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वोडाफोन मामले में मध्यस्थता न्यायाधिकरण के फैसले के बाद क्या होगा आगे

अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण (पंचाट) में वोडाफोन होल्डिंग्स बीवी के खिलाफ 20 हजार करोड़ रुपए के कर मांग के मामले में भारत को हार का सामना करना पड़ा है. इसके बाद भारत के पास कौन से विकल्प हैं इस पर वरिष्ठ संवाददाता कृष्णानंद त्रिपाठी ने डीएमडी एडवोकेट्स की वरिष्ठ साझीदार अनुराधा दत्त से बातचीत की.

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Published : Sep 29, 2020, 10:05 AM IST

Updated : Sep 29, 2020, 10:43 AM IST

अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण (पंचाट) में वोडाफोन होल्डिंग्स बीवी के खिलाफ 20 हजार करोड़ रुपए के कर मांग के मामले में हार के बाद भारत के पास दो विकल्प हैं. भारत या तो मामले को तूल न देकर शांत बैठ सकता है या सिंगापुर के उच्च न्यायालय में इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकता है. अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण में वोडाफोन का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता अनुराधा दत्त यह बात कही.

डीएमडी एडवोकेट्स की वरिष्ठ साझीदार अनुराधा दत्त ने ईटीवी भारत के साथ एक विशेष बातचीत में कहा कि न्यायाधिकरण ने माना है कि भारत सरकार ने भारत-नीदरलैंड द्विपक्षीय निवेश संरक्षण समझौते (बीआईपीए ) के तहत उचित और न्यायसंगत व्यवहार के सिद्धांत का उल्लंघन किया है. अधिवक्ता अनुराधा दत्त का कहना है कि भारत के पास दो विकल्प हैं- या तो वह इस फैसले को स्वीकार कर इस मुद्दे को छोड़ सकता है या सिंगापुर उच्च न्यायालय में अपील दायर कर सकता है. हालांकि, सिंगापुर उच्च न्यायालय का फैसला भी अंतिम नहीं हो सकता है क्योंकि जो पक्ष फैसले से नाखुश होगा वह सिंगापुर की अपीलीय अदालत में इस आदेश को चुनौती दे सकता है.

उन्होंने कहा कि भारत सरकार के पास दो उपाय हैं. पहला है सिंगापुर का उच्च न्यायालय और फिर सिंगापुर की अपीलीय अदालत. उसके बाद सरकार के लिए कोई विकल्प नहीं है. उन्होंने न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ उपलब्ध सरकार के पास उपलब्ध विकल्पों की व्याख्या करते हुए यह जानकारी दी.

समयबद्ध सुनवाई नहीं

वोडाफोन होल्डिंग्स बीवी की ओर से डीएमडी एसोसिएट्स की टीम का नेतृत्व करने वाली अनुराधा दत्त का कहना है कि हालांकि ऐसे मामलों में समयबद्ध सुनवाई का कोई प्रावधान नहीं है क्योंकि न्यायालयों के अपनी अनुसूची है लेकिन सिंगापुर का न्यायालय अन्य अदालतों की तुलना में तेज है.

13 साल पुराना है टैक्स विवाद

आयकर विभाग ने वर्ष 2007 में वोडाफोन-हच सौदे पर 7 हजार 900 करोड़ रुपए के कर की मांग की. वोडाफोन ने इस मांग को बॉम्बे हाईकोर्ट और फिर दिल्ली स्थित सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने वोडाफोन के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसने तत्कालीन संप्रग सरकार को पूर्व के प्रभाव से कर कानूनों में संशोधन करने के लिए प्रेरित किया ताकि इस तरह के लेनदेन को कर के दायरे में ला सके. देश के बाहर करीब छह साल तक चले मुकदमे की सुनवाई के बाद वोडाफोन के मामले को भारत सरकार हार गई.

वोडाफोन के खिलाफ भारत का मामला क्या है ?

