भी बनाते हैं."