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विशेष लेख : महिलाओं की आत्मसुरक्षा के लिए आया 'निर्भीक' - सरकार द्वारा डिज़ाइन

देश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों को देखते हुए धीरे-धीरे, महिलाएं अपने मुद्दों पर खुद खड़े होने की कोशिश कर रही हैं. महिलाओं की इन्हीं कोशिशों को ध्यान में रखते हुए 'निर्भीक' रिवॉल्वर, जो विशेष रूप से महिलाओं के लिए सरकार द्वारा डिज़ाइन किया गया है और कानपुर की ऑर्डनेंस फैक्ट्री में निर्मित की जा रही है, काफी संख्या में खरीदी भी जा रही हैं. इस पहल से महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों में अवश्य ही कमी आएगी.

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लड़कियां अपनी रक्षा अब बन्दूकों से करेंगी
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Published : Dec 11, 2019, 10:20 AM IST

वर्ष 2012 में दिल्ली में निर्भया घटना के बाद ... शहर की किस्मत, दिन के साथ-साथ भयावहता, उसी दिशा में बढ़ रही है, जो महिलाओं के लिए लगातार असुरक्षित साबित हो रही है. महिलाओं के लिए, शहर में किसी भी समय अकेले बाहर जाना असंभव सा हो गया है. एक के बाद एक, इन दिनों शहर में जघन्य अपराध हो रहे हैं. लेकिन ये भी सच है कि धीरे-धीरे महिलाएं अपने मुद्दों पर खुद खड़े होने की कोशिश कर रही हैं, अपराधियों के साथ निपटने के लिए बहादुरी से आगे आ रहीं हैं और इस तरह के किसी भी अत्याचार के खिलाफ लड़ने के लिए परिवर्तन को गले लगा रही हैं.

बंदूकों के साथ खुद का बचाव करने का विचार केवल सुरक्षित होने के लिए एकमात्र रटे के रूप में लगाया जा रहा है, जैसा कि आज की महिलाएं हैं. आज की कई महिलाओं द्वारा बंदूकों की सहायता लेकर खुद के बचाओ करने के विचार को एकमात्र मार्ग माना जा रहा है. आइए कुछ अन्य मामलों पर एक नज़र डालें जिनसे हम आशा करते हैं कि वे एक सामान्य महिला के आत्मविश्वास को बढ़ाने में मदद कर सकेंगे...

निडर
दो साल पहले पश्चिम बंगाल और ईशापुर में, भारत सरकार ने महिलाओं के लिए विशेष रूप से आग्नेयास्त्रों का निर्माण शुरू किया, जिसकी कीमत रु 56,000 है. इसे रखने के लिए, पहले स्थानीय पुलिस स्टेशन और जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय में लाइसेंस के लिए आवेदन करना होगा. बाद में, परमिट को ऑनलाइन अपलोड करने पर, जल्द से जल्द निडर रिवॉल्वर प्राप्त कर सकती हैं. ये आग्नेयास्त्र पूरी तरह से कानूनी हैं.

ऐसे ही अन्य हल्के रिवाल्वर के बारे में जो सरकारी अनुमति के साथ आत्मरक्षा के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं ...

निर्भीक
निर्भीक रिवॉल्वर, जो विशेष रूप से महिलाओं के लिए सरकार द्वारा डिज़ाइन किया गया है और कानपुर की ऑर्डनेंस फैक्ट्री में निर्मित की जा रही है, का भी उपयोग आत्मरक्षा के लिए किया जा सकता है. निर्भया के साथ हुई घटना के बाद इस हथियार का उत्पादन शुरू किया गया था. इसे लगातार से बाजार में लाया जा रहा है. यह एक हल्के वज़न का रिवाल्वर है. करीब साढ़े तीन लाख लोगों ने डेढ़ लाख रुपये की लागत से इस बंदूक को खरीदा है. यह पूर्व लाइसेंस प्राप्त है और फिर कारखाने में ऑर्डर करने के 60 दिनों के भीतर हासिल किया जाता है. यह बंदूक जिसकी बोर क्षमता 0.32 (7.65 मिमी) कैलिबर की है 15 मीटर की दूरी पर लक्ष्य को निशाना बनाने में मदद करती है और इसका रखरखाव भी आसान है. कर्नाटक और मैसूर पुलिस विभाग के तहत आग्नेयास्त्रों के उपयोग पर महिलाओं को प्रशिक्षण प्रदान कर रहा है - 'सिटी सिविलियन राइफल एसोसिएशन' नाम के कार्यक्रम के तहत. इनमें से कई सेवाओं को 2016 में पुलिस ने महिलाओं की आत्मरक्षा के हिस्से के रूप में शुरू किया था. संस्था प्रशिक्षण प्रदान करने के अलावा, लाइसेंस और अन्य सेवाओं के लिए प्रलेखन आवश्यकताओं पर राइफल के उपभोक्ता को भी निर्देशित करेगा.

