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जानिए सूर्यास्त के बाद क्यों नहीं होती अंत्येष्टि

उत्तर प्रदेश के हाथरस गैंगरेप पीड़िता के शव को जबरन देर रात अंतिम संस्कार कर दिया गया है. क्या कभी आपने सोचा है कि हिंदू धर्म में सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार क्यों नहीं किया जाता है.

अंतिम संस्कार क्यों नहीं किया जाता
अंतिम संस्कार क्यों नहीं किया जाता
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Published : Sep 30, 2020, 8:46 PM IST

देहरादून : उत्तर प्रदेश के हाथरस गैंगरेप पीड़िता का शव देर रात उसके गांव लाया गया और भारी विरोध के बीच प्रशासन द्वारा पीड़िता का अंतिम संस्कार करा दिया गया. परिजन अंतिम संस्कार के लिए राजी नहीं थे, लेकिन पुलिस ने भारी विरोध के बीच पीड़िता का अंतिम संस्कार करा दिया.

मृतक युवती के भाई का आरोप है कि पुलिस ने उन्हें बताए बिना शव को घर से दूर ले गई और चुपचाप उसका अंतिम संस्कार कर दिया. मृतक के पिता और भाई पुलिस एक्शन के खिलाफ विरोध में धरने पर बैठ गए. इसके बाद पुलिस के अफसर उन्हें काली स्कॉर्पियो में बिठाकर कहीं और लेकर चले गए. गांववालों ने भी इस दौरान पुलिस कार्रवाई का विरोध किया.

सूर्यास्त के बाद खुल जाता है नरक का द्वार
सूर्यास्त के बाद खुल जाता है नरक का द्वार

सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार क्यों नहीं किया जाता

हिन्दू धर्म में कुल 16 संस्कार बताए गए हैं. इनमें सबसे अंतिम है मृतक संस्कार. इसके बाद कोई अन्य संस्कार नहीं होता है, इसलिए इसे अंतिम संस्कार भी कहा जाता है. शास्त्रों में अंतिम संस्कार के समय को लेकर भी उल्लेख है, जिसमें सूर्यास्त के बाद किसी भी मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार निषेध है.

शास्त्रों में बताया गया है कि शरीर पंच तत्वों यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है. अंतिम संस्कार के रूप में जब व्यक्ति का दाह संस्कार किया जाता है, तब यह पांचों तत्व जहां से आए थे, उनमें विलीन हो जाते हैं और फिर से नया शरीर पाने के अधिकारी बन जाते हैं.

सूर्यास्त के बाद बैकुंठ का द्वार हो जाता है बंद.
सूर्यास्त के बाद बैकुंठ का द्वार हो जाता है बंद.

अंतिम संस्कार विधि पूर्वक नहीं होने पर मृतक व्यक्ति की आत्मा भटकती रहती है, क्योंकि उन्हें न तो इस लोक में स्थान मिलता है और न परलोक में. इसलिए वह बीच में ही रह जाते हैं. ऐसे व्यक्ति की आत्मा को प्रेतलोक में जाना पड़ता है, इसलिए व्यक्ति की मृत्यु होने पर विधि पूर्वक उनका दाह संस्कार किया जाता है.

अंतिम संस्कार का सूर्य बनते हैं गवाह

हरिद्वार के जाने-माने ज्योतिषाचार्य और पुरोहित प्रतीक मिश्र पुरी बताते हैं कि गरुण पुराण में अंतिम संस्कार को लेकर विस्तारपूर्वक वर्णन है. प्रतीक मिश्र पुरी का कहना है कि शास्त्रों में लिखा है कि इंसान का जन्म और मृत्यु की जानकारी सिर्फ ईश्वर को ही पता होता है, लेकिन किसी भी मृत व्यक्ति को मोक्ष दिलाने की जिम्मेदारी उसके परिजन और सगे संबंधियों पर होता है.

16वें संस्कार में जब व्यक्ति अपने शरीर का त्याग करता है, तब पूरे रीति-रिवाज के साथ मृत शरीर को विदाई दी जाती है. प्रतीक मिश्र पुरी बताते हैं कि दिन में अंतिम संस्कार इसलिए जरूरी माना गया है, क्योंकि सूर्य को आत्मा का दर्जा दिया गया है. लिहाजा सूर्य की उपस्थिति में ही तमाम अंतिम संस्कार से जुड़े कार्य होते हैं. अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु शाम यानी सूर्यास्त के बाद होती है, तो उसके शव को सुबह ही अंतिम संस्कार किया जाता है. यानी जिस व्यक्ति का अंतिम संस्कार हो रहा है, उसके साथ उसके परिवार के लोग अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी तरह से सही कर रहे हैं या नहीं. इसके साक्षी स्वयं सूर्य देवता बनते हैं.

