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तीन दशक के राजनीतिक सफर में हर कसौटी पर खरे उतरे जेपी नड्डा - BJP Excutive President

छात्र राजनीति से निखरे नड्डा इस समय विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के कार्यकारी मुखिया बने हैं. जाहिर है, राजनीति में रुचि रखने वालों को उनके बारे में सभी कुछ जानने के लिए जिज्ञासा है. यहां जेपी नड्डा से जुड़ी कुछ अहम व रोचक तथ्य दर्ज किए जा रहे हैं.

राजनीतिक सफर में हर कसौटी पर उतरे खरे उतरे नड्डा
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Published : Jun 18, 2019, 12:01 AM IST

नई दिल्ली/ शिमला: मौजूदा समय में पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भारतीय राजनीति के सबसे अहम किरदार हैं. अमित शाह ने खुद को चाणक्य साबित किया और भाजपा को बुलंदियों तक पहुंचाया तो वहीं पीएम नरेंद्र मोदी विश्व के ताकतवर राजनेताओं में शुमार हो चुके हैं. ऐसे में मोदी-शाह की जोड़ी ने अपनी राजनीतिक परंपरा के विस्तार के लिए जेपी नड्डा के तौर पर जिस नेता को चुना है, वो यूं ही इन दोनों के खास नहीं बने हैं.

नरेंद्र मोदी और जेपी नड्डा का परिचय उस समय से प्रगाढ़ हुआ, जब मोदी हिमाचल में पार्टी प्रभारी थे. अपनी मेहनत के बूते आगे बढ़े नड्डा का तीन दशक से भी अधिक समय का राजनीतिक जीवन कई मायनों में विलक्षण है. छात्र राजनीति से निखरे नड्डा इस समय विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के कार्यकारी मुखिया बने हैं. जाहिर है, राजनीति में रुचि रखने वालों को उनके बारे में सभी कुछ जानने के लिए जिज्ञासा है. यहां जेपी नड्डा से जुड़ी कुछ अहम व रोचक तथ्य दर्ज किए जा रहे हैं.

ऐतिहासिक नगरी बिलासपुर से संबंध, पिता थे पटना यूनिवर्सिटी के वीसी
जेपी नड्डा का संबंध हिमाचल की धार्मिक व ऐतिहासिक नगरी बिलासपुर से है. चूंकि पिता एनएल नड्डा पटना यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर थे, लिहाजा जेपी का बचपन भी वहीं गुजरा. उनका जन्म भी 2 दिसंबर 1960 को पटना में ही हुआ था. आरंभिक शिक्षा पटना में सेंट जेवियर्स स्कूल में हुई. मां कृष्णा हाउस वाइफ थीं और पूरा परिवार पटना में ही निवास करता था. जेपी नड्डा ने स्नातक तक की पढ़ाई पटना में ही की. नड्डा के जीवन में वहीं पर राजनीति का बीज पड़ा. छात्र जीवन में उन्हें खेलों का भी खूब शौक था। उन्होंने जूनियर तैराकी चैंपियनशिप में बिहार का प्रतिनिधत्व भी किया था. खेल प्रेम के कारण ही वे कई खेल संघों के अध्यक्ष रहे.

पटना के बाद हिमाचल बनी कर्मभूमि
जयप्रकाश नारायण ने भारत की राजनीति को गहरे तक प्रभावित किया है. इंदिरा गांधी के शासनकाल के दौरान जेपी आंदोलन ने कई राजनेताओं को जन्म दिया. किशोर आयु के जेपी नड्डा जेपी आंदोलन को दौरान खूब सक्रिय हुए. जेपी के संपूर्ण क्रांति अभियान में जेपी नड्डा बढ़-चढकर भाग लेने लगे. इसी आंदोलन ने उन्हें छात्र राजनीति में आगे बढने के लिए प्रेरित किया. वे पटना यूनिवर्सिटी में छात्र संघ सचिव रहे. बाद में वे हिमाचल प्रदेश आए. उन्हें एबीवीपी का प्रचारक बनाकर देवभूमि में भेजा गया था.

