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क्या कोरोना महामारी से बचने में मददगार साबित होगी पैंगोलिन

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Published : May 12, 2020, 2:06 PM IST

कोरोना महामारी से मानवजाति को बचाने के लिए वैज्ञानिक वैक्सिन बनाने में जुटे हुए हैं. दूसरी तरफ वैज्ञानिकों का मानना है कि पैंगोलिन ही वह वाहक है, जिसकी वजह से कोरोना वायरस चमगादड़ से होते हुए मनुष्यों तक पहुंचा.

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प्रतीकात्मक चित्र

नई दिल्ली : कोरोना वायरस महामारी से लाखों लोगों की अब तक मौत हो चुकी है. इस वायरस ने देश की अर्थव्यवस्था की गति को धीमा कर दिया है. इन सबके बीच शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया है कि पैंगोलिन पर वायरस प्रभावी असर नहीं दिखा रहा है.

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि यह सब इसलिए है, क्योंकि इन लुप्तप्राय स्तनपायी प्रजातियों (खत्म हो रही प्रजाति) में आनुवंशिक विविधता है.

वैज्ञानिकों का मानना है कि पैंगोलिन ही वह वाहक है, जिसकी वजह से कोरोना वायरस चमगादड़ से होते हुए मनुष्यों तक पहुंचा. पैंगोलिन यहां वाहक के तौर पर काम कर रहा है.

वहीं वैज्ञानिकों के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न पैंगोलिन में जीनोम की विशिष्टता है, जो मनुष्यों को तो इतनी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है, लेकिन इस वायरस का असर जानवरों पर नहीं हो रहा है.

यदि इस पैंगोलिन की जीन प्रणाली का पता लगा लिया जाता है, तो वैज्ञानिकों को लगता है कि इससे कोरोना संक्रमित मरीजों के उपचार में काफी सहायक सिद्ध हो सकता है.

मनुष्यों की प्रतिरक्षा के विपरीत, पैंगोलिन की प्रतिरक्षा प्रणाली कोरोना वायरस के साथ अतुल्यकालिक रूप से रहने में सक्षम लगती है. जब कुछ वायरस मानव शरीर में प्रवेश करते हैं, तो कुछ जीन उनका पता लगाने की कोशिश करते हैं और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को ट्रिगर करते हैं.

ऑस्ट्रियाई शोधकर्ताओं का कहना है कि पैंगोलिन में कोरोना वायरस का कोई प्रभाव नहीं है. उन्होंने पैंगोलिन, मनुष्यों और अन्य स्तनधारियों जैसे जानवरों के जीनोम की तुलना की है और पाया है कि इन स्तनधारियों में मौजूद प्रतिरक्षा प्रणाली हजारों वर्षों से पैंगोलिन जैसी प्रजातियों में नहीं पाई जाती है.

शोधकर्ता कोरोना के आनुवंशिक संकेतों को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं, जैसा कि पैंगोलिन की प्रतिरक्षा प्रणाली में हो रहा है. शोधकर्ता इससे मनुष्यों में कोरोना वायरस से होने वाले संक्रमण का पता लगाकर इसके प्रभाव को नियंत्रित करने की कोशिश में जुटे हुए हैं.

नई दिल्ली : कोरोना वायरस महामारी से लाखों लोगों की अब तक मौत हो चुकी है. इस वायरस ने देश की अर्थव्यवस्था की गति को धीमा कर दिया है. इन सबके बीच शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया है कि पैंगोलिन पर वायरस प्रभावी असर नहीं दिखा रहा है.

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि यह सब इसलिए है, क्योंकि इन लुप्तप्राय स्तनपायी प्रजातियों (खत्म हो रही प्रजाति) में आनुवंशिक विविधता है.

वैज्ञानिकों का मानना है कि पैंगोलिन ही वह वाहक है, जिसकी वजह से कोरोना वायरस चमगादड़ से होते हुए मनुष्यों तक पहुंचा. पैंगोलिन यहां वाहक के तौर पर काम कर रहा है.

वहीं वैज्ञानिकों के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न पैंगोलिन में जीनोम की विशिष्टता है, जो मनुष्यों को तो इतनी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है, लेकिन इस वायरस का असर जानवरों पर नहीं हो रहा है.

यदि इस पैंगोलिन की जीन प्रणाली का पता लगा लिया जाता है, तो वैज्ञानिकों को लगता है कि इससे कोरोना संक्रमित मरीजों के उपचार में काफी सहायक सिद्ध हो सकता है.

मनुष्यों की प्रतिरक्षा के विपरीत, पैंगोलिन की प्रतिरक्षा प्रणाली कोरोना वायरस के साथ अतुल्यकालिक रूप से रहने में सक्षम लगती है. जब कुछ वायरस मानव शरीर में प्रवेश करते हैं, तो कुछ जीन उनका पता लगाने की कोशिश करते हैं और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को ट्रिगर करते हैं.

ऑस्ट्रियाई शोधकर्ताओं का कहना है कि पैंगोलिन में कोरोना वायरस का कोई प्रभाव नहीं है. उन्होंने पैंगोलिन, मनुष्यों और अन्य स्तनधारियों जैसे जानवरों के जीनोम की तुलना की है और पाया है कि इन स्तनधारियों में मौजूद प्रतिरक्षा प्रणाली हजारों वर्षों से पैंगोलिन जैसी प्रजातियों में नहीं पाई जाती है.

शोधकर्ता कोरोना के आनुवंशिक संकेतों को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं, जैसा कि पैंगोलिन की प्रतिरक्षा प्रणाली में हो रहा है. शोधकर्ता इससे मनुष्यों में कोरोना वायरस से होने वाले संक्रमण का पता लगाकर इसके प्रभाव को नियंत्रित करने की कोशिश में जुटे हुए हैं.

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