ये भी पढ़ें: फैसले पर प्रतिक्रियाएं : आडवाणी बोले- जयश्री राम, ओवैसी ने बताया - काला दिन

इसी के आधार पर कहा जाता है कि इंसान को मोक्ष की प्राप्ति होती है. कुछ ग्रंथों में कहा गया है कि बैकुंठ का द्वार सूर्यास्त के बाद बंद हो जाते हैं और नरक लोक के द्वार खुल जाते हैं. लिहाजा, जिसका भी अंतिम संस्कार सूर्यास्त के बाद किया जाता है, उसको स्वर्ग लोक नहीं मिलता. इतना ही नहीं ग्रंथ यह भी बताते हैं कि जिस व्यक्ति का अंतिम संस्कार सूर्यास्त के बाद किया जाता है. आत्मा को परलोक में काफी यातनाएं और तकलीफों का सामना करना पड़ता है.

इतना ही नहीं जब मृत व्यक्ति किसी दूसरे शरीर में यानी दूसरे योनि में जन्म लेता है तो उसके शरीर का कोई भी अंग खराब हो सकता है. लिहाजा इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ही शास्त्रों में अंतिम संस्कार का समय सूर्य की मौजूदगी में करने का जिक्र है.

क्यों फोड़ी जाती है मटकी

अंत‌िम संस्कार के समय एक छेद वाले घड़े में जल लेकर शव की पर‌िक्रमा की जाती है और इसे पीछे की ओर पटककर फोड़ द‌िया जाता है. कहते हैं क‌ि जीवन एक छेद वाले घड़े की तरह है, ज‌िसमें आयु रूपी पानी हर पल टपकता रहता है और अंत में सब कुछ छोड़कर जीवात्मा चली जाता है और घड़ा रूपी जीवन समाप्त हो जाता. इस रीत‌ि के पीछे मरे हुए व्यक्त‌ि की आत्मा को और जीव‌ित व्यक्त‌ि दोनों का एक दूसरे से मोह भंग करना भी उद‍्देश्य होता है.

क्यों होती है कपाल क्रिया

अंतिम संस्कार के साथ साथ इस प्रक्रिया में कपाल क्रिया को भी महत्वपूर्ण माना गया है, हालांकि इसके पीछे भी कई कारण और मान्यताएं भी हैं. इंसान का शरीर चिता में पूरी तरह जल जाता है, लेकिन उसका सिर अग्नि में ठीक तरीके से नहीं जल पाता. लिहाजा मृत शरीर के सिर पर अधिक मात्रा में घी डालते हुए अंतिम संस्कार किया जाता है.

साथ ही सिर पर बांस भी मारा जाता है, ताकि कोई भी हिस्सा बचा न रहे. वहीं, शास्त्रों में कहा गया है कि कपाल क्रिया इसलिए भी की जाती है, ताकि मृत शरीर और आत्मा सभी बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति करे.

मणिकर्णिका घाट पर रात में क्यों जलती है चिता

हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले तमाम लोगों की चाहत होती है कि उनकी मृत्यु काशी में हो और गंगा नदी के किनारे स्थित मणिकर्णिका घाट पर उनकी चिता जले. काशी में महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर सैकड़ों वर्षों से चिताएं जलती आ रही हैं. चिता की अग्नि कभी ठंडी नहीं पड़ी है.

मान्यता है कि औघड़ रूप में शिव यहां विराजते हैं. मान्यता यह भी है कि काशी में मृत्यु और मणिकर्णिका पर दाह संस्कार करने से मरने वाले को महादेव तारक मंत्र देते हैं. यहां मोक्ष प्राप्त करने वाला कभी दोबारा गर्भ में नहीं पहुंचता है.

नारायणी शिला के प्रमुख पंडित मनोज त्रिपाठी ने बताया कि मणिकर्णिका घाट को मोक्ष प्राप्ति के लिए सबसे पवित्र जगह माना गया है. इसीलिए बड़ी संख्या में लोग दूर-दराज से अंतिम संस्कार के लिए मणिकर्णिका घाट पहुंचते हैं. मणिकर्णिका घाट पर रोजाना 200-300 तक शवों का रोजाना अंतिम संस्कार किया जाता है. इसीलिए रात में अंतिम संस्कार किया जाता है, जो शास्त्रों के हिसाब से उचित नहीं है.