परिवर्तन अपरिहार्य है ...
एनसीसी और स्पोर्ट्स कैडेट्स को आमतौर पर बंदूक चलने और अन्य आग्नेयास्त्रों के इस्तेमाल का प्रशिक्षण दिया जाता है. इसी तरह, कॉलेजों में भी प्रत्येक छात्र खासकर महिला को मार्शल आर्ट के प्रशिक्षण के साथ-साथ बंदूक चलाना भी सिखाना चाहिए. इसको शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाना चाहिये. हर समय और सभी जगहों पर जनता की सुरक्षा के लिए पुलिस पर निर्भर रहने का कोई मतलब नहीं है. उक्त अपराध के घटने के बाद ही मुखरता के और भी मामले सामने आते रहें हैं. इस तरह की स्थितियों में, लड़कियों को समय पर बाद में पछताने के बजाय समय पर खुद को बचाने के उपायों को सिखाया जाना चाहिए. बंदूक का उपयोग और संचालन सभी महिलाओं को सिखाया जाना चाहिए, ताकि इस प्रकार के भयावह अपराधों की पुनरावृत्ति न हो.

फातिमा को बंदूक हासिल करने के लिए कैसे प्रेरित हुई??
वर्तमान में, महिलाओं में यह भावना बढ़ रही है कि यह असंगत है कि उन्हें अपने साथ एक हथियार रखना चाहिए, जिससे वे खुद का बचाव कर सकें और समाज के गुंडों का सामना करने के लिए अपने आत्मविश्वास को बढ़ा सकें. यह तथ्य कि एक कंप्यूटर विज्ञान प्रशिक्षक, वारंगल की सुश्री नौशीन फातिमा ने अपनी सुरक्षा के लिए बंदूक के लाइसेंस के लिए आवेदन किया था, यह एक ऐसे डर का उदाहरण है जो समाज की महिलाओं के बीच बढ़ता जा रहा है.

फातिमा बताती है कि वह काजीपेट से सुबह घर से निकलती है और वारंगल में अपने शैक्षणिक संस्थान में अपने कर्तव्यों का निर्वाह करके रात में घर लौटती है. दिशा की घटना के बाद, वे दहशत महसूस करती हैं. उन्हें एहसास है कि खतरा के समय वे किसी के आकर उन्हें बचाने का इंतजार नहीं कर सकती हैं. हर ऐसी घटना के बाद, यह अनिवार्य होता जा रहा है कि घर की हर लड़की को कुछ निवारक उपाय करने चाहिए. यह एक दिनचर्या का हिस्सा बन गया है कि एक लड़की को कुछ निर्देशों का ध्यान रखना चाहिए जैसे कि - उसकी लाइव लोकेशन शेयर करना, 100 नंबर पर डायल करना जब मुसीबत में हो या फिर मिर्च स्प्रे को संभाल कर रखें और ज़रुरत पड़ने पर इस्तेमाल करे. हालांकि, ऐसे सभी निर्देशों का पालन करने के बावजूद, यह गारंटी नहीं है कि एक लड़की सिर्फ ऐसे उपायों के सहारे सुरक्षित रहेगी.

इसलिए, फातिमा ने महसूस किया कि यहां की लड़कियों के लिए बेहतर होगा कि वे हल्के वजन वाली बंदूक जैसे हथियार को साथ रखें, जिससे उनके जैसी लड़कियों को मदद मिले, जिन्हें सुबह-सुबह और देर रात तक कार्यस्थल से अकेले रहना पड़ता है. इस सोच ने फातिमा को अपने बंदूक के लाइसेंस के लिए आवेदन करने के लिए प्रेरित किया और व्यक्तिगत रूप से 30 नवंबर, 2019 को परमिट के लिए पुलिस आयुक्त, काजीपेट से अनुरोध किया. उन्होंने आयुक्त के पास सभी आवश्यक दस्तावेज जमा करने के बाद, ऑनलाइन आवेदन भी किया था.

फातिमा का कहना है कि मौजूदा परिस्थितियों में, वह निश्चित रूप से अपेक्षित बंदूक लाइसेंस प्राप्त करने की उम्मीद करेगी, जिसके बाद वह अपनी सुरक्षा के लिए और यात्रा के समय के बावजूद आत्मविश्वास से यात्रा कर सकेंगी.

वे इस मामले में अपने परिवार के समर्थन पर भी अपनी खुशी व्यक्त करती है, जो पहले सकारात्मक नहीं था!!

आइए हम आशा करें कि सिर्फ इस ख़बर से कि कोई लड़की अपने साथ बंदूक रख सकती है महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों में निश्चित रूप से कमी आएगी, और उन्हें ऐसी परिस्थिती की ओर नहीं धकेला जायेगा जहां वे बंदूक का इस्तेमाल करने में हिचकेंगी नहीं!!!

