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प. बंगाल : क्या शुभेंदु का पार्टी छोड़ना तृणमूल के अंत की शुरुआत होगी ? - west Bengal assembly election 2021

शुभेंदु अधिकारी ने ममता मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है. हालांकि, वह तृणमूल सदस्य बने हुए हैं. अधिकारी परिवार का दावा है कि 40-50 विधानसभा की सीटें उनके प्रभाव में हैं. उनके भाई और पिता दोनों सांसद हैं. 2019 लोकसभा चुनाव के परिणाम बताते हैं कि टीएमसी प. मिदनापुर और झारग्राम में कमजोर हुई है. अगर अधिकारी ने पार्टी छोड़ी, तो पूर्वी मिदनापुर में भी पार्टी की स्थिति खराब हो सकती है. भाजपा इसे अवसर के रूप में देख रही है. पढ़िए ईटीवी भारत के बंगाल ब्यूरो चीफ की एक रिपोर्ट.

क्या शुभेंदु का पार्टी छोड़ना तृणमूल के अंत के प्रारंभ का संकेत होगा ?
क्या शुभेंदु का पार्टी छोड़ना तृणमूल के अंत के प्रारंभ का संकेत होगा ?
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Published : Nov 29, 2020, 1:17 PM IST

कोलकाता : तृणमूल कांग्रेस से शुभेंदु अधिकारी का पूरी तरह से अलग होना केवल समय की बात है. पश्चिम बंगाल के राजनीतिक हलकों में अब दो सवाल मंडरा रहे हैं. पहला सवाल यह है कि क्या ममता बनर्जी की स्नेह भरी छाया से बाहर निकलने के बाद शुभेंदु पश्चिम बंगाल के राजनीतिक हलके से धीरे-धीरे बाहर हो जाएंगे? या अगले विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के शासन को समाप्त करने में प्रमुख शिल्पकार बनेंगे ? राजनीतिक अंकगणित दूसरी संभावना पर अधिक बल देता है.

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के आंकड़ों के अनुसार, तृणमूल कांग्रेस पश्चिम मिदनापुर और झारग्राम के दो जिलों में पहले ही अपनी पकड़ खो चुकी है. पूर्वी मिदनापुर जिले में तृणमूल की ताकत अभी बरकरार है ये दोनों जिले पश्चिम मिदनापुर से सटे हुए जिले हैं. 2019 में पूर्वी मिदनापुर जिले में तृणमूल का हिसाब शुभेंदु या अधिकारी परिवार के प्रभाव के कारण बरकरार रहा. शुभेंदु के पिता और कांथी से लोकसभा के सदस्य शिशिर अधिकारी फिलहाल लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस के सबसे बुजुर्ग प्रतिनिधि हैं. शुभेंदु के भाई दिब्येंदु अधिकारी पूर्वी मिदनापुर के तमलुक लोकसभा से सांसद हैं. एक अन्य भाई सौमेंदु अधिकारी कांथी नगर निगम के अध्यक्ष हैं.

अच्छा खासा प्रभाव रखता है अधिकारी परिवार

इन दिनों अकसर कहा जा रहा है कि अभी शुभेंदु राजनीतिक दिशा दिखा रहे हैं, जिसे अधिकारी परिवार अपनाएगा. इसलिए शुभेंदु के पार्टी छोड़ने के बाद अगर पिता और दो भाई एक ही रास्ते पर चलते हैं तो 16 विधानसभा क्षेत्रों में तृणमूल का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा. क्योंकि जिले में मतदाताओं के एक बड़े हिस्से पर अधिकारी परिवार का प्रभाव अभी भी बरकरार है.

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि ऐसा हुआ तो नंदीग्राम में तृणमूल कांग्रेस की जड़ें हिल जाएंगी.. ये वही जगह है जिसने तृणमूल के भूमि आंदोलन ने वर्ष 2011 में पश्चिम बंगाल में 34 वर्ष तक चले वाम मोर्चा शासन को उखाड़ फेंकने में प्रमुख भूमिका निभाई थी. इससे पूरे दक्षिण बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के लिए निश्चित रूप से एक गलत संकेत जाएगा. यहां यह उल्लेखनीय है कि 2019 के लोकसभा चुनावों के विधानसभा-वार परिणामों के अनुसार, तृणमूल कांग्रेस सिंगुर पर पहले ही अपनी पकड़ खो चुकी है. यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि 2011 में वाम मोर्चा शासन के अंत के लिए जिम्मेदार भूमि आंदोलन का यह एक अन्य प्रमुख केंद्र रहा है.