महज 22 साल की आयु में नड्डा हिमाचल में चर्चित हो गए. हिमाचल यूनिवर्सिटी से वे वकालत पढ़ने लगे और यहां पर छात्र संघ के अध्यक्ष बने. एबीवीपी से छात्र संघ अध्यक्ष के रूप में वे पहले छात्र नेता थे. ये वर्ष 1983-1984 की बात है. फिर वर्ष 1986 से 1989 तक जेपी नड्डा एबीवीपी के राष्ट्रीय महासचिव रहे.

पढ़ेंः पीएम मोदी बोले- लोकतंत्र में विपक्ष का मजबूत होना जरुरी

भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाया आंदोलन, डेढ़ महीना रहे जेल में
जेपी नड्डा छात्र राजनीति से आगे बढक़र अब सक्रिय राजनीति में आने को आतुर थे. वर्ष 1989 में केंद्र सरकार के खिलाफ उन्होंने राष्ट्रीय संघर्ष मोर्चा का गठन किया. भ्रष्टाचार के खिलाफ इस मोर्चे में वे अग्रणी भूमिका में थे. केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन के कारण उन पर गाज गिरी और वे डेढ़ महीना जेल में भी रहे. प्रखर वक्ता और कुशल संगठकर्ता के रूप में उनकी ख्याति हो गई। पार्टी ने उन्हें युवा चेहरा बनाया. भारतीय जनता युवा मोर्चा में आते ही नड्डा का सफर गति पकड़ने लगा. नड्डा की उम्र महज 31 साल की थी जब उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा का अध्य्क्ष बनाया गया था.

1993 में चुनावी राजनीति में प्रवेश
वर्ष 1993 में जेपी नड्डा ने चुनावी राजनीति में प्रवेश किया. बिलासपुर सदर सीट से वे विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरे. पहली ही पारी में वे सफल हुए और विधायक बने. बड़ी बात ये रही कि विधानसभा में विपक्ष के नेता बने. वर्ष 1998 में फिर उन्होंने बिलासपुर सदर सीट से जीत हासिल की. राज्य में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी और नड्डा स्वास्थ्य मंत्री बने. अगले चुनाव यानि वर्ष 2003 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. वर्ष 2008 में फिर से चुनाव जीतने पर वे वन मंत्री बनाए गए.

हिमाचल की राजनीति से आए केंद्र में
हिमाचल में दो बार कैबिनेट मंत्री बनने के बाद नड्डा केंद्रीय राजनीति में चले गए. नीतिन गडकरी उस समय पार्टी के मुखिया थे. गडकरी ने नड्डा को पार्टी प्रवक्ता के साथ ही राष्ट्रीय महासचिव भी बनाया. अब जेपी नड्डा की राजनीतिक सफलता का सिलसिला शुरू हुआ. कुशल संगठनकर्ता के रूप में वे खरे साबित होने लगे. पहली बार छत्तीसगढ़ का प्रभार मिला और वहां भाजपा की सरकार बनी. बेहतर काम करने का इनाम ये मिला कि वर्ष 2012 में नड्डा राज्यसभा में आ गए. वे मोदी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे. नड्डा सरकार और संगठन के बीच तालमेल के लिए चर्चित हैं. चुनाव जीतने के बाद उन्हें कई राज्यों में पर्यवेक्षक बनाया गया. वे यूपी में भी लोकसभा चुनाव प्रभारी थे.

