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लोकतंत्र और राजनीति : विधानमंडलों में मूल्यों का उल्लंघन

राज्यों की परिषद मानी जाने वाली राज्य सभा में राज्यों की आवाज की सुनवाई नहीं हो रही है. इसको लेकर सदन की गरिमा और शालीनता की अवहेलना की जा रही है. इसके मूल्यों का उल्लंघन किया जा रहा है.

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Published : Sep 24, 2020, 1:14 PM IST

पिछले पांच वर्षों में लगभग चार लाख किसानों की अकाल मौतें देश के कृषि क्षेत्र में गहराते संकट की व्याख्या करती हैं. सरकार की ओर से कृषि अर्थव्यवस्था को मजबूती देने और किसानों के कल्याण के लिए छतरी मुहैया कराने के लिए पेश किए गए प्रमुख विधेयक पंजाब और हरियाणा के किसानों की नाराजगी और उच्च सदन में हंगामा का कारण बन गया.

विवादास्पद विधेयक लोकसभा में आसानी से पारित हो गया लेकिन सत्तारूढ़ गठबंधन में शिरोमणि अकाली दल के मंत्री के इस्तीफे के साथ विवाद शुरू हो गया. बीजू जनता दल (बीजेडी), अन्नाद्रमुक (एआईडीएमके), तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस), तृणमूल कांग्रेस और अकाली दल जैसी पार्टियां एकजुट होकर विरोधी कैंप के रूप में माहौल को गरमाने लगी और ऊपरी सदन में तनाव को बढ़ा दिया.

इन दलों ने विधेयक को किसानों के हितों के लिए नुकसानदेह माना. इनके नेताओं ने जोर देकर कहा कि विधेयकों को व्यापक समीक्षा के लिए प्रवर समिति को भेजा जाए या एक उचित तरीके से मतदान का आयोजन हो. इस बीच स्थिति खराब हो गई और माननीय सदस्यों की बेलगाम हरकतें तेज हो गईं. यह घोषणा कि बिलों को ध्वनि मत से पारित किया गया था, वह कोलाहल बुनियादी संदेह पैदा कर दिया.

ऐसे विधेयक को जिससे देश की जनसंख्या का आधे से अधिक आबादी के जीवन पर गंभीर पड़ने वाला है प्रवर समिति के लिए क्यों नहीं भेजा और क्यों नहीं तीन माह के भीतर एक रिपोर्ट प्राप्त करके सदन में उन पर चर्चा कर यदि कोई गड़बड़ी हो तो उसमें सुधार कर एक उचित मतदान प्रक्रिया के माध्यम से स्वीकार्य बिल को लागू किया?

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्यों की परिषद मानी जाने वाली राज्य सभा में राज्यों की आवाज की सुनवाई नहीं हो रही है और दूसरी ओर विपक्षी खेमे ने जिस तरह से सदन की गरिमा और शालीनता की अवहेलना की दोनों दुर्भाग्यपूर्ण हैं. जिस दिन सदन के आठ सदस्यों को निलंबित किया गया वह उच्च सदन के इतिहास में सबसे काले दिन के रूप में बना रहेगा.

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने मई 1952 में राज्यसभा के पहले सत्र में आग्रह करते हुए कहा था कि संसद केवल एक विधायी निकाय नहीं है. यह बहस का एक मंच है. हम सबको उस संबंध में मूल्यवान सेवाएं देनी है. पंडित नेहरू ने तय किया था कि दोनों सदनों का मेल ही भारत की संसद है, तब उच्च सदन की आवश्यकता पर संविधान सभा में एक बड़ी बहस हुई थी.

उस समय एक जोरदार और स्पष्ट तर्क दिया गया था सत्तारूढ़ पार्टी कभी-कभी लोकसभा में राजनीतिक कारणों से कानून बना सकती है इसलिए दूसरे सदन की आवश्यकता है कि वह कानूनों की बारीकी से जांच करे. राज्यसभा का गठन इस आशावादी दृष्टिकोण से हुआ कि सदनों की द्वीस्तरीय प्रणाली से कुशल और सक्षम सदस्य गहन विधायी प्रस्तावों की समीक्षा करने के लिए आदर्श होंगे और संयुक्त ज्ञान से देश का बहुत भला होगा.

अमेरिका के एक मशहूर राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन के शब्दों में ऊपरी सदन एक तश्तरी की तरह है जो धुआं छोड़ते गर्म विधानों को ठंडा करता है. यह बताता है कि सत्र के चलते हुए व्यावहारिक सदन को कैसा आचरण करना चाहिए.

राज्यसभा जिसे संयम और संतुलित विचार का एक उदाहरण पेश करना चाहिए उसका गुस्से और अनियंत्रित व्यवहार के स्तर पर बदल जाना समझदार विचारकों के लिए एक चिंता का विषय बन रहा है. देश के सर्वोच्च विधायी निकायों को उच्चतर संसदीय प्रथाओं के पालन को प्राथमिकता देकर देश भर की विधानसभाओं के लिए आदर्श उदाहरण पेश करना चाहिए. सत्तारूढ़ और विपक्षी दल अपने बेलगाम और आक्रामक व्यवहार से पूरे देश को क्या संदेश दे रहे हैं?

महात्मा गांधी ने कहा था कि केवल अच्छा करना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि अच्छा काम अच्छे तरीके से करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है. चूंकि कई किसान यूनियन और राज्य सरकारें विधेयकों पर संदेह व्यक्त कर रही हैं इसलिए इस पर केंद्र सरकार के लिए व्यापक चर्चा और उचित समीक्षा के बिना आगे बढ़ना उचित नहीं है.