देहरादून : उत्तर प्रदेश के हाथरस गैंगरेप पीड़िता का शव देर रात उसके गांव लाया गया और भारी विरोध के बीच प्रशासन द्वारा पीड़िता का अंतिम संस्कार करा दिया गया. परिजन अंतिम संस्कार के लिए राजी नहीं थे, लेकिन पुलिस ने भारी विरोध के बीच पीड़िता का अंतिम संस्कार करा दिया.

मृतक युवती के भाई का आरोप है कि पुलिस ने उन्हें बताए बिना शव को घर से दूर ले गई और चुपचाप उसका अंतिम संस्कार कर दिया. मृतक के पिता और भाई पुलिस एक्शन के खिलाफ विरोध में धरने पर बैठ गए. इसके बाद पुलिस के अफसर उन्हें काली स्कॉर्पियो में बिठाकर कहीं और लेकर चले गए. गांववालों ने भी इस दौरान पुलिस कार्रवाई का विरोध किया.

सूर्यास्त के बाद खुल जाता है नरक का द्वार
सूर्यास्त के बाद खुल जाता है नरक का द्वार

सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार क्यों नहीं किया जाता

हिन्दू धर्म में कुल 16 संस्कार बताए गए हैं. इनमें सबसे अंतिम है मृतक संस्कार. इसके बाद कोई अन्य संस्कार नहीं होता है, इसलिए इसे अंतिम संस्कार भी कहा जाता है. शास्त्रों में अंतिम संस्कार के समय को लेकर भी उल्लेख है, जिसमें सूर्यास्त के बाद किसी भी मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार निषेध है.

शास्त्रों में बताया गया है कि शरीर पंच तत्वों यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है. अंतिम संस्कार के रूप में जब व्यक्ति का दाह संस्कार किया जाता है, तब यह पांचों तत्व जहां से आए थे, उनमें विलीन हो जाते हैं और फिर से नया शरीर पाने के अधिकारी बन जाते हैं.

सूर्यास्त के बाद बैकुंठ का द्वार हो जाता है बंद.
सूर्यास्त के बाद बैकुंठ का द्वार हो जाता है बंद.

अंतिम संस्कार विधि पूर्वक नहीं होने पर मृतक व्यक्ति की आत्मा भटकती रहती है, क्योंकि उन्हें न तो इस लोक में स्थान मिलता है और न परलोक में. इसलिए वह बीच में ही रह जाते हैं. ऐसे व्यक्ति की आत्मा को प्रेतलोक में जाना पड़ता है, इसलिए व्यक्ति की मृत्यु होने पर विधि पूर्वक उनका दाह संस्कार किया जाता है.

अंतिम संस्कार का सूर्य बनते हैं गवाह

हरिद्वार के जाने-माने ज्योतिषाचार्य और पुरोहित प्रतीक मिश्र पुरी बताते हैं कि गरुण पुराण में अंतिम संस्कार को लेकर विस्तारपूर्वक वर्णन है. प्रतीक मिश्र पुरी का कहना है कि शास्त्रों में लिखा है कि इंसान का जन्म और मृत्यु की जानकारी सिर्फ ईश्वर को ही पता होता है, लेकिन किसी भी मृत व्यक्ति को मोक्ष दिलाने की जिम्मेदारी उसके परिजन और सगे संबंधियों पर होता है.

16वें संस्कार में जब व्यक्ति अपने शरीर का त्याग करता है, तब पूरे रीति-रिवाज के साथ मृत शरीर को विदाई दी जाती है. प्रतीक मिश्र पुरी बताते हैं कि दिन में अंतिम संस्कार इसलिए जरूरी माना गया है, क्योंकि सूर्य को आत्मा का दर्जा दिया गया है. लिहाजा सूर्य की उपस्थिति में ही तमाम अंतिम संस्कार से जुड़े कार्य होते हैं. अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु शाम यानी सूर्यास्त के बाद होती है, तो उसके शव को सुबह ही अंतिम संस्कार किया जाता है. यानी जिस व्यक्ति का अंतिम संस्कार हो रहा है, उसके साथ उसके परिवार के लोग अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी तरह से सही कर रहे हैं या नहीं. इसके साक्षी स्वयं सूर्य देवता बनते हैं.