राजनीति में जीते, लेकिन मल्लिका के सामने हारे दिल की बाजी
अकसर राजनेता दिल की बाजी हार जाते हैं. जेपी नड्डा का नाम भी इसी कड़ी में है. जेपी नड्डा व मल्लिका नड्डा का प्रेम विवाह है. मल्लिका नड्डा भी राजनीतिक परिवार से हैं. वे भी छात्र राजनीति में सक्रिय रही हैं. दोनों 1991 में विवाह बंधन में बंधे हैं. जेपी व मल्लिका की मुलाकात एचपी यूनिवर्सिटी में छात्र राजनीति में सक्रियता के दौरान हुई थी. हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में इतिहास की प्रोफेसर मल्लिका नड्डा लगातार जेपी नड्डा के राजनीतिक वर्तमान को संवारने में अपनी भूमिका निभा रही हैं.

नई दिल्ली/ शिमला: मौजूदा समय में पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भारतीय राजनीति के सबसे अहम किरदार हैं. अमित शाह ने खुद को चाणक्य साबित किया और भाजपा को बुलंदियों तक पहुंचाया तो वहीं पीएम नरेंद्र मोदी विश्व के ताकतवर राजनेताओं में शुमार हो चुके हैं. ऐसे में मोदी-शाह की जोड़ी ने अपनी राजनीतिक परंपरा के विस्तार के लिए जेपी नड्डा के तौर पर जिस नेता को चुना है, वो यूं ही इन दोनों के खास नहीं बने हैं.

नरेंद्र मोदी और जेपी नड्डा का परिचय उस समय से प्रगाढ़ हुआ, जब मोदी हिमाचल में पार्टी प्रभारी थे. अपनी मेहनत के बूते आगे बढ़े नड्डा का तीन दशक से भी अधिक समय का राजनीतिक जीवन कई मायनों में विलक्षण है. छात्र राजनीति से निखरे नड्डा इस समय विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के कार्यकारी मुखिया बने हैं. जाहिर है, राजनीति में रुचि रखने वालों को उनके बारे में सभी कुछ जानने के लिए जिज्ञासा है. यहां जेपी नड्डा से जुड़ी कुछ अहम व रोचक तथ्य दर्ज किए जा रहे हैं.

ऐतिहासिक नगरी बिलासपुर से संबंध, पिता थे पटना यूनिवर्सिटी के वीसी
जेपी नड्डा का संबंध हिमाचल की धार्मिक व ऐतिहासिक नगरी बिलासपुर से है. चूंकि पिता एनएल नड्डा पटना यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर थे, लिहाजा जेपी का बचपन भी वहीं गुजरा. उनका जन्म भी 2 दिसंबर 1960 को पटना में ही हुआ था. आरंभिक शिक्षा पटना में सेंट जेवियर्स स्कूल में हुई. मां कृष्णा हाउस वाइफ थीं और पूरा परिवार पटना में ही निवास करता था. जेपी नड्डा ने स्नातक तक की पढ़ाई पटना में ही की. नड्डा के जीवन में वहीं पर राजनीति का बीज पड़ा. छात्र जीवन में उन्हें खेलों का भी खूब शौक था। उन्होंने जूनियर तैराकी चैंपियनशिप में बिहार का प्रतिनिधत्व भी किया था. खेल प्रेम के कारण ही वे कई खेल संघों के अध्यक्ष रहे.

पटना के बाद हिमाचल बनी कर्मभूमि
जयप्रकाश नारायण ने भारत की राजनीति को गहरे तक प्रभावित किया है. इंदिरा गांधी के शासनकाल के दौरान जेपी आंदोलन ने कई राजनेताओं को जन्म दिया. किशोर आयु के जेपी नड्डा जेपी आंदोलन को दौरान खूब सक्रिय हुए. जेपी के संपूर्ण क्रांति अभियान में जेपी नड्डा बढ़-चढकर भाग लेने लगे. इसी आंदोलन ने उन्हें छात्र राजनीति में आगे बढने के लिए प्रेरित किया. वे पटना यूनिवर्सिटी में छात्र संघ सचिव रहे. बाद में वे हिमाचल प्रदेश आए. उन्हें एबीवीपी का प्रचारक बनाकर देवभूमि में भेजा गया था.

