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बिहार के गया में 1.80 लाख की आबादी पर महज दो डॉक्टर, एक सुबह और एक शाम

सरकार लाख दावे कर ले लेकिन स्वास्थ्य सुविधाएं गरीबों तक पहुंचाने में सक्षम नहीं हो पा रही है. गया का खिजरसराय सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र डॉक्टर और अन्य सुविधाओं के बिना बीमार अवस्था में शैय्या पर है. इस व्यवस्था को सुधारने के लिए सख्त इलाज की आवश्यकता है.

बिहार के गया में अस्पतालों के हालात बुरे
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Published : Jun 28, 2019, 9:39 PM IST

गया: भले ही सुशासन की सरकार में स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं. लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है. बिहार के गया जिले का खिजरसराय प्रखंड सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र का हाल भी कुछ इसी तरह का है. समुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र मात्र दो डॉक्टर के भरोसे चल रहा है.

स्वास्थ्य केंद्र का सारा जिम्मा प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी और एक चिकित्सक के कंधों पर है. आलम यह है, एक डॉक्टर सुबह तो दूसरा शाम में ड्यूटी बजाते हैं. सुबह में एक ओपीडी में सैकड़ों मरीज को देखते हैं. जबकि शाम में दूसरा डिलीवरी और इमरजेंसी मरीज को देखते हैं.

तकरीबन दो लाख की आबादी वाले गया में महज दो डॉक्टर

चमकी से निपटने का उचित सुविधा नहीं
सूबे में चमकी बुखार से सैंकड़ो बच्चों की जान चली गई. वहीं गया में भी लू ने सैंकड़ो जिन्दगी को एक-दो दिन के अंदर लील कर दी थी. लेकिन इस अस्पताल का रोना है. चमकी बुखार से निपटने के लिए कोई समुचित व्यवस्था नहीं है. खानापूर्ति के लिए एक अव्यवस्थित कमरे में एक बेड सुरक्षित रखा गया है. लेकिन जरूरत के सारे सामान नदारद हैं. प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी भोला भाई ने बताया कि यहां 19 डॉक्टरों का पद स्वीकृत हैं. लेकिन वर्तमान में मात्र दो डॉक्टर हैं. इस अस्पताल में ज्यादातर डिलीवरी मरीज और इमरजेंसी मरीज आते हैं. डॉक्टरों की कमी के कारण परेशानियों का सामना भी करते हैं. हर माह यहां 100 से ज्यादा डिलीवरी होता है. इस अस्पताल में लू से पीड़ित लोग भी भर्ती हुए थे.

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बिहार के गया में गरीबों तक नहीं पहुंच रही स्वास्थ्य सुविधाएं

बाहर से आती है महिला डॉक्टर
अस्पताल के वार्डो में पंखा, बेड के अलावे कुछ वार्डो में एसी और कूलर की भी व्यवस्था है. कहने के लिए दो एम्बुलेंस है लेकिन एक खराब पड़ा है. जबकि दूसरे के सहारे मरीजों को यहां लाया जाता है. गौर करने वाली बात यह है कि महिला मरीज को देखने के लिए महिला डॉक्टर को बाहर से बुलाया जाता है. जबकि आयुष डॉक्टर से भी सहयोग लेकर अस्पताल को सुचारू ढंग से चलाने की कोशिश रहती है.

पढ़ेंः स्वास्थ्य मोर्चे पर BH, UP का सबसे बुरा हाल, केरल नंबर वन

इमरजेंसी के नाम पर मिलता है रेफर
1 लाख 80 हजार आबादी को स्वस्थ्य रखने का जिम्मा मात्र दो डॉक्टर को कंधो पर है. ऐसे में लोगों को बेहतर चिकित्सा सुविधा देने की बात बेमानी लगती है. एक ही डॉक्टर इमरजेंसी, ओपीडी और सामान्य मरीजों को देखते हैं. हालांकि इमरजेंसी की बात इसके उलट है. इमरजेंसी मरीज को चंद मिनट के अंदर ही यहां से रेफर कर दिया जाता है. चमकी बुखार और लू से सैंकड़ो की जान जाने के बाद भी स्वास्थ्य महकमा सबकुछ ठीक होने का दावा करती है. लेकिन जमीनी स्तर पर गरीब को सरकारी अस्पताल में न तो डॉक्टर मिल पा रहे हैं और ना ही अन्य मेडिकल सुविधाएं. मजबूरन लोग गया डिकल कॉलेज अस्पताल या फिर निजी अस्पताल की तरफ रूख करते हैं.