ये भी पढ़ें: फैसले पर प्रतिक्रियाएं : आडवाणी बोले- जयश्री राम, ओवैसी ने बताया - काला दिन

इसी के आधार पर कहा जाता है कि इंसान को मोक्ष की प्राप्ति होती है. कुछ ग्रंथों में कहा गया है कि बैकुंठ का द्वार सूर्यास्त के बाद बंद हो जाते हैं और नरक लोक के द्वार खुल जाते हैं. लिहाजा, जिसका भी अंतिम संस्कार सूर्यास्त के बाद किया जाता है, उसको स्वर्ग लोक नहीं मिलता. इतना ही नहीं ग्रंथ यह भी बताते हैं कि जिस व्यक्ति का अंतिम संस्कार सूर्यास्त के बाद किया जाता है. आत्मा को परलोक में काफी यातनाएं और तकलीफों का सामना करना पड़ता है.

इतना ही नहीं जब मृत व्यक्ति किसी दूसरे शरीर में यानी दूसरे योनि में जन्म लेता है तो उसके शरीर का कोई भी अंग खराब हो सकता है. लिहाजा इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ही शास्त्रों में अंतिम संस्कार का समय सूर्य की मौजूदगी में करने का जिक्र है.

क्यों फोड़ी जाती है मटकी

अंत‌िम संस्कार के समय एक छेद वाले घड़े में जल लेकर शव की पर‌िक्रमा की जाती है और इसे पीछे की ओर पटककर फोड़ द‌िया जाता है. कहते हैं क‌ि जीवन एक छेद वाले घड़े की तरह है, ज‌िसमें आयु रूपी पानी हर पल टपकता रहता है और अंत में सब कुछ छोड़कर जीवात्मा चली जाता है और घड़ा रूपी जीवन समाप्त हो जाता. इस रीत‌ि के पीछे मरे हुए व्यक्त‌ि की आत्मा को और जीव‌ित व्यक्त‌ि दोनों का एक दूसरे से मोह भंग करना भी उद‍्देश्य होता है.

क्यों होती है कपाल क्रिया

अंतिम संस्कार के साथ साथ इस प्रक्रिया में कपाल क्रिया को भी महत्वपूर्ण माना गया है, हालांकि इसके पीछे भी कई कारण और मान्यताएं भी हैं. इंसान का शरीर चिता में पूरी तरह जल जाता है, लेकिन उसका सिर अग्नि में ठीक तरीके से नहीं जल पाता. लिहाजा मृत शरीर के सिर पर अधिक मात्रा में घी डालते हुए अंतिम संस्कार किया जाता है.

साथ ही सिर पर बांस भी मारा जाता है, ताकि कोई भी हिस्सा बचा न रहे. वहीं, शास्त्रों में कहा गया है कि कपाल क्रिया इसलिए भी की जाती है, ताकि मृत शरीर और आत्मा सभी बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति करे.

मणिकर्णिका घाट पर रात में क्यों जलती है चिता

हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले तमाम लोगों की चाहत होती है कि उनकी मृत्यु काशी में हो और गंगा नदी के किनारे स्थित मणिकर्णिका घाट पर उनकी चिता जले. काशी में महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर सैकड़ों वर्षों से चिताएं जलती आ रही हैं. चिता की अग्नि कभी ठंडी नहीं पड़ी है.

मान्यता है कि औघड़ रूप में शिव यहां विराजते हैं. मान्यता यह भी है कि काशी में मृत्यु और मणिकर्णिका पर दाह संस्कार करने से मरने वाले को महादेव तारक मंत्र देते हैं. यहां मोक्ष प्राप्त करने वाला कभी दोबारा गर्भ में नहीं पहुंचता है.

नारायणी शिला के प्रमुख पंडित मनोज त्रिपाठी ने बताया कि मणिकर्णिका घाट को मोक्ष प्राप्ति के लिए सबसे पवित्र जगह माना गया है. इसीलिए बड़ी संख्या में लोग दूर-दराज से अंतिम संस्कार के लिए मणिकर्णिका घाट पहुंचते हैं. मणिकर्णिका घाट पर रोजाना 200-300 तक शवों का रोजाना अंतिम संस्कार किया जाता है. इसीलिए रात में अंतिम संस्कार किया जाता है, जो शास्त्रों के हिसाब से उचित नहीं है.

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