वर्ष 2012 में दिल्ली में निर्भया घटना के बाद ... शहर की किस्मत, दिन के साथ-साथ भयावहता, उसी दिशा में बढ़ रही है, जो महिलाओं के लिए लगातार असुरक्षित साबित हो रही है. महिलाओं के लिए, शहर में किसी भी समय अकेले बाहर जाना असंभव सा हो गया है. एक के बाद एक, इन दिनों शहर में जघन्य अपराध हो रहे हैं. लेकिन ये भी सच है कि धीरे-धीरे महिलाएं अपने मुद्दों पर खुद खड़े होने की कोशिश कर रही हैं, अपराधियों के साथ निपटने के लिए बहादुरी से आगे आ रहीं हैं और इस तरह के किसी भी अत्याचार के खिलाफ लड़ने के लिए परिवर्तन को गले लगा रही हैं.

बंदूकों के साथ खुद का बचाव करने का विचार केवल सुरक्षित होने के लिए एकमात्र रटे के रूप में लगाया जा रहा है, जैसा कि आज की महिलाएं हैं. आज की कई महिलाओं द्वारा बंदूकों की सहायता लेकर खुद के बचाओ करने के विचार को एकमात्र मार्ग माना जा रहा है. आइए कुछ अन्य मामलों पर एक नज़र डालें जिनसे हम आशा करते हैं कि वे एक सामान्य महिला के आत्मविश्वास को बढ़ाने में मदद कर सकेंगे...

निडर
दो साल पहले पश्चिम बंगाल और ईशापुर में, भारत सरकार ने महिलाओं के लिए विशेष रूप से आग्नेयास्त्रों का निर्माण शुरू किया, जिसकी कीमत रु 56,000 है. इसे रखने के लिए, पहले स्थानीय पुलिस स्टेशन और जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय में लाइसेंस के लिए आवेदन करना होगा. बाद में, परमिट को ऑनलाइन अपलोड करने पर, जल्द से जल्द निडर रिवॉल्वर प्राप्त कर सकती हैं. ये आग्नेयास्त्र पूरी तरह से कानूनी हैं.

ऐसे ही अन्य हल्के रिवाल्वर के बारे में जो सरकारी अनुमति के साथ आत्मरक्षा के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं ...

निर्भीक
निर्भीक रिवॉल्वर, जो विशेष रूप से महिलाओं के लिए सरकार द्वारा डिज़ाइन किया गया है और कानपुर की ऑर्डनेंस फैक्ट्री में निर्मित की जा रही है, का भी उपयोग आत्मरक्षा के लिए किया जा सकता है. निर्भया के साथ हुई घटना के बाद इस हथियार का उत्पादन शुरू किया गया था. इसे लगातार से बाजार में लाया जा रहा है. यह एक हल्के वज़न का रिवाल्वर है. करीब साढ़े तीन लाख लोगों ने डेढ़ लाख रुपये की लागत से इस बंदूक को खरीदा है. यह पूर्व लाइसेंस प्राप्त है और फिर कारखाने में ऑर्डर करने के 60 दिनों के भीतर हासिल किया जाता है. यह बंदूक जिसकी बोर क्षमता 0.32 (7.65 मिमी) कैलिबर की है 15 मीटर की दूरी पर लक्ष्य को निशाना बनाने में मदद करती है और इसका रखरखाव भी आसान है. कर्नाटक और मैसूर पुलिस विभाग के तहत आग्नेयास्त्रों के उपयोग पर महिलाओं को प्रशिक्षण प्रदान कर रहा है - 'सिटी सिविलियन राइफल एसोसिएशन' नाम के कार्यक्रम के तहत. इनमें से कई सेवाओं को 2016 में पुलिस ने महिलाओं की आत्मरक्षा के हिस्से के रूप में शुरू किया था. संस्था प्रशिक्षण प्रदान करने के अलावा, लाइसेंस और अन्य सेवाओं के लिए प्रलेखन आवश्यकताओं पर राइफल के उपभोक्ता को भी निर्देशित करेगा.

परिवर्तन अपरिहार्य है ...
एनसीसी और स्पोर्ट्स कैडेट्स को आमतौर पर बंदूक चलने और अन्य आग्नेयास्त्रों के इस्तेमाल का प्रशिक्षण दिया जाता है. इसी तरह, कॉलेजों में भी प्रत्येक छात्र खासकर महिला को मार्शल आर्ट के प्रशिक्षण के साथ-साथ बंदूक चलाना भी सिखाना चाहिए. इसको शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाना चाहिये. हर समय और सभी जगहों पर जनता की सुरक्षा के लिए पुलिस पर निर्भर रहने का कोई मतलब नहीं है. उक्त अपराध के घटने के बाद ही मुखरता के और भी मामले सामने आते रहें हैं. इस तरह की स्थितियों में, लड़कियों को समय पर बाद में पछताने के बजाय समय पर खुद को बचाने के उपायों को सिखाया जाना चाहिए. बंदूक का उपयोग और संचालन सभी महिलाओं को सिखाया जाना चाहिए, ताकि इस प्रकार के भयावह अपराधों की पुनरावृत्ति न हो.