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कितना कारगर है भाजपा का मिशन बंगाल

पूर्वी मिदनापुर के अलावा, शुभेंदु के तृणमूल से बाहर होने से पांच अन्य जिलों बीरभूम, पुरुलिया, बांकुरा, मालदा और मुर्शिदाबाद में भी तृणमूल की पकड़ तेजी से ढीली पड़ेगी, क्योंकि इन पांच जिलों में तृणमूल के जिला नेतृत्व और पार्टी के आम कार्यकर्ताओं पर शुभेंदु का अभी काफी प्रभाव है. पिछले कुछ महीनों से ये पांच जिले ‘हम दादा के अनुयायी हैं’ जैसे पोस्टरों से भरे पड़े हैं. राजनीतिक चुनाव विश्लेषकों के अनुसार, शुभेंदु अधिकारी में 40 से 45 विधानसभा क्षेत्रों में तृणमूल कांग्रेस को बर्बाद कर देने की क्षमता है.

टीएमसी बोली- उम्मीद बाकी है

हालांकि, सीधे तौर पर स्वीकार नहीं किया जा रहा है लेकिन तृणमूल के कई नेता अप्रत्यक्ष रूप से इस तथ्य को स्वीकार कर रहे हैं कि शुभेंदु के तृणमूल से बाहर होना आने वाले दिनों में पार्टी की संभावनाओं के लिए काफी महंगा साबित हो सकता है. दमदम से तृणमूल कांग्रेस के लोकसभा सदस्य सौगत राय के अनुसार, चूंकि शुभेंदु का विधायक के रूप में इस्तीफा देना बाकी है इसलिए उन्हें उम्मीद है कि अंततः वह पार्टी को नहीं छोड़ेंगे.

यहां तक कि मुख्यमंत्री भी इस सच्चाई को महसूस कर रही हैं कि शुभेंदु का बाहर होना आने वाले दिनों में पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं है. इसीलिए उनके निर्देश पर प्रशात किशोर यानी पीके खुद अधिकारी के घर पहुंचे. शुभेंदु से जब वे नहीं मिल पाए तो उनके पिता शिशिर अधिकारी के साथ मुलाकात करके देर तक विचार- विमर्श किया. हालांकि, इसका कोई सार्थक परिणाम नही निकला. शुभेंदु ने अपने एक विश्वास पात्र के जरिए कुछ शर्ते रखीं, जिन्हें पचा पाना या मान लेना मुख्यमंत्री के लिए एक तरह से असंभव है. दूसरी तरफ प्रदेश का भाजपा नेतृत्व यह महसूस कर रहा है कि भगवा कैंप में शुभेंदु का प्रवेश कितना महत्वपूर्ण होगा. इसी वजह से कैलाश विजयवर्गीय और दिलीप घोष जैसे बीजेपी के नेता भी उनका स्वागत करने को लालायित हैं. अब पूरी राजनीति का ध्यान शुभेंदु के अगले कदम पर टिका है.

कोलकाता : तृणमूल कांग्रेस से शुभेंदु अधिकारी का पूरी तरह से अलग होना केवल समय की बात है. पश्चिम बंगाल के राजनीतिक हलकों में अब दो सवाल मंडरा रहे हैं. पहला सवाल यह है कि क्या ममता बनर्जी की स्नेह भरी छाया से बाहर निकलने के बाद शुभेंदु पश्चिम बंगाल के राजनीतिक हलके से धीरे-धीरे बाहर हो जाएंगे? या अगले विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के शासन को समाप्त करने में प्रमुख शिल्पकार बनेंगे ? राजनीतिक अंकगणित दूसरी संभावना पर अधिक बल देता है.

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के आंकड़ों के अनुसार, तृणमूल कांग्रेस पश्चिम मिदनापुर और झारग्राम के दो जिलों में पहले ही अपनी पकड़ खो चुकी है. पूर्वी मिदनापुर जिले में तृणमूल की ताकत अभी बरकरार है ये दोनों जिले पश्चिम मिदनापुर से सटे हुए जिले हैं. 2019 में पूर्वी मिदनापुर जिले में तृणमूल का हिसाब शुभेंदु या अधिकारी परिवार के प्रभाव के कारण बरकरार रहा. शुभेंदु के पिता और कांथी से लोकसभा के सदस्य शिशिर अधिकारी फिलहाल लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस के सबसे बुजुर्ग प्रतिनिधि हैं. शुभेंदु के भाई दिब्येंदु अधिकारी पूर्वी मिदनापुर के तमलुक लोकसभा से सांसद हैं. एक अन्य भाई सौमेंदु अधिकारी कांथी नगर निगम के अध्यक्ष हैं.