गया: भले ही सुशासन की सरकार में स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं. लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है. बिहार के गया जिले का खिजरसराय प्रखंड सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र का हाल भी कुछ इसी तरह का है. समुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र मात्र दो डॉक्टर के भरोसे चल रहा है.

स्वास्थ्य केंद्र का सारा जिम्मा प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी और एक चिकित्सक के कंधों पर है. आलम यह है, एक डॉक्टर सुबह तो दूसरा शाम में ड्यूटी बजाते हैं. सुबह में एक ओपीडी में सैकड़ों मरीज को देखते हैं. जबकि शाम में दूसरा डिलीवरी और इमरजेंसी मरीज को देखते हैं.

तकरीबन दो लाख की आबादी वाले गया में महज दो डॉक्टर

चमकी से निपटने का उचित सुविधा नहीं
सूबे में चमकी बुखार से सैंकड़ो बच्चों की जान चली गई. वहीं गया में भी लू ने सैंकड़ो जिन्दगी को एक-दो दिन के अंदर लील कर दी थी. लेकिन इस अस्पताल का रोना है. चमकी बुखार से निपटने के लिए कोई समुचित व्यवस्था नहीं है. खानापूर्ति के लिए एक अव्यवस्थित कमरे में एक बेड सुरक्षित रखा गया है. लेकिन जरूरत के सारे सामान नदारद हैं. प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी भोला भाई ने बताया कि यहां 19 डॉक्टरों का पद स्वीकृत हैं. लेकिन वर्तमान में मात्र दो डॉक्टर हैं. इस अस्पताल में ज्यादातर डिलीवरी मरीज और इमरजेंसी मरीज आते हैं. डॉक्टरों की कमी के कारण परेशानियों का सामना भी करते हैं. हर माह यहां 100 से ज्यादा डिलीवरी होता है. इस अस्पताल में लू से पीड़ित लोग भी भर्ती हुए थे.

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बिहार के गया में गरीबों तक नहीं पहुंच रही स्वास्थ्य सुविधाएं

बाहर से आती है महिला डॉक्टर
अस्पताल के वार्डो में पंखा, बेड के अलावे कुछ वार्डो में एसी और कूलर की भी व्यवस्था है. कहने के लिए दो एम्बुलेंस है लेकिन एक खराब पड़ा है. जबकि दूसरे के सहारे मरीजों को यहां लाया जाता है. गौर करने वाली बात यह है कि महिला मरीज को देखने के लिए महिला डॉक्टर को बाहर से बुलाया जाता है. जबकि आयुष डॉक्टर से भी सहयोग लेकर अस्पताल को सुचारू ढंग से चलाने की कोशिश रहती है.

पढ़ेंः स्वास्थ्य मोर्चे पर BH, UP का सबसे बुरा हाल, केरल नंबर वन

इमरजेंसी के नाम पर मिलता है रेफर
1 लाख 80 हजार आबादी को स्वस्थ्य रखने का जिम्मा मात्र दो डॉक्टर को कंधो पर है. ऐसे में लोगों को बेहतर चिकित्सा सुविधा देने की बात बेमानी लगती है. एक ही डॉक्टर इमरजेंसी, ओपीडी और सामान्य मरीजों को देखते हैं. हालांकि इमरजेंसी की बात इसके उलट है. इमरजेंसी मरीज को चंद मिनट के अंदर ही यहां से रेफर कर दिया जाता है. चमकी बुखार और लू से सैंकड़ो की जान जाने के बाद भी स्वास्थ्य महकमा सबकुछ ठीक होने का दावा करती है. लेकिन जमीनी स्तर पर गरीब को सरकारी अस्पताल में न तो डॉक्टर मिल पा रहे हैं और ना ही अन्य मेडिकल सुविधाएं. मजबूरन लोग गया डिकल कॉलेज अस्पताल या फिर निजी अस्पताल की तरफ रूख करते हैं.