महज 22 साल की आयु में नड्डा हिमाचल में चर्चित हो गए. हिमाचल यूनिवर्सिटी से वे वकालत पढ़ने लगे और यहां पर छात्र संघ के अध्यक्ष बने. एबीवीपी से छात्र संघ अध्यक्ष के रूप में वे पहले छात्र नेता थे. ये वर्ष 1983-1984 की बात है. फिर वर्ष 1986 से 1989 तक जेपी नड्डा एबीवीपी के राष्ट्रीय महासचिव रहे.

पढ़ेंः पीएम मोदी बोले- लोकतंत्र में विपक्ष का मजबूत होना जरुरी

भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाया आंदोलन, डेढ़ महीना रहे जेल में
जेपी नड्डा छात्र राजनीति से आगे बढक़र अब सक्रिय राजनीति में आने को आतुर थे. वर्ष 1989 में केंद्र सरकार के खिलाफ उन्होंने राष्ट्रीय संघर्ष मोर्चा का गठन किया. भ्रष्टाचार के खिलाफ इस मोर्चे में वे अग्रणी भूमिका में थे. केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन के कारण उन पर गाज गिरी और वे डेढ़ महीना जेल में भी रहे. प्रखर वक्ता और कुशल संगठकर्ता के रूप में उनकी ख्याति हो गई। पार्टी ने उन्हें युवा चेहरा बनाया. भारतीय जनता युवा मोर्चा में आते ही नड्डा का सफर गति पकड़ने लगा. नड्डा की उम्र महज 31 साल की थी जब उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा का अध्य्क्ष बनाया गया था.

1993 में चुनावी राजनीति में प्रवेश
वर्ष 1993 में जेपी नड्डा ने चुनावी राजनीति में प्रवेश किया. बिलासपुर सदर सीट से वे विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरे. पहली ही पारी में वे सफल हुए और विधायक बने. बड़ी बात ये रही कि विधानसभा में विपक्ष के नेता बने. वर्ष 1998 में फिर उन्होंने बिलासपुर सदर सीट से जीत हासिल की. राज्य में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी और नड्डा स्वास्थ्य मंत्री बने. अगले चुनाव यानि वर्ष 2003 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. वर्ष 2008 में फिर से चुनाव जीतने पर वे वन मंत्री बनाए गए.

हिमाचल की राजनीति से आए केंद्र में
हिमाचल में दो बार कैबिनेट मंत्री बनने के बाद नड्डा केंद्रीय राजनीति में चले गए. नीतिन गडकरी उस समय पार्टी के मुखिया थे. गडकरी ने नड्डा को पार्टी प्रवक्ता के साथ ही राष्ट्रीय महासचिव भी बनाया. अब जेपी नड्डा की राजनीतिक सफलता का सिलसिला शुरू हुआ. कुशल संगठनकर्ता के रूप में वे खरे साबित होने लगे. पहली बार छत्तीसगढ़ का प्रभार मिला और वहां भाजपा की सरकार बनी. बेहतर काम करने का इनाम ये मिला कि वर्ष 2012 में नड्डा राज्यसभा में आ गए. वे मोदी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे. नड्डा सरकार और संगठन के बीच तालमेल के लिए चर्चित हैं. चुनाव जीतने के बाद उन्हें कई राज्यों में पर्यवेक्षक बनाया गया. वे यूपी में भी लोकसभा चुनाव प्रभारी थे.

राजनीति में जीते, लेकिन मल्लिका के सामने हारे दिल की बाजी
अकसर राजनेता दिल की बाजी हार जाते हैं. जेपी नड्डा का नाम भी इसी कड़ी में है. जेपी नड्डा व मल्लिका नड्डा का प्रेम विवाह है. मल्लिका नड्डा भी राजनीतिक परिवार से हैं. वे भी छात्र राजनीति में सक्रिय रही हैं. दोनों 1991 में विवाह बंधन में बंधे हैं. जेपी व मल्लिका की मुलाकात एचपी यूनिवर्सिटी में छात्र राजनीति में सक्रियता के दौरान हुई थी. हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में इतिहास की प्रोफेसर मल्लिका नड्डा लगातार जेपी नड्डा के राजनीतिक वर्तमान को संवारने में अपनी भूमिका निभा रही हैं.

