नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) जन्माष्टमी के मौके पर बड़े स्तर की तैयारियां कर रही है. विहिप इस जन्माष्टमी बंगाल में जगह-जगह विशाल शोभा यात्रा और बड़े स्तर पर जन्माष्टमी कार्यक्रम आयोजित करेगी.
विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने भी इस सवाल पर जवाब देते हुए माना कि बंगाल विहिप की क्षेत्रीय इकाई बड़ी तैयारी कर रही है. चूंकि जन्माष्टमी के दिन ही विश्व हिन्दू परिषद का स्थापना दिवस भी होता है इसलिये पूरे देश में विश्व हिन्दू परिषद हर साल इसे मनाता आया है.
आलोक कुमार ने बताया कि पहले की तुलना में बंगाल में विहिप की क्षमता भी बढ़ी है और संख्या भी, इसलिये बंगाल विहिप के इकाई ने इस जन्माष्टमी को धूम धाम से मनाने का निर्णय लिया है.
जाहिर तौर पर राज्य में भाजपा की बढ़ती ताकत के पीछे संघ और विश्व हिन्दू परिषद का बड़ा योगदान है और अब लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद विहिप अपनी मुहिम और तेज करना चाहेगी. जन्माष्टमी और स्थापना दिवस के नाम पर बड़े आयोजन इसी मुहिम का हिस्सा लगते हैं.
जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद विश्व हिन्दू परिषद और अखिल भारतीय संत समिति ने भी इसका समर्थन किया है. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को इसके लिये धन्यवाद करते हुए संत समाज ने एक बड़ी मांग भी सामने रख दी है.
अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री जीतेन्द्रानंद सरस्वती ने कहा है कि नब्बे के दशक में जब कश्मीर में घुसपैठ और आतंकवाद चरम पर था तब कुल 435 हिन्दू मंदिरों को वहां नष्ट कर दिया था. किसी भी मामले में कोई एफआईआर तक दर्ज नहीं हुई. लेकिन अब संत समाज ने ये मांग की है कि उन्हें इन मंदिरों के पुनःनिर्माण में सरकार सहयोग करे.
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अयोध्या मामले को बतौर उदाहरण बताते हुए स्वामी जीतेन्द्रानंद सरस्वती ने कहा कि एक मस्जिद गिराई गई तो आज तक उस मामले में सीबीआई जांच चल रही है लेकिन चार सौ से ज्यादा मंदिर तहस-नहस कर दिये गए तो एक मुकदमा तक दर्ज नहीं किया गया.
संत समाज अपनी मांग के साथ-साथ कई अन्य विषयों पर भी आने वाले 10 अगस्त को दिल्ली में एक बैठक करने जा रही है. इस बैठक में देश भर से कई प्रबुद्ध संत जुटेंगे और जम्मू कश्मीर में मंदिरों के निर्माण, सबरीमाला, राम मंदिर सरीखे मुद्दों पर चर्चा करेंगे.
इसके साथ ही संत समाज ने इस बात की भी वकालत की है कि देश के अन्य नागरिकों को भी अब जम्मू कश्मीर में संपत्ति खरीदने के अधिकार हैं तो लोगों को वहां जरूर संपत्ति खरीदनी चाहिये. ऐसे विस्थापित कश्मीरी पंडित जो अब वहां वापस नहीं जाना चाहते उनके संपत्ति को अगर कोई और खरीदना चाहें तो इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है.
बहरहाल, जब 10 अगस्त को एक बार फिर संत समाज देश की राजधानी में जुटेंगे और देखने वाली बात होगी कि बैठक के बाद संत समाज हिन्दुओं से जुड़े मुद्दों पर क्या राय रखता है.