संसद न केवल कानून के लिए एक जगह है, बल्कि पूरी तरह से विचार-विमर्श के लिए एक मंच है यदि इसे लेकर बुनियादी जागरुकता का अभाव है तो यह घोर निराशा की बात है कि भारतीय लोकतंत्र किस रास्ते पर जा रहा है?

पिछले पांच वर्षों में लगभग चार लाख किसानों की अकाल मौतें देश के कृषि क्षेत्र में गहराते संकट की व्याख्या करती हैं. सरकार की ओर से कृषि अर्थव्यवस्था को मजबूती देने और किसानों के कल्याण के लिए छतरी मुहैया कराने के लिए पेश किए गए प्रमुख विधेयक पंजाब और हरियाणा के किसानों की नाराजगी और उच्च सदन में हंगामा का कारण बन गया.

विवादास्पद विधेयक लोकसभा में आसानी से पारित हो गया लेकिन सत्तारूढ़ गठबंधन में शिरोमणि अकाली दल के मंत्री के इस्तीफे के साथ विवाद शुरू हो गया. बीजू जनता दल (बीजेडी), अन्नाद्रमुक (एआईडीएमके), तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस), तृणमूल कांग्रेस और अकाली दल जैसी पार्टियां एकजुट होकर विरोधी कैंप के रूप में माहौल को गरमाने लगी और ऊपरी सदन में तनाव को बढ़ा दिया.

इन दलों ने विधेयक को किसानों के हितों के लिए नुकसानदेह माना. इनके नेताओं ने जोर देकर कहा कि विधेयकों को व्यापक समीक्षा के लिए प्रवर समिति को भेजा जाए या एक उचित तरीके से मतदान का आयोजन हो. इस बीच स्थिति खराब हो गई और माननीय सदस्यों की बेलगाम हरकतें तेज हो गईं. यह घोषणा कि बिलों को ध्वनि मत से पारित किया गया था, वह कोलाहल बुनियादी संदेह पैदा कर दिया.

ऐसे विधेयक को जिससे देश की जनसंख्या का आधे से अधिक आबादी के जीवन पर गंभीर पड़ने वाला है प्रवर समिति के लिए क्यों नहीं भेजा और क्यों नहीं तीन माह के भीतर एक रिपोर्ट प्राप्त करके सदन में उन पर चर्चा कर यदि कोई गड़बड़ी हो तो उसमें सुधार कर एक उचित मतदान प्रक्रिया के माध्यम से स्वीकार्य बिल को लागू किया?

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्यों की परिषद मानी जाने वाली राज्य सभा में राज्यों की आवाज की सुनवाई नहीं हो रही है और दूसरी ओर विपक्षी खेमे ने जिस तरह से सदन की गरिमा और शालीनता की अवहेलना की दोनों दुर्भाग्यपूर्ण हैं. जिस दिन सदन के आठ सदस्यों को निलंबित किया गया वह उच्च सदन के इतिहास में सबसे काले दिन के रूप में बना रहेगा.

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने मई 1952 में राज्यसभा के पहले सत्र में आग्रह करते हुए कहा था कि संसद केवल एक विधायी निकाय नहीं है. यह बहस का एक मंच है. हम सबको उस संबंध में मूल्यवान सेवाएं देनी है. पंडित नेहरू ने तय किया था कि दोनों सदनों का मेल ही भारत की संसद है, तब उच्च सदन की आवश्यकता पर संविधान सभा में एक बड़ी बहस हुई थी.

उस समय एक जोरदार और स्पष्ट तर्क दिया गया था सत्तारूढ़ पार्टी कभी-कभी लोकसभा में राजनीतिक कारणों से कानून बना सकती है इसलिए दूसरे सदन की आवश्यकता है कि वह कानूनों की बारीकी से जांच करे. राज्यसभा का गठन इस आशावादी दृष्टिकोण से हुआ कि सदनों की द्वीस्तरीय प्रणाली से कुशल और सक्षम सदस्य गहन विधायी प्रस्तावों की समीक्षा करने के लिए आदर्श होंगे और संयुक्त ज्ञान से देश का बहुत भला होगा.

अमेरिका के एक मशहूर राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन के शब्दों में ऊपरी सदन एक तश्तरी की तरह है जो धुआं छोड़ते गर्म विधानों को ठंडा करता है. यह बताता है कि सत्र के चलते हुए व्यावहारिक सदन को कैसा आचरण करना चाहिए.

राज्यसभा जिसे संयम और संतुलित विचार का एक उदाहरण पेश करना चाहिए उसका गुस्से और अनियंत्रित व्यवहार के स्तर पर बदल जाना समझदार विचारकों के लिए एक चिंता का विषय बन रहा है. देश के सर्वोच्च विधायी निकायों को उच्चतर संसदीय प्रथाओं के पालन को प्राथमिकता देकर देश भर की विधानसभाओं के लिए आदर्श उदाहरण पेश करना चाहिए. सत्तारूढ़ और विपक्षी दल अपने बेलगाम और आक्रामक व्यवहार से पूरे देश को क्या संदेश दे रहे हैं?

महात्मा गांधी ने कहा था कि केवल अच्छा करना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि अच्छा काम अच्छे तरीके से करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है. चूंकि कई किसान यूनियन और राज्य सरकारें विधेयकों पर संदेह व्यक्त कर रही हैं इसलिए इस पर केंद्र सरकार के लिए व्यापक चर्चा और उचित समीक्षा के बिना आगे बढ़ना उचित नहीं है.

संसद न केवल कानून के लिए एक जगह है, बल्कि पूरी तरह से विचार-विमर्श के लिए एक मंच है यदि इसे लेकर बुनियादी जागरुकता का अभाव है तो यह घोर निराशा की बात है कि भारतीय लोकतंत्र किस रास्ते पर जा रहा है?

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