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कोरोना : वैज्ञानिकों की टीम एंटीबॉडी के लिए कर रही एक्स-रे का प्रयोग

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Published : May 22, 2020, 9:43 PM IST

वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम कोविड-19 वायरस से बचाव के क्रम में दिन-रात एंटीबॉडी के लिए निवारक उपचार एक्स-रे की मदद से ढूंढ रही है, जो प्रतिरक्षा के लिए या पोस्ट-एक्सपोजर थेरेपी के रूप में इस्तेमाल किया जा सके. टीम डेविड कोर्टी के निरीक्षण और डेविड विसलर के नेतृत्व में काम कर रही है. जानें विस्तार से...

x ray experiments for covid 19 antibodies
प्रतीकात्मक चित्र

हैदराबाद : कोविड-19 का उपचार विकसित करने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक काम कर रहे है. वहीं डेविड कोर्टी के निरीक्षण में वीर जैविक-तकनीक में और वाशिंगटन विश्वविद्यालय में डेविड विसलर के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय टीम भी काम कर रही है. यह टीम वायरस से बचाव के क्रम में दिन-रात एंटी-बॉडी के लिए निवारक उपचार एक्स-रे की मदद से ढूंढ रही है, जो प्रतिरक्षा के लिए या पोस्ट-एक्सपोजर थेरेपी के रूप में इस्तेमाल किया जा सके.

नवीनतम निष्कर्ष लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी (बर्कले लैब) के एडवांस्ड लाइट सोर्स (एएलएस) में एकत्र किए गए डाटा के आधार पर है. निष्कर्ष संकेत देते हैं कि सार्स से बचे लोगों से प्राप्त एंटीबॉडी सार्स-कोव-2 और संबंधित वायरस को कोशिकाओं में संभावित रूप से प्रवेश को अवरुद्ध कर सकते हैं.

'नेचर' पत्रिका में इस सप्ताह प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि वैज्ञानिक एंटीबॉडी की नैदानिक ​​परीक्षणों की ओर लगातार बढ़ रहे है.

पढ़ें : शोध : मशीन लर्निंग से करेंगे कोरोना मरीजों में हृदय संबंधी रोगों की पहचान

2019 के अंत में सार्स-कोव-2 के उभरने के तुरंत बाद विसलर और उनके सहयोगियों ने क्रमशः 2003 और 2013 में सार्स और मर्स से बचे लोगों की पहचान कर संभावित एंटीबॉडी के लिए स्क्रीनिंग शुरू कर दी थी.

एंटीबॉडी स्पाइक प्रोटीन में कैसे बाधा डालता है, इसे समझने के लिए टीम आवश्यक जानकारी इकट्ठा कर रही है. वैज्ञानिक क्रायो-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (क्रायो-ईएम) का उपयोग कर वॉशिंगटन अर्नोल्ड विश्वविद्यालय में माबेल बेकमैन क्रायोमेम सेंटर और एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी से एएलएस बीमांक 5.0.2 पर शोध कर रहे हैं. यह शोध बर्कले सेंटर फॉर स्ट्रक्चरल बायोलॉजी (BCSB) के निरीक्षण में किया जा रहा है.

हैदराबाद : कोविड-19 का उपचार विकसित करने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक काम कर रहे है. वहीं डेविड कोर्टी के निरीक्षण में वीर जैविक-तकनीक में और वाशिंगटन विश्वविद्यालय में डेविड विसलर के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय टीम भी काम कर रही है. यह टीम वायरस से बचाव के क्रम में दिन-रात एंटी-बॉडी के लिए निवारक उपचार एक्स-रे की मदद से ढूंढ रही है, जो प्रतिरक्षा के लिए या पोस्ट-एक्सपोजर थेरेपी के रूप में इस्तेमाल किया जा सके.

नवीनतम निष्कर्ष लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी (बर्कले लैब) के एडवांस्ड लाइट सोर्स (एएलएस) में एकत्र किए गए डाटा के आधार पर है. निष्कर्ष संकेत देते हैं कि सार्स से बचे लोगों से प्राप्त एंटीबॉडी सार्स-कोव-2 और संबंधित वायरस को कोशिकाओं में संभावित रूप से प्रवेश को अवरुद्ध कर सकते हैं.

'नेचर' पत्रिका में इस सप्ताह प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि वैज्ञानिक एंटीबॉडी की नैदानिक ​​परीक्षणों की ओर लगातार बढ़ रहे है.

पढ़ें : शोध : मशीन लर्निंग से करेंगे कोरोना मरीजों में हृदय संबंधी रोगों की पहचान

2019 के अंत में सार्स-कोव-2 के उभरने के तुरंत बाद विसलर और उनके सहयोगियों ने क्रमशः 2003 और 2013 में सार्स और मर्स से बचे लोगों की पहचान कर संभावित एंटीबॉडी के लिए स्क्रीनिंग शुरू कर दी थी.

एंटीबॉडी स्पाइक प्रोटीन में कैसे बाधा डालता है, इसे समझने के लिए टीम आवश्यक जानकारी इकट्ठा कर रही है. वैज्ञानिक क्रायो-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (क्रायो-ईएम) का उपयोग कर वॉशिंगटन अर्नोल्ड विश्वविद्यालय में माबेल बेकमैन क्रायोमेम सेंटर और एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी से एएलएस बीमांक 5.0.2 पर शोध कर रहे हैं. यह शोध बर्कले सेंटर फॉर स्ट्रक्चरल बायोलॉजी (BCSB) के निरीक्षण में किया जा रहा है.

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