भोपाल : मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के सिरोंज की रहने वाली 16 साल की स्तुति अग्रवाल को उर्दू इतनी पसंद है कि उन्होंने अपने परिवार के खिलाफ जाकर उर्दू का इस तरह से अध्ययन किया कि उनकी कविताएं, उपन्यास और निबंध भारत की कई उर्दू पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं.
सिरोंज से बड़े-बड़े शायर और लेखक गुजरे हैं. यही कारण है कि सिरोंज में मुसलमानों के साथ-साथ गैर-मुस्लिमों को भी उर्दू भाषा काफी पसंद है.
सिरोंज के अग्रवाल परिवार की लड़की स्तुति अग्रवाल को उर्दू इतनी पंसद है कि उन्होंने इसके अध्ययन के लिए अपने परिवार से बगावत करते हुए न केवल उर्दू सीखी, बल्कि आज भारत की हर पत्रिका में उनकी नजमें और कहानियां प्रकाशित हो चुके हैं.
फिलहाल स्तुति अग्रवाल वर्तमान में सिरोंज से प्रकाशित होने वाली पत्रिका इंतसाब की उप-संपादक हैं, और पत्रिका में लेख भी लिखती रहती हैं.
अग्रवाल ने कहा, 'उर्दू का अध्ययन करने पर लोगों ने और मेरे परिवार के सदस्यों ने मुझ से कहा कि यदि आप उर्दू पढ़ेंगी हैं, तो आप मुसलमान बन जाएंगीं.'
ईटीवी भारत के साथ एक विशेष साक्षात्कार में स्तुति अग्रवाल ने कहा कि साहित्य से जुड़े लोगों के साथ उनके पिता अनिल अग्रवाल की दोस्ती पुरानी है और वह खुद भी अपने पिता के साथ साहित्यिक समारोहों का हिस्सा हुआ करती थीं. इस दौरान उर्दू भाषा के प्रति उनका प्यार बढ़ता गया और यह एक दीवानगी में तब्दील हो गया.
लगभग आठ साल की उम्र में, स्तुति ने सभी महान कवियों की कविताओं को याद कर लिया था और जब उन्होंने इन कविताओं को मुशायर में सुनाया, तो उनकी बहुत प्रशंसा हुई और इससे उत्साहित होकर उनकी उर्दू के प्रति दीवानगी और बढ़ गई.
आठवीं कक्षा में उन्होंने उर्दू स्कूल में दाखिला लिया और अपनी छह महीने की कड़ी मेहनत से उर्दू सीखी. इस बीच, उनके कई लेख, उपन्यास और कविताएं विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं.
धर्म और भाषा के नाम पर समाज में नफरत पैदा करने वालों पर अल्लामा इकबाल की कविता का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, 'मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम, वतन है हिंदुस्तान हमारा.'
स्तुति ने आगे कहा कि जब हम एक जैसे दिखने वाले हैं, हमवतन हैं और हमारी संस्कृति भी एक है, तो लड़ाई किस बात की है.
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एक हिंदू परिवार और उर्दू के प्रति उनके प्रेम के बारे में पूछे जाने पर, स्तुति ने कहा, 'मेरे घर में ऐसे लोग थे, जिन्होंने आपत्ति जताई थी. मेरे पिता और मां ही थे, जिन्होंने मेरा समर्थन किया. इसके अलावा मेरे घर में कोई नहीं था, जिसने मेरा समर्थन किया, लेकिन दावा किया कि अगर आप उर्दू पढ़ेंगी तो आप मुसलमान बन जाएंगी.
साथ ही उन्होंने कहा कि मैंने इस विषय पर एक कविता का पाठ किया, जिसका शीर्षक है 'मैं उर्दू क्यों पढ़ती हूं.'