यूं ही मोदी-शाह के दुलारे नहीं बने जेपी नड्डा, तीन दशक के राजनीतिक सफर में हर कसौटी पर उतरे खरे
शिमला। मौजूदा समय में पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भारतीय राजनीति के सबसे अहम किरदार हैं। अमित शाह ने खुद को चाणक्य साबित किया और भाजपा को बुलंदियों तक पहुंचाया तो वहीं पीएम नरेंद्र मोदी विश्व के ताकतवर राजनेताओं में शुमार हो चुके हैं। ऐसे में मोदी-शाह की जोड़ी ने अपनी राजनीतिक परंपरा के विस्तार के लिए जेपी नड्डा के तौर पर जिस नेता को चुना है, वो यूं ही इन दोनों के खास नहीं बने हैं। नरेंद्र मोदी और जेपी नड्डा का परिचय उस समय से प्रगाढ़ हुआ, जब मोदी हिमाचल में पार्टी प्रभारी थे। अपनी मेहनत के बूते आगे बढ़े नड्डा का तीन दशक से भी अधिक समय का राजनीतिक जीवन कई मायनों में विलक्षण है। छात्र राजनीति ने निखरे नड्डा इस समय विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के कार्यकारी मुखिया बने हैं। जाहिर है, राजनीति में रुचि रखने वालों को उनके बारे में सभी कुछ जानने के लिए जिज्ञासा है। यहां जेपी नड्डा से जुड़ी कुछ अहम व रोचक तथ्य दर्ज किए जा रहे हैं।
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ऐतिहासिक नगरी बिलासपुर से संबंध, पिता थे पटना यूनिवर्सिटी के वीसी
जेपी नड्डा का संबंध हिमाचल की धार्मिक व ऐतिहासिक नगरी बिलासपुर से है। चूंकि पिता एनएल नड्डा पटना यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर थे, लिहाजा जेपी का बचपन भी वहीं गुजरा। उनका जन्म भी 2 दिसंबर 1960 को पटना में ही हुआ था। आरंभिक शिक्षा पटना में सेंट जेवियर्स स्कूल में हुई। मां कृष्णा हाउस वाइफ थीं और पूरा परिवार पटना में ही निवास करता था। जेपी नड्डा ने स्नातक तक की पढ़ाई पटना में ही की। नड्डा के जीवन में वहीं पर राजनीति का बीज पड़ा। छात्र जीवन में उन्हें खेलों का भी खूब शौक था। उन्होंने जूनियर तैराकी चैंपियनशिप में बिहार का प्रतिनिधत्व भी किया था। खेल प्रेम के कारण ही वे कई खेल संघों के अध्यक्ष रहे।
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पटना के बाद हिमाचल बनी कर्मभूमि
जयप्रकाश नारायण ने भारत की राजनीति को गहरे तक प्रभावित किया है। इंदिरा गांधी के शासनकाल के दौरान जेपी आंदोलन ने कई राजनेताओं को जन्म दिया। किशोर आयु के जेपी नड्डा जेपी आंदोलन को दौरान खूब सक्रिय हुए। जेपी के संपूर्ण क्रांति अभियान में जेपी नड्डा बढ़-चढक़र भाग लेने लगे। इसी आंदोलन ने उन्हें छात्र राजनीति में आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया। वे पटना यूनिवर्सिटी में छात्र संघ सचिव रहे। बाद में वे हिमाचल प्रदेश आए। उन्हें एबीवीपी का प्रचारक बनाकर देवभूमि में भेजा गया था। महज 22 साल की आयु में नड्डा हिमाचल में चर्चित हो गए। हिमाचल यूनिवर्सिटी से वे वकालत पढऩे लगे और यहां पर छात्र संघ के अध्यक्ष बने। एबीवीपी से छात्र संघ अध्यक्ष के रूप में वे पहले छात्र नेता थे। ये वर्ष 1983-1984 की बात है। फिर वर्ष 1986 से 1989 तक जेपी नड्डा एबीवीपी के राष्ट्रीय महासचिव रहे।
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भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाया आंदोलन, डेढ़ महीना रहे जेल में