फातिमा को बंदूक हासिल करने के लिए कैसे प्रेरित हुई??
वर्तमान में, महिलाओं में यह भावना बढ़ रही है कि यह असंगत है कि उन्हें अपने साथ एक हथियार रखना चाहिए, जिससे वे खुद का बचाव कर सकें और समाज के गुंडों का सामना करने के लिए अपने आत्मविश्वास को बढ़ा सकें. यह तथ्य कि एक कंप्यूटर विज्ञान प्रशिक्षक, वारंगल की सुश्री नौशीन फातिमा ने अपनी सुरक्षा के लिए बंदूक के लाइसेंस के लिए आवेदन किया था, यह एक ऐसे डर का उदाहरण है जो समाज की महिलाओं के बीच बढ़ता जा रहा है.

फातिमा बताती है कि वह काजीपेट से सुबह घर से निकलती है और वारंगल में अपने शैक्षणिक संस्थान में अपने कर्तव्यों का निर्वाह करके रात में घर लौटती है. दिशा की घटना के बाद, वे दहशत महसूस करती हैं. उन्हें एहसास है कि खतरा के समय वे किसी के आकर उन्हें बचाने का इंतजार नहीं कर सकती हैं. हर ऐसी घटना के बाद, यह अनिवार्य होता जा रहा है कि घर की हर लड़की को कुछ निवारक उपाय करने चाहिए. यह एक दिनचर्या का हिस्सा बन गया है कि एक लड़की को कुछ निर्देशों का ध्यान रखना चाहिए जैसे कि - उसकी लाइव लोकेशन शेयर करना, 100 नंबर पर डायल करना जब मुसीबत में हो या फिर मिर्च स्प्रे को संभाल कर रखें और ज़रुरत पड़ने पर इस्तेमाल करे. हालांकि, ऐसे सभी निर्देशों का पालन करने के बावजूद, यह गारंटी नहीं है कि एक लड़की सिर्फ ऐसे उपायों के सहारे सुरक्षित रहेगी.

इसलिए, फातिमा ने महसूस किया कि यहां की लड़कियों के लिए बेहतर होगा कि वे हल्के वजन वाली बंदूक जैसे हथियार को साथ रखें, जिससे उनके जैसी लड़कियों को मदद मिले, जिन्हें सुबह-सुबह और देर रात तक कार्यस्थल से अकेले रहना पड़ता है. इस सोच ने फातिमा को अपने बंदूक के लाइसेंस के लिए आवेदन करने के लिए प्रेरित किया और व्यक्तिगत रूप से 30 नवंबर, 2019 को परमिट के लिए पुलिस आयुक्त, काजीपेट से अनुरोध किया. उन्होंने आयुक्त के पास सभी आवश्यक दस्तावेज जमा करने के बाद, ऑनलाइन आवेदन भी किया था.

फातिमा का कहना है कि मौजूदा परिस्थितियों में, वह निश्चित रूप से अपेक्षित बंदूक लाइसेंस प्राप्त करने की उम्मीद करेगी, जिसके बाद वह अपनी सुरक्षा के लिए और यात्रा के समय के बावजूद आत्मविश्वास से यात्रा कर सकेंगी.

वे इस मामले में अपने परिवार के समर्थन पर भी अपनी खुशी व्यक्त करती है, जो पहले सकारात्मक नहीं था!!

आइए हम आशा करें कि सिर्फ इस ख़बर से कि कोई लड़की अपने साथ बंदूक रख सकती है महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों में निश्चित रूप से कमी आएगी, और उन्हें ऐसी परिस्थिती की ओर नहीं धकेला जायेगा जहां वे बंदूक का इस्तेमाल करने में हिचकेंगी नहीं!!!

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K C Venugopal to resign as AICC general secretary incharge of Karnataka

Bengaluru: After the resigntion given by Opposition party leader Siddaramaiah and KPCC president Dinesh Gundurao, K C Venugopal also decided to give resignation for his AICC general secretary incharge of Karnataka post.

According to the sources, Venugopal already sent resignation letter to AICC interim president Sonia Gandhi.

Yesterday Siddaramaiah and Dinesh Gundurao gave resignation bearing the moral responsibility for the by election defeat. It is said that Venugopal has decided to quit the post as the Congress did not achieve the expected result in the by-election. And state congress also decided to appoint new incharge within a week. 

 

Conclusion:
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