वोडाफोन इंटरनेशनल होल्डिंग (एक नीदरलैंड कंपनी ) ने हचिसन टेलीकॉम इंटरनेशनल लिमिटेड से 11.1 बिलियन डॉलर में सीजीपी इन्वेस्टमेंट्स (होल्डिंग) लिमिटेड (सीजीपी लिमिटेड ) (एक केमैन आइलैंड्स कंपनी ) के 100 फीसद शेयर खरीद लिए.

वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, सीजीपी लिमिटेड ने अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय कंपनी सचिसन इस्सार लिमिटेड (एचईएल ) के 67 फीसद हिस्से को नियंत्रित किया है. इस अधिग्रहण के माध्यम से वोडाफोन ने एक भारतीय कंपनी - हचिसन एस्सार लिमिटेड को अपने नियंत्रण में ले लिया.

वोडाफोन की ओर से यह तर्क दिया गया कि यह लेन- देन भारत में कर के दायरे में नहीं आता है क्योंकि हस्तांतरित की गई संपत्ति जो सीजीपी लिमिटेड के शेयर थे और वह कंपनी कैमन आइलैंड की है. इस तरह यह किसी भारतीय कंपनी के शेयर नहीं थे.

आयकर विभाग का मानना है कि इस तरह के अप्रत्यक्ष हस्तांतरण को केवल भारत में पूंजीगत लाभ को कर से बचने के लिए डिज़ाइन किया गया था . विभाग ने करीब 7900 करोड़ रुपए की मांग यह कहते हुए की कि सीजीपी लिमिटेड के शेयरों के हस्तांतरण में एक भारतीय कंपनी (एचईएल लिमिटेड ) के शेयर शामिल हैं. इस तरह भारतीय संपत्ति का अप्रत्यक्ष हस्तांतरण हुआ है.

मूल्यांकन आदेश को न्यायालयों में चुनौती दी गई

वोडाफोन ने बॉम्बे हाईकोर्ट में आयकर विभाग के आदेश को चुनौती दी, जिसने कर की मांग को बरकरार रखा. कंपनी ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. वर्ष 2012 में देश की शीर्ष अदालत ने माना कि आयकर अधिनियम के मौजूदा प्रावधानों के तहत परिसंपत्तियों का इस तरह का अप्रत्यक्ष हस्तांतरण कर के लायक नहीं था.

संप्रग ने पूर्व के प्रभाव से कानूनों में संशोधन किया

वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, भारतीय परिसंपत्तियों के ऐसे अप्रत्यक्ष हस्तांतरण के दुरुपयोग और खामियों को रोकने के लिए वर्ष 2012 के वित्त अधिनियम में विशेष रूप से यह स्पष्ट करने के लिए एक संशोधन किया गया कि भारत में स्थित संपत्ति का अप्रत्यक्ष हस्तांतरण हमेशा आयकर अधिनियम के तहत कर योग्य था. वित्त मंत्रालय के एक सूत्र ने ईटीवी भारत को बताया कि इस संशोधन के साथ वोडाफोन से कर मांग करने का काम फिर से शुरू किया गया.

मध्यस्थता न्यायाधिकरण में भारत का मामला नहीं टिक पाया

अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण में वोडाफोन ने भारत और नीदरलैंड के बीच द्विपक्षीय निवेश और संरक्षण संधि का सहारा लिया. संधि के तहत दोनों देशों ने मध्यस्थता का विकल्प दिया है.

वरिष्ठ अधिवक्ता ने ईटीवी भारत को बताया कि संधि में एक निवेशक और एक देश दोनों शामिल हैं. करार में नीदरलैंड में एक भारतीय निवेशक या भारत में एक डच निवेशक दोनों शामिल है, अगर वे देश के आचरण से दुखी हैं तो वे मध्यस्थता विवाद दर्ज कर सकते हैं. भारत ने ही यह विकल्प दिया था.