अच्छा खासा प्रभाव रखता है अधिकारी परिवार

इन दिनों अकसर कहा जा रहा है कि अभी शुभेंदु राजनीतिक दिशा दिखा रहे हैं, जिसे अधिकारी परिवार अपनाएगा. इसलिए शुभेंदु के पार्टी छोड़ने के बाद अगर पिता और दो भाई एक ही रास्ते पर चलते हैं तो 16 विधानसभा क्षेत्रों में तृणमूल का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा. क्योंकि जिले में मतदाताओं के एक बड़े हिस्से पर अधिकारी परिवार का प्रभाव अभी भी बरकरार है.

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि ऐसा हुआ तो नंदीग्राम में तृणमूल कांग्रेस की जड़ें हिल जाएंगी.. ये वही जगह है जिसने तृणमूल के भूमि आंदोलन ने वर्ष 2011 में पश्चिम बंगाल में 34 वर्ष तक चले वाम मोर्चा शासन को उखाड़ फेंकने में प्रमुख भूमिका निभाई थी. इससे पूरे दक्षिण बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के लिए निश्चित रूप से एक गलत संकेत जाएगा. यहां यह उल्लेखनीय है कि 2019 के लोकसभा चुनावों के विधानसभा-वार परिणामों के अनुसार, तृणमूल कांग्रेस सिंगुर पर पहले ही अपनी पकड़ खो चुकी है. यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि 2011 में वाम मोर्चा शासन के अंत के लिए जिम्मेदार भूमि आंदोलन का यह एक अन्य प्रमुख केंद्र रहा है.

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पूर्वी मिदनापुर के अलावा, शुभेंदु के तृणमूल से बाहर होने से पांच अन्य जिलों बीरभूम, पुरुलिया, बांकुरा, मालदा और मुर्शिदाबाद में भी तृणमूल की पकड़ तेजी से ढीली पड़ेगी, क्योंकि इन पांच जिलों में तृणमूल के जिला नेतृत्व और पार्टी के आम कार्यकर्ताओं पर शुभेंदु का अभी काफी प्रभाव है. पिछले कुछ महीनों से ये पांच जिले ‘हम दादा के अनुयायी हैं’ जैसे पोस्टरों से भरे पड़े हैं. राजनीतिक चुनाव विश्लेषकों के अनुसार, शुभेंदु अधिकारी में 40 से 45 विधानसभा क्षेत्रों में तृणमूल कांग्रेस को बर्बाद कर देने की क्षमता है.

टीएमसी बोली- उम्मीद बाकी है

हालांकि, सीधे तौर पर स्वीकार नहीं किया जा रहा है लेकिन तृणमूल के कई नेता अप्रत्यक्ष रूप से इस तथ्य को स्वीकार कर रहे हैं कि शुभेंदु के तृणमूल से बाहर होना आने वाले दिनों में पार्टी की संभावनाओं के लिए काफी महंगा साबित हो सकता है. दमदम से तृणमूल कांग्रेस के लोकसभा सदस्य सौगत राय के अनुसार, चूंकि शुभेंदु का विधायक के रूप में इस्तीफा देना बाकी है इसलिए उन्हें उम्मीद है कि अंततः वह पार्टी को नहीं छोड़ेंगे.

यहां तक कि मुख्यमंत्री भी इस सच्चाई को महसूस कर रही हैं कि शुभेंदु का बाहर होना आने वाले दिनों में पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं है. इसीलिए उनके निर्देश पर प्रशात किशोर यानी पीके खुद अधिकारी के घर पहुंचे. शुभेंदु से जब वे नहीं मिल पाए तो उनके पिता शिशिर अधिकारी के साथ मुलाकात करके देर तक विचार- विमर्श किया. हालांकि, इसका कोई सार्थक परिणाम नही निकला. शुभेंदु ने अपने एक विश्वास पात्र के जरिए कुछ शर्ते रखीं, जिन्हें पचा पाना या मान लेना मुख्यमंत्री के लिए एक तरह से असंभव है. दूसरी तरफ प्रदेश का भाजपा नेतृत्व यह महसूस कर रहा है कि भगवा कैंप में शुभेंदु का प्रवेश कितना महत्वपूर्ण होगा. इसी वजह से कैलाश विजयवर्गीय और दिलीप घोष जैसे बीजेपी के नेता भी उनका स्वागत करने को लालायित हैं. अब पूरी राजनीति का ध्यान शुभेंदु के अगले कदम पर टिका है.

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