नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने पांच अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और आर्टिकल 35-ए को हटाने का एलान किया था. राज्यसभा में अचानक पेश किए गए विधेयक को लेकर काफी हंगामा भी हुआ. हालांकि सरकार अपने फैसले पर कायम रही.
संसद के दोनों सदनों से विधेयक पारित होने के बाद नौ अगस्त को राष्ट्रपति ने बिल को मंजूरी दे दी. विधेयक पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने के बाद जम्मू-कश्मीर में कई प्रशासनिक बदलाव किए गए.
दरअसल, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और आर्टिकल 35-ए से जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा मिलता था, लेकिन अगस्त की शुरुआत में ही सरकार ने इसे हटाने को लेकर अचानक ही पहल कर दी. मॉनसून सत्र के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पांच अगस्त को राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पेश किया. बिल पेश करने के बाद सदन में भारी हंगामा हुआ था.
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राज्यसभा में विधेयक पेश करने के बाद अमित शाह ने इसे ऐतिहासिक बताया. उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू-कश्मीर की जनता गरीबी में जीने को मजबूर है. उन्होंने कहा कि तीन परिवारों ने जम्मू-कश्मीर को कई साल तक लूटा है.
राज्यसभा में बिल पारित होने के बाद 6 अगस्त को लोकसभा से इस बिल को मंजूरी मिल गई. 370 सांसदों ने इस विधेयक का समर्थन किया.
संसद के दोनों सदनों से विधेयक पारित होने के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 को 9 अगस्त को मंजूरी दे दी थी. इसके बाद ये कानून बन गया.
खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रावधानों में बदलाव के बाद देश को संबोधित करते हुए सरकार का पक्ष रखा था. उन्होंने कहा था कि जम्मू-कश्मीर आर्टिकल 370 और 35-ए के नकारात्मक प्रभावों से जल्द बाहर निकलेगा, उन्हें इसका पूरा विश्वास है.