अपने फैसले में न्यायाधिकरण ने माना कि भारत सरकार सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बावजूद वोडाफोन पर कर चुकाने के दायित्व का दावा कर रहा है जो द्विपक्षीय व्यापार निवेश संरक्षण समझौते के अनुच्छेद 4 (1) में वर्णित उचित और न्यायसंगत व्यवहार की गारंटी का उल्लंघन है. वर्ष 2015 में भारत ने नीदरलैंड के साथ एक व्यापार और निवेश संरक्षण समझौते (बीआईपीए ) पर हस्ताक्षर किए, जिसे 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने रद्द कर दिया.

अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण (पंचाट) में वोडाफोन होल्डिंग्स बीवी के खिलाफ 20 हजार करोड़ रुपए के कर मांग के मामले में हार के बाद भारत के पास दो विकल्प हैं. भारत या तो मामले को तूल न देकर शांत बैठ सकता है या सिंगापुर के उच्च न्यायालय में इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकता है. अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण में वोडाफोन का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता अनुराधा दत्त यह बात कही.

डीएमडी एडवोकेट्स की वरिष्ठ साझीदार अनुराधा दत्त ने ईटीवी भारत के साथ एक विशेष बातचीत में कहा कि न्यायाधिकरण ने माना है कि भारत सरकार ने भारत-नीदरलैंड द्विपक्षीय निवेश संरक्षण समझौते (बीआईपीए ) के तहत उचित और न्यायसंगत व्यवहार के सिद्धांत का उल्लंघन किया है. अधिवक्ता अनुराधा दत्त का कहना है कि भारत के पास दो विकल्प हैं- या तो वह इस फैसले को स्वीकार कर इस मुद्दे को छोड़ सकता है या सिंगापुर उच्च न्यायालय में अपील दायर कर सकता है. हालांकि, सिंगापुर उच्च न्यायालय का फैसला भी अंतिम नहीं हो सकता है क्योंकि जो पक्ष फैसले से नाखुश होगा वह सिंगापुर की अपीलीय अदालत में इस आदेश को चुनौती दे सकता है.

उन्होंने कहा कि भारत सरकार के पास दो उपाय हैं. पहला है सिंगापुर का उच्च न्यायालय और फिर सिंगापुर की अपीलीय अदालत. उसके बाद सरकार के लिए कोई विकल्प नहीं है. उन्होंने न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ उपलब्ध सरकार के पास उपलब्ध विकल्पों की व्याख्या करते हुए यह जानकारी दी.

समयबद्ध सुनवाई नहीं

वोडाफोन होल्डिंग्स बीवी की ओर से डीएमडी एसोसिएट्स की टीम का नेतृत्व करने वाली अनुराधा दत्त का कहना है कि हालांकि ऐसे मामलों में समयबद्ध सुनवाई का कोई प्रावधान नहीं है क्योंकि न्यायालयों के अपनी अनुसूची है लेकिन सिंगापुर का न्यायालय अन्य अदालतों की तुलना में तेज है.

13 साल पुराना है टैक्स विवाद

आयकर विभाग ने वर्ष 2007 में वोडाफोन-हच सौदे पर 7 हजार 900 करोड़ रुपए के कर की मांग की. वोडाफोन ने इस मांग को बॉम्बे हाईकोर्ट और फिर दिल्ली स्थित सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने वोडाफोन के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसने तत्कालीन संप्रग सरकार को पूर्व के प्रभाव से कर कानूनों में संशोधन करने के लिए प्रेरित किया ताकि इस तरह के लेनदेन को कर के दायरे में ला सके. देश के बाहर करीब छह साल तक चले मुकदमे की सुनवाई के बाद वोडाफोन के मामले को भारत सरकार हार गई.

वोडाफोन के खिलाफ भारत का मामला क्या है ?

वोडाफोन इंटरनेशनल होल्डिंग (एक नीदरलैंड कंपनी ) ने हचिसन टेलीकॉम इंटरनेशनल लिमिटेड से 11.1 बिलियन डॉलर में सीजीपी इन्वेस्टमेंट्स (होल्डिंग) लिमिटेड (सीजीपी लिमिटेड ) (एक केमैन आइलैंड्स कंपनी ) के 100 फीसद शेयर खरीद लिए.

वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, सीजीपी लिमिटेड ने अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय कंपनी सचिसन इस्सार लिमिटेड (एचईएल ) के 67 फीसद हिस्से को नियंत्रित किया है. इस अधिग्रहण के माध्यम से वोडाफोन ने एक भारतीय कंपनी - हचिसन एस्सार लिमिटेड को अपने नियंत्रण में ले लिया.

वोडाफोन की ओर से यह तर्क दिया गया कि यह लेन- देन भारत में कर के दायरे में नहीं आता है क्योंकि हस्तांतरित की गई संपत्ति जो सीजीपी लिमिटेड के शेयर थे और वह कंपनी कैमन आइलैंड की है. इस तरह यह किसी भारतीय कंपनी के शेयर नहीं थे.

आयकर विभाग का मानना है कि इस तरह के अप्रत्यक्ष हस्तांतरण को केवल भारत में पूंजीगत लाभ को कर से बचने के लिए डिज़ाइन किया गया था . विभाग ने करीब 7900 करोड़ रुपए की मांग यह कहते हुए की कि सीजीपी लिमिटेड के शेयरों के हस्तांतरण में एक भारतीय कंपनी (एचईएल लिमिटेड ) के शेयर शामिल हैं. इस तरह भारतीय संपत्ति का अप्रत्यक्ष हस्तांतरण हुआ है.

मूल्यांकन आदेश को न्यायालयों में चुनौती दी गई

वोडाफोन ने बॉम्बे हाईकोर्ट में आयकर विभाग के आदेश को चुनौती दी, जिसने कर की मांग को बरकरार रखा. कंपनी ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. वर्ष 2012 में देश की शीर्ष अदालत ने माना कि आयकर अधिनियम के मौजूदा प्रावधानों के तहत परिसंपत्तियों का इस तरह का अप्रत्यक्ष हस्तांतरण कर के लायक नहीं था.

संप्रग ने पूर्व के प्रभाव से कानूनों में संशोधन किया

वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, भारतीय परिसंपत्तियों के ऐसे अप्रत्यक्ष हस्तांतरण के दुरुपयोग और खामियों को रोकने के लिए वर्ष 2012 के वित्त अधिनियम में विशेष रूप से यह स्पष्ट करने के लिए एक संशोधन किया गया कि भारत में स्थित संपत्ति का अप्रत्यक्ष हस्तांतरण हमेशा आयकर अधिनियम के तहत कर योग्य था. वित्त मंत्रालय के एक सूत्र ने ईटीवी भारत को बताया कि इस संशोधन के साथ वोडाफोन से कर मांग करने का काम फिर से शुरू किया गया.

मध्यस्थता न्यायाधिकरण में भारत का मामला नहीं टिक पाया

अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण में वोडाफोन ने भारत और नीदरलैंड के बीच द्विपक्षीय निवेश और संरक्षण संधि का सहारा लिया. संधि के तहत दोनों देशों ने मध्यस्थता का विकल्प दिया है.

वरिष्ठ अधिवक्ता ने ईटीवी भारत को बताया कि संधि में एक निवेशक और एक देश दोनों शामिल हैं. करार में नीदरलैंड में एक भारतीय निवेशक या भारत में एक डच निवेशक दोनों शामिल है, अगर वे देश के आचरण से दुखी हैं तो वे मध्यस्थता विवाद दर्ज कर सकते हैं. भारत ने ही यह विकल्प दिया था.

अपने फैसले में न्यायाधिकरण ने माना कि भारत सरकार सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बावजूद वोडाफोन पर कर चुकाने के दायित्व का दावा कर रहा है जो द्विपक्षीय व्यापार निवेश संरक्षण समझौते के अनुच्छेद 4 (1) में वर्णित उचित और न्यायसंगत व्यवहार की गारंटी का उल्लंघन है. वर्ष 2015 में भारत ने नीदरलैंड के साथ एक व्यापार और निवेश संरक्षण समझौते (बीआईपीए ) पर हस्ताक्षर किए, जिसे 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने रद्द कर दिया.

Last Updated : Sep 29, 2020, 10:43 AM IST
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