जेपी नड्डा छात्र राजनीति से आगे बढक़र अब सक्रिय राजनीति में आने को आतुर थे। वर्ष 1989 में केंद्र सरकार के खिलाफ उन्होंने राष्ट्रीय संघर्ष मोर्चा का गठन किया। भ्रष्टाचार के खिलाफ इस मोर्चे में वे अग्रणी भूमिका में थे। केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन के कारण उन पर गाज गिरी और वे डेढ़ महीना जेल में भी रहे। प्रखर वक्ता और कुशल संगठकर्ता के रूप में उनकी ख्याति हो गई। पार्टी ने उन्हें युवा चेहरा बनाया। भारतीय जनता युवा मोर्चा में आते ही नड्डा का सफर गति पकडऩे लगा। नड्डा की उम्र महज 31 साल की थी जब उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा का अध्य्क्ष बनाया गया था।
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1993 में चुनावी राजनीति में प्रवेश
वर्ष 1993 में जेपी नड्डा ने चुनावी राजनीति में प्रवेश किया। बिलासपुर सदर सीट से वे विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरे। पहली ही पारी में वे सफल हुए और विधायक बने। बड़ी बात ये रही कि विधानसभा में विपक्ष के नेता बने। वर्ष 1998 में फिर उन्होंने बिलासपुर सदर सीट से जीत हासिल की। राज्य में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी और नड्डा स्वास्थ्य मंत्री बने। अगले चुनाव यानी वर्ष 2003 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2008 में फिर से चुनाव जीतने पर वे वन मंत्री बनाए गए।
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हिमाचल की राजनीति से आए केंद्र में
हिमाचल में दो बार कैबिनेट मंत्री बनने के बाद नड्डा केंद्रीय राजनीति में चले गए। नीतिन गडक़री उस समय पार्टी के मुखिया थे। गडकरी ने नड्डा को पार्टी प्रवक्ता के साथ ही राष्ट्रीय महासचिव भी बनाया। अब जेपी नड्डा की राजनीतिक सफलता का सिलसिला शुरू हुआ। कुशल संगठनकर्ता के रूप में वे खरे साबित होने लगे। पहली बार छत्तीसगढ़ का प्रभार मिला और वहां भाजपा की सरकार बनी। बेहतर काम करने का ईनाम ये मिला कि वर्ष 2012 में नड्डा राज्यसभा में आ गए। वे मोदी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे। नड्डा सरकार और संगठन के बीच तालमेल के लिए चर्चित हैं। चुनाव जीतने के बाद उन्हें कई राज्यों में पर्यवेक्षक बनाया गया। वे यूपी में भी लोकसभा चुनाव प्रभारी थे।
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राजनीति में जीते, लेकिन मल्लिका के सामने हारे दिल की बाजी
अकसर राजनेता दिल की बाजी हार जाते हैं। जेपी नड्डा का नाम भी इसी कड़ी में है। जेपी नड्डा व मल्लिका नड्डा का प्रेम विवाह है। मल्लिका नड्डा भी राजनीतिक परिवार से हैं। वे भी छात्र राजनीति में सक्रिय रही हैं। दोनों 1991 में विवाह बंधन में बंधे हैं। जेपी व मल्लिका की मुलाकात एचपी यूनिवर्सिटी में छात्र राजनीति में सक्रियता के दौरान हुई थी। हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में इतिहास की प्रोफेसर मल्लिका नड्डा लगातार जेपी नड्डा के राजनीतिक वर्तमान को संवारने में अपनी भूमिका निभा रही हैं। 
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