Intro:सुशासन सरकार बिहार के सत्ता में एक दशक तीन साल से काबिज है। सरकार के दावे सुशासन का रहता हैं लेकिन जमीनी हकीकत पर सुशासन खोजने पर नही मिलेगा। गया के खिजरसराय प्रखंड के समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र दो चिकित्सकों के भरोसे चल रहा है। दो डॉक्टर सभी विभागों को संभाल रहा है।


Body:गया का एक ऐसा अस्पताल जहां दो डॉक्टर सभी विभागों को चलाते हैं। ये कल्पना मात्र नही है ये हकीकत हैं गया के खिजरसराय प्रखंड के समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एक प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी और एक चिकित्सक के भरोसे पूरा अस्पताल हैं। सुबह में एक डॉक्टर ओपीडी में सैकड़ों मरीज को देखता है शाम को दूसरा डॉक्टर डिलीवरी मरीज और इमरजेंसी मरीज को देखता है। दोनो डॉक्टर बारी बारी से अपने अनुसार समय तय करके मरीजो का इलाज करते हैं।

सोचिये एक डॉक्टर कैसे सभी बीमारियों का इलाज कर सकता है। एक डॉक्टर इमरजेंसी देख रहा है ओपीडी देख रहा है भर्ती मरीज को देख रहा है। ये सारा कार्य वन मैन आर्मी जैसा आपको लग रहा होगा पर हकीकत इस उलट हैं। अस्पताल में इमरजेंसी मरीज तो आते हैं लेकिन उन्होंने चंद मिनट में मेडिकल कॉलेज अस्पताल रेफर कर दिया जाता है या निजी अस्पताल में जाने का सुक्षाव दिया जाता है।

समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खिजरसराय के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी ने बताया यहां 19 डॉक्टरों की स्वीकृति हैं। वर्तमान मुझे मिलाकर दो डॉक्टर हैं। दोनो डॉक्टर मिलकर सुबह ओपीडी , इमरजेंसी , भर्ती मरीज को देखते हैं। यहां ज्यादातर डिलीवरी पेशेंट और इमरजेंसी पेशेंट आते हैं। संसाधन के अनुसार इलाज होता हैं। माह में 100 से ज्यादा यहां डिलीवरी होता हैं। नसबंदी का ऑपरेशन होता हैं। इस बार लू से पीडित मरीज आये थे सभी का इलाज यही हुआ सभी स्वस्थ होकर गए है। सभी वार्डो में फ़ंखा ,बेड, और कुछ वार्डो में एसी और कूलर भी लगा है। अस्पताल में दो एम्बुलेंस था एक एम्बुलेंस खराब हो गया हैं। दूसरा छोटा वाला चल रहा है। महिला डॉक्टर बाहर से बुलाया जाता है महिला मरीजो के लिए। आयुष डॉक्टर से भी मदद लिया जाता है।

जिला प्रशासन के नियमो को ताक पर रखकर जापानी बुखार के मरीज के लिए एक अव्यवस्थित कमरे में एक बेड सुरक्षित रखा गया है। खानापूर्ति करने के लिए वार्ड बनाया गया है जरूरत का कोई भी समान नही था।

सुशासन के दम भरने वाली सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था खुद बीमार है अस्पताल के भवन तो बना दिया गया है मरीज भी आते हैं यहां चिकित्सक नही हैं। मरीजो को मजबूरन गया के मेडिकल कॉलेज अस्पताल जाना पड़ता हैं या निजी अस्पताल में जाना पड़ता हैं।

ईटीवी के पड़ताल में ये अस्पताल बीमार निकला।






